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पब्लिश्ड 21:37 IST, November 6th 2024

मध्य प्रदेश: बैतूल में 23 परिवारों ने राष्ट्रपति से मांगी इच्छा मृत्यु, जमीन के मुद्दे पर मचा बवाल

मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के कढ़ाई गांव में एक बड़े विवाद ने जन्म ले लिया है। 23 आदिवासी और दलित परिवारों ने राष्ट्रपति को आवेदन देकर इच्छा मृत्यु की मांग की।

Reported by: Digital Desk
Madhya Pradesh 23 families in Betul asked for euthanasia | Image: Republic

सत्य विजय सिंह

मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के कढ़ाई गांव में एक बड़े विवाद ने जन्म ले लिया है। यहां 23 आदिवासी और दलित परिवारों ने राष्ट्रपति को आवेदन देकर इच्छा मृत्यु की मांग की है। इन परिवारों का कहना है कि 21 साल पहले सरकार ने उन्हें खेती और फलदार वृक्ष लगाने के लिए हरियाली खुशहाली योजना के तहत जमीन दी थी, लेकिन अब उसी जमीन को वुडन कलस्टर परियोजना के लिए प्रशासन ने चिन्हित कर लिया है।

हरियाली खुशहाली योजना की कहानी वर्ष 2003 में सरकार ने हरियाली खुशहाली योजना की शुरुआत की थी। इसके तहत भूमिहीन परिवारों को खेती के लिए पांच-पांच एकड़ जमीन दी गई थी। योजना के अंतर्गत किसानों को सरकारी मदद भी मिली, जिसमें जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए तालाब खुदवाना, सिंचाई के लिए मोटर पंप देना और कृषि उपकरण खरीदने में सहायता करना शामिल था। इन परिवारों ने मेहनत करके इस बंजर भूमि को उपजाऊ बनाया और वहां फलदार वृक्ष भी लगाए।

वुडन कलस्टर के लिए जमीन पर काम शुरू

उद्योग विभाग अब उसी जमीन पर वुडन कलस्टर बनाने की तैयारी कर रहा है। प्रशासन ने 20 हेक्टेयर भूमि चिन्हित कर ली है और वहां कार्य भी प्रारंभ हो गया है। बैतूल के कलेक्टर नरेंद्र कुमार सूर्यवंशी का कहना है कि यह जमीन राजस्व रिकॉर्ड में आवंटित नहीं है। उन्होंने बताया कि जांच में पाया गया कि ग्रामीणों को दिए गए पट्टे का कोई रिकॉर्ड नहीं है। यह जमीन पहाड़ी और पथरीली होने के कारण खेती के लिए उपयुक्त नहीं मानी गई। इसके अतिरिक्त, प्रशासन का दावा है कि 23 परिवारों में से केवल एक व्यक्ति का अतिक्रमण था, जिसे हटाया गया और जिसकी याचिका उच्च न्यायालय ने खारिज कर दी।

ग्रामीणों का दर्द और मांग

इन परिवारों का कहना है कि वे पिछले 21 वर्षों से इस जमीन पर खेती कर रहे हैं और यह उनकी आजीविका का मुख्य साधन है। अगर जमीन उनसे छीन ली गई, तो उनके सामने जीवनयापन का संकट खड़ा हो जाएगा। इसी कारण उन्होंने राष्ट्रपति के नाम आवेदन देकर संवैधानिक रूप से इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगी है।

सरकार की योजना और ग्रामीणों की पीड़ा

यह मामला तब और पेचीदा हो गया जब यह सामने आया कि हरियाली खुशहाली योजना के लिए 40 से 50 लाख रुपये खर्च कर बुनियादी ढांचा तैयार किया गया था। अब सवाल यह उठ रहा है कि जब ग्रामीणों ने अपनी मेहनत और सरकारी सहायता से जमीन को उपजाऊ बनाया, तो क्या यह उचित है कि उनसे यह जमीन छीन ली जाए? प्रशासन का कहना है कि जमीन के आवंटन का कोई राजस्व रिकॉर्ड नहीं है, जबकि ग्रामीण इस तथ्य से आहत हैं कि उनकी मेहनत और जीविका पर संकट मंडरा रहा है।

न्याय की उम्मीद या निराशा?

यह विवाद न केवल प्रशासनिक प्रक्रिया पर सवाल खड़े करता है, बल्कि आदिवासी और दलित समुदाय के अधिकारों और उनकी सुरक्षा पर भी गंभीर बहस को जन्म देता है। अब देखना यह है कि क्या सरकार इन परिवारों की मांगों पर ध्यान देती है, या ये परिवार अपनी असुरक्षित स्थिति से जूझते रहेंगे।

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अपडेटेड 21:37 IST, November 6th 2024

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