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Published 23:40 IST, December 24th 2024

UP News: बरेली की अदालत ने हत्या के जुर्म में पिता-पुत्र को फांसी की सजा सुनाई

बरेली जिले की एक अदालत ने जमीन के विवाद को लेकर अपने सगे भाई की हत्या करने के जुर्म में एक व्यक्ति और उसके बेटे को मंगलवार को फांसी की सजा सुनायी। 20 नवंबर 2014 को रघुवीर सिंह नामक व्यक्ति ने जमीन के विवाद को लेकर अपने बेटे तेजपाल सिंह उर्फ मोनू की मदद से अपने भाई चरन सिंह की हत्या कर दी थी।

हत्या के जुर्म में पिता-पुत्र को फांसी की सजा | Image: Meta AI

बरेली जिले की एक अदालत ने जमीन के विवाद को लेकर अपने सगे भाई की हत्या करने के जुर्म में एक व्यक्ति और उसके बेटे को मंगलवार को फांसी की सजा सुनायी। सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता दिगम्बर सिंह ने बताया कि 20 नवंबर 2014 को रघुवीर सिंह नामक व्यक्ति ने जमीन के विवाद को लेकर अपने बेटे तेजपाल सिंह उर्फ मोनू की मदद से अपने भाई चरन सिंह की हत्या कर दी थी। उन्होंने बताया कि तेजपाल ने चरन सिंह के सीने पर दो गोलियां मारी थीं। उसके बाद रघुवीर ने कुल्हाड़ी से चरन की गर्दन पर वार करके उसे धड़ से लगभग अलग कर दिया था।

सिंह ने बताया कि अपर सत्र न्यायाधीश (फास्ट ट्रैक अदालत)- प्रथम रवि कुमार दिवाकर ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद रघुवीर और उसके बेटे तेजपाल को हत्या का दोषी करार देते हुए उन्हें फांसी की सज़ा सुनाई तथा उन पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माने लगाया। न्यायाधीश ने सजा सुनाते हुए कहा, ''भगवान राम के वनवास पर चले जाने के बाद (उनके भाई) भरत ने राजगद्दी लेने से इनकार कर दिया था। यह भाई के प्रेम को दर्शाता है। आपने अपने भाई को ही मार डाला है। न्याय, सत्य और मर्यादा का पालन करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। जब कोई व्यक्ति मर्यादा का उल्लंघन करता है, तो उसे कठोर दंड दिया जाना चाहिए।''

 हत्या के जुर्म में पिता-पुत्र को फांसी की सजा 

उन्होंने कहा, ''भारतीय समाज में न्याय और सत्य का आदर्श रामायण जैसे ग्रंथों में मिलता है। भगवान राम के समय में उनके भाई भरत ने राजगद्दी पर बैठने से इनकार कर दिया था। राम के आदेश का पालन करते हुए उन्होंने प्रतीक के रूप में अपनी लकड़ी की पादुकाएं राजगद्दी पर रख दीं। यह दर्शाता है कि एक भाई दूसरे भाई की गरिमा और अधिकारों का कितना सम्मान करता है।'' न्यायाधीश ने कहा, ''लेकिन आज के समय में, जब एक भाई दूसरे भाई का दुश्मन बन जाता है और संपत्ति के विवाद में उसकी जान ले लेता है, तो यह समाज का अपमान है। इसे रोकना अदालत का भी सर्वोच्च कर्तव्य है। रामायण हमें सिखाती है कि परिवार और समाज की मर्यादा को बनाए रखना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।''

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Updated 23:40 IST, December 24th 2024

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