पब्लिश्ड 20:25 IST, August 30th 2024
रिसर्च: आयरन, कैल्शियम, फोलेट की पर्याप्त खुराक नहीं ले रहे भारतीय, पढ़ें...
सभी आयु वर्ग के लोग स्वास्थ्य के लिए अहम माने जाने वाले आयरन, कैल्शियम और फोलेट सहित कई अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों का पर्याप्त मात्रा में सेवन नहीं कर रहे हैं।
- लाइफस्टाइल न्यूज़
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भारत में सभी आयु वर्ग के लोग मानव स्वास्थ्य के लिए अहम माने जाने वाले आयरन, कैल्शियम और फोलेट सहित कई अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों का पर्याप्त मात्रा में सेवन नहीं कर रहे हैं। यह अनुमान ‘द लांसेट ग्लोबल हेल्थ’ पत्रिका में प्रकाशित एक नये अध्ययन में लगाया गया है। यह अध्ययन 185 देशों में उन 15 सूक्ष्म पोषक तत्वों की अपर्याप्त खपत का अनुमान देने वाला पहला अध्ययन है, जिन्हें ‘सप्लीमेंट’ का इस्तेमाल किए बिना दैनिक आहार के माध्यम से लिया जाता है। अध्ययन दल में अमेरिका स्थित हार्वर्ड विश्वविद्यालय सहित अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों के शोधकर्ता शामिल हैं।
अध्ययन से पता चलता है कि…
अध्ययन से पता चलता है कि दुनिया की लगभग 70 फीसदी आबादी यानी पांच अरब से अधिक लोग आयोडीन, विटामिन-ई और कैल्शियम की पर्याप्त खुराक नहीं लेते हैं। इसमें यह भी पाया गया कि किसी देश और आयु वर्ग में पर्याप्त मात्रा में आयोडीन, विटामिन-बी12 और आयरन न लेने वाली महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले अधिक है, जबकि महिलाओं की तुलना में अधिक पुरुष मैग्नीशियम, विटामिन-बी6, जिंक और विटामिन-सी का पर्याप्त सेवन नहीं कर रहे हैं।
अध्ययन के मुताबिक, भारत में पर्याप्त मात्रा में आयोडीन न लेने वाली महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक है, जबकि महिलाओं के मुकाबले ज्यादा पुरुष जिंक और मैग्नीशियम का अपर्याप्त सेवन करते हैं। अध्ययन के दौरान 99.3 फीसदी वैश्विक आबादी में पोषक तत्वों के अपर्याप्त सेवन के स्तर का अंदाजा लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने ‘ग्लोबल डायटरी डेटाबेस’ के सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आंकड़ों का इस्तेमाल किया।
दल ने कहा कि कैल्शियम की अपर्याप्त खपत सबसे ज्यादा 10 से 30 साल के आयु वर्ग के लोगों में होती है, खासकर दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्वी एशिया और उप-सहारा अफ्रीका में। शोधकर्ताओं ने कहा कि अध्ययन के नतीजे स्वास्थ्य पेशेवरों को उन लोगों पर विशेष ध्यान देने में मदद कर सकते हैं जिन्हें आहार संबंधी हस्तक्षेप की सबसे ज्यादा जरूरत है।
उन्होंने कहा कि चूंकि उन्होंने फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों या ‘सप्लीमेंट’ के सेवन को ध्यान में नहीं रखा, इसलिए विशेष स्थानों के लिए परिणाम संभवतः कुछ प्रमुख पोषक तत्वों के लिए अधिक अनुमानित हो सकते हैं, जहां लोग उच्च मात्रा में फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों और पूरकों का सेवन करते हैं। यह निष्कर्ष भारत में राष्ट्रीय पोषण सप्ताह से पहले आया है, जो 1 सितंबर से 7 सितंबर तक मनाया जाता है। पोषण के बारे में जागरूकता बढ़ाने और स्वस्थ खाने की आदतों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से, यह 1982 से हर साल मनाया जाता है।
अध्ययन पर प्रतिक्रिया देते हुए, आनुवंशिकीविद् अपर्णा भानुशाली ने कहा कि यह न केवल सीमित आहार विविधता को दर्शाता है, बल्कि पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों तक पहुंच को प्रतिबंधित करने वाली गहरी सामाजिक-आर्थिक बाधाओं की ओर भी इशारा करता है। जीनोमिक्स आधारित डायग्नोस्टिक समाधान प्रदाता, हेस्टैकएनालिटिक्स, मुंबई की विकास एवं वैज्ञानिक सहायता प्रमुख भानुशाली ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, 'वैज्ञानिक रूप से, इन कमियों का कारण चावल और गेहूं जैसे प्रमुख अनाजों का आहार है, जिनमें इन महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की कमी होती है।'
भानुशाली ने कहा, 'हालांकि भारतीय आहार में आम तौर पर आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं, लेकिन लौह तत्व का प्रकार, अवशोषण अवरोधकों की मौजूदगी और क्षेत्रीय आहार स्वरूप जैसे कारक सूक्ष्म पोषक तत्वों की जैव उपलब्धता और अवशोषण दर को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं।'
Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधियां, तरीके और दावे अलग-अलग जानकारियों पर आधारित हैं। REPUBLIC BHARAT आर्टिकल में दी गई जानकारी के सही होने का दावा नहीं करता है। किसी भी उपचार और सुझाव को अप्लाई करने से पहले डॉक्टर या एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।
अपडेटेड 20:25 IST, August 30th 2024