पब्लिश्ड 19:42 IST, April 7th 2024
Explainer: क्या है टू-स्टेट सॉल्यूशन जिसकी भारत ने की पैरवी? जानिए इजरायली PM क्यों करते हैं विरोध
Israel-Hamas War: इजरायली PM नेतन्याहू ने कभी स्वीकार नहीं किया है कि वो टू-स्टेट सॉल्यूशन के पक्ष में हैं।
- वर्ल्ड न्यूज़
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Israel-Hamas War: इजरायली PM नेतन्याहू ने टू-स्टेट सॉल्यूशन को कभी स्वीकार नहीं किया है। उन्होंने हमेशा कहा कि मैं जॉर्डन के पश्चिम के सभी क्षेत्रों पर पूर्ण इजरायली सुरक्षा नियंत्रण पर समझौता नहीं करूंगा और यह फिलिस्तीनी राज्य के विपरीत है। आपको बता दें कि नेतन्याहू कितना भी टू-स्टेट सॉल्यूशन को नकारते रहें, अमेरिका, भारत, यूके समेत दुनियाभर के कई देशों ने इसके पक्ष में ही बयान दिया है। भारत ने तो बार-बार इस बात को दोहराया है कि इजरायल-हमास मामले में भारत टू-स्टेट सॉल्यूशन का पक्षधर है।
क्या है टू-स्टेट सॉल्यूशन?
इजरायल-फिलिस्तीनी युद्ध के टू-स्टेट सॉल्यूशन में फिलिस्तीन में दो राष्ट्र राज्यों की स्थापना करके युद्ध को खत्म करने का प्रस्ताव है। टू-स्टेट सॉल्यूशन का मतलब ये होगा कि इजरायल के साथ-साथ फिलिस्तीन एक स्वतंत्र राज्य के रूप में अपने फैसले खुद लेने के लिए स्वतंत्र होगा।
आपको बता दें कि अलग-अलग राज्य बनाने का पहला प्रयास 1948 में इजरायल की आजादी से पहले हुआ था। उससे एक साल पहले संयुक्त राष्ट्र ने एक विभाजन योजना की रूपरेखा तैयार करते हुए प्रस्ताव 181 पारित किया था जो फिलिस्तीन के जनादेश (ब्रिटिश नियंत्रण के तहत) को अलग यहूदी और अरब राज्य में विभाजित कर देगा। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र की प्रस्तावित सीमाएं कभी साकार नहीं हुईं। इजरायल द्वारा स्वतंत्रता की घोषणा के तुरंत बाद सीरिया, जॉर्डन और मिस्र ने आक्रमण किया, जिससे पहला अरब-इजरायल युद्ध छिड़ गया। 700,000 से अधिक फिलिस्तीनी इजरायल के नए राज्य से विस्थापित होकर वेस्ट बैंक, गाजा और आसपास के अरब राज्यों में भाग गए।
इसके बाद के सालों में कई बार इस मुद्दे को उठाया गया कि एक अलग फिलिस्तीन राज्य कैसा होगा। कई लोगों ने 1949 के ग्रीन लाइन को दोनों राज्यों की सीमाओं के लिए सबसे बेहतरीन माना। यह लाइन 1948 के युद्ध के बाद इजरायल और उसके पड़ोसी राज्यों के बीच आर्मिस्टिस समझौते के दौरान सामने आई थी, जो इजरायल, वेस्ट बैंक और गाजा के बीच की वर्तमान सीमा है।
हालांकि, 1967 में इजरायल ने वेस्ट बैंक और गाजा के साथ-साथ ईस्ट-जेरूसलम और गोलन हाइट्स पर कब्जा कर लिया। ऐसे में अब जितनी भी टू-स्टेट सॉल्यूशन की चर्चाएं होती हैं, वो 1967 के पहले की सीमाओं के अनुसार होती हैं। इसका मतलब है कि अगर फिलिस्तीन एक नया राज्य बनता है तो वेस्ट बैंक उसके खाते में आएगा और जेरुसलम को कैसे विभाजित किया जाएगा, सारी चर्चाएं इसी सवाल पर अटकी हैं।
फिलिस्तीन के लिए क्यों जरूरी है अलग राज्य बनना?
टू-स्टेट सॉल्यूशन में जिस प्रकार के राज्यत्व के बारे में बात की गई है (जिसे अंतरराष्ट्रीय राजनीति में राज्य संप्रभुता के रूप में जाना जाता है) वह किसी राष्ट्र की सरकार को उसकी सीमाओं के भीतर और बाहर दिया गया अधिकार है। राज्य संप्रभुता को पहली बार लीग ऑफ नेशन्स के द्वारा इस्तेमाल में लाया गया था। इसके अनुसार, यह सरकारों को उनकी सीमाओं के भीतर कानूनों को बनाने का और उसे लागू करने का पूरा नियंत्रण देता है। उन्हें औपचारिक निकायों में अन्य राज्यों के साथ संबंध संचालित करने की अनुमति देता है और उन्हें अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अन्य राज्यों द्वारा आक्रमण से बचाता है। यह दर्जा अन्य राज्यों से पारस्परिक मान्यता से प्राप्त होता है।
आपको बता दें कि इजरायल राज्य की औपचारिक स्थापना 1948 में जायोनीवाद की राजनीतिक परियोजना (एक यहूदी मातृभूमि की स्थापना के आंदोलन) के माध्यम से की गई थी। इसका उद्देश्य सीमाओं, एक सरकार और एक सेना के साथ एक संप्रभु राज्य बनाना था, जो यहूदी लोगों को एक राजनीतिक आवाज और यहूदी विरोधी हिंसा से मुक्त स्थान देगा।
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अपडेटेड 19:42 IST, April 7th 2024