Published 20:04 IST, December 4th 2024
Afghanistan: तालिबान का महिलाओं की आजादी पर Shutdown, नर्सिंग पढ़ाई पर रोक, अबतक क्या-क्या हुआ बैन?
तालिबानी तानाशाहों ने अफगानिस्तान की महिलाओं और लड़कियों को एक और जंजीर से जकड़ लिया है। आइए जानते हैं तालिबानी तानाशाहों ने महिलाओं से अबतक कौन से अधिकार छीने।
अफगानिस्तान में तालिबानी सरकार ने महिलाओं के पैर में एक और जंजीर बांध दिया है। तालिबान की तानाशाही हुकूमत ने महिलाओं के लिए एक और फरमान जारी कर दिया है। पहले उनकी पढ़ाई पर रोक, फिर सार्वजनिक जगहों पर बोलने पर रोक, पोशाक पर रोक लगाने के बाद अब नई बंदिश लगाई है। तालिबानी सरकार ने महिलाओं के नर्सिंग की ट्रेनिंग पर रोक लगा दी है।
हालांकि, अब तक इसका आधिकारिक तौर पर ऐलान नहीं किया गया है, लेकिन इसपर शैक्षणिक संस्थानों के साथ चर्चा के बाद अमल करने का आदेश दे दिया गया है। औपचारिक ऐलान तो नहीं हुआ, लेकिन मीडिया के सामने वहां के अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि जरूर की है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार तालिबानी अधिकारी ने कहा, कोई आधिकारिक पत्र नहीं दिया गया है, लेकिन सभी संस्थानों के डायरेक्टरों को एक बैठक कर ये बोला गया है कि अब महिलाएं या लड़कियां, उनके संस्थानों में नहीं पढ़ सकती हैं।
सार्वजनिक जगहों पर बोलने और चेहरा दिखाने पर लगाया था बैन
इससे पहले अगस्त 2024 को तालिबानी सरकार के तानाशाही फैसलों में महिलाओं से सार्वजनिक जगहों पर बोलने की आजादी छीन ली गई। इसके अलावा उन्हें चेहरा ढकने को भी कहा गया। तालिबानी सरकार के मंत्रालय ने इस फैसले को शरिया कानून के तहत सही ठहराया।
तालिबान ने महिलाओं से अबतक कौन-कौन सा अधिकार छीना?
तालिबानी तानाशाहों ने महिलाओं के लिए बुर्का अनिवार्य कर दिया। महिलाओं को पूरा शरीर ढकना होगा। सार्वजनिक जगहों पर महिलाओं को चुप रहना होगा। घर हो या बाहर गाना गाने और जोर से पढ़ने पर भी रोक। गैर मर्दों से शरीर और चेहरा छिपाने का आदेश। महिलाओं को ढीले कपड़े पहनने का आदेश दिया गया।
महिलाओं से छीना गया शिक्षा का अधिकार
अफगानिस्तान में 2021 में तालिबानियों की वापसी हुई। तब से महिलाओं को माध्यमिक विद्यालय से आगे की शिक्षा हासिल करने से रोक लिया गया। तालिबान के इस फैसले ने वहां की महिलाओं के लिए व्यावसायिक शिक्षा के आखिरी दरवाजे को भी बंद कर दिया। अफगानिस्तान के सबसे मशहूर और बड़े क्रिकेटर राशिद खान की कर रहे हैं, जिन्होंने सोशल मीडिया के जरिए तालिबान के इस तुगलकी फरमान पर आपत्ति जताई है और कुरान का जिक्र उसे बड़ी नसीहत दी है। राशिद खान ने इसमें लिखा, "इस्लामी शिक्षाओं में शिक्षा का एक केंद्रीय स्थान है, जिसमें पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए ज्ञान की खोज पर जोर दिया गया है। कुरान सीखने के महत्व पर प्रकाश डालता है और पुरुषों और महिलाओं के समान आध्यात्मिक मूल्य को स्वीकार करता है।"
'समाज का ताना-बाना प्रभावित होगा'
अफगानिस्तान की कप्तान कर चुके राशिद खान ने कहा, "मैं बहुत दुख और निराशा के साथ हाल ही में अफगानिस्तान की बहनों और माताओं के लिए शैक्षणिक और चिकित्सा संस्थानों के बंद होने पर विचार कर रहा हूं। इस फैसले ने न सिर्फ उनके भविष्य को, बल्कि हमारे समाज के व्यापक ताने-बाने को भी गहराई से प्रभावित किया है। सोशल मीडिया के माध्यम से उन्होंने जो दर्द और दुख जताया है, वो उनके सामने आने वाले संघर्षों की मार्मिक याद दिलाता है।"
युवतियों और महिलाओं के लिए उठाई आवाज
राशिद खान ने पोस्ट में लिखा-
हमारा प्रिय देश अफगानिस्तान एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। देश को हर क्षेत्र में पेशेवरों की सख्त जरूरत है, खासकर चिकित्सा क्षेत्र में। महिला डॉक्टरों, खासतौर पर नर्सों की भारी कमी चिंताजनक है, क्योंकि इसका सीधा असर महिलाओं की स्वास्थ्य सेवा और सम्मान पर पड़ता है। हमारी बहनों और माताओं के लिए ये जरूरी है कि उन्हें ऐसे चिकित्सा पेशेवरों की ओर से प्रदान की जाने वाली देखभाल तक पहुंच मिले जो वाकई में उनकी जरूरतों को समझते हों।
तालिबानी हुकूमत से फैसले वापस लेने की अपील की
IPL में गुजरात टाइटंस ती तरफ से खेलने वाले राशिद खान ने कहा कि मैं इस फैसले पर पुनर्विचार करने की अपील करता हूं, ताकि अफगान लड़कियां शिक्षा के अपने अधिकार को पुनः प्राप्त कर सकें और राष्ट्र के विकास में योगदान दे सकें। सभी को शिक्षा प्रदान करना न केवल एक सामाजिक जिम्मेदारी है, बल्कि एक नैतिक दायित्व है, जो हमारे विश्वास और मूल्यों में गहराई से निहित है।
Updated 21:58 IST, December 4th 2024