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OPINION

Published 18:42 IST, September 15th 2024

नाम से नहीं 'गंदी सोच' से नफरत! विपक्ष का दोहरा मापदंड क्यों?

नेमप्लेट वाले मामले पर सियासत हो गई और वो मामला कानून के कटघरे में घिर गया। आज वो सियासतदान कहां है? आखिर तथाकथित सियासत के रहनुमा कहां मुंह छिपाते फिर रहे हैं?

Ghaziabad Urine Juice Controversy | Image: PTI, Republic

जब किसी से एक बार गलती हो तो बात समझ में आती है, लेकिन वही गलती बार-बार दिखे या नजर आए तो उसे आप क्या कहेंगे? जाहिर है उसे आप जानबूझकर किए गए 
कृत मानेंगे। उस गलती को साजिशन करार दे सकते हैं। 

यूपी के लोनी बॉर्डर के इंद्रापुरी कॉलोनी से जो तस्वीरें सामने आई हैं उससे आपके जेहन में भी जलन हो रही होगी। वो कैसा इंसान होगा जो अपने भगवान रूपी ग्राहक को जूस में यूरिन पिला रहा था। वो भी ना जाने कितने दिनों से, कितने सालों से। 

आपके भी मन में सोचकर घिन आ रही होगी, लेकिन वो मानसिक सतुलंन खो बैठा। लगातार और बार-बार ऐसा करने से नहीं चूका और ऊपर से तुर्रा ये कि टॉयलेट करने की जगह नहीं थी इसलिए यूरिन को मजबूर एक डिब्बे में रखना पड़ा। चलिए मानते हैं यूरिन करने की जगह नहीं होगी तो नगर निगम में शिकायत करते, टॉयलेट के लिए आवेदन करते और अगर निगम नहीं सुन रहा था तो आस-पास के जितने दुकानदार वाले थे वो मिलकर एक टेंपरेरी टॉयलेट बनवा लेते। 

ऐसे में सवाल ये है कि अगर टॉयलेट नहीं होगा तो क्या यूरिन डिब्बे में जमा करके ग्राहकों को जूस में मिलकर पिला देंगे? ऐसी सोच पर आपको भी सोचना पड़ेगा। उस जूस की दुकान पर हर कोई पहुंचा होगा। अलग-अलग धर्म के लोगों ने जूस पिया होगा। ऐसा तो नहीं हो रहा होगा कि धर्म पूछकर दुकानदार जूस पिला रहा होगा। बात सिर्फ इतनी है कि अगर सोच में गदंगी हो तो भला उसे कौन समझा सकता है। वो चाहे जिस भी धर्म का हो अगर उसकी सोच में गड़बड़ है तो उसका कोई इलाज नहीं है। 

एक बार मान लेते हैं कि जूस वाले दुकानदार की ये नादानी है, लेकिन ऐसा नहीं है कि ऐसी तस्वीर पहली बार सामने आई हो। इससे पहले रोटी में थूककर परोसना, फल को थूक कर साफ करना... ना जाने ऐसी कई तस्वीरें आज भी सोशल मीडिया में तैर रही है जिसे आपने भी देखा होगा। 

ऐसे में ऐसी तस्वीर को देखकर आपके जेहन में सवाल उठ रहे होंगे कि अगर इस दुकान पर नेम प्लेट होती तो शायद ही ऐसी गंदी जहनियत का मामला सामने आता, लेकिन नेमप्लेट वाले मामले पर सियासत हो गई और वो मामला कानून के कटघरे में घिर गया। आज वो सियासतदान कहां है? आखिर तथाकथित सियासत के रहनुमा कहां मुंह छिपाते फिर रहे हैं? कहां अपनी सियासी रोटियां सेंकने में जुटे हैं जो नेमप्लेट मामले पर शोर मचा रहे थे। जो कल तक कह रहे थे नेमप्लेट से सामाजिक बहिष्कार होने का खतरा है। कहां हैं वो जो नेमप्लेट को सियासी रंग देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी? 

नेम प्लेट मामले पर उस वक्त तथाकथित नेताओं को लग रहा है कि आसमान सिर पर गिर गया हो लेकिन मजाल है कि ऐसी गंदी सोच पर उनकी जुबान हिल जाए। इतना ही नहीं ऐसी तस्वीरें कई बार आपके आंखों के सामने आई होंगी, लेकिन सोचिए कभी कोई विपक्ष का नेता ऐसे लोगों के खिलाफ मुंह खोलता है। आपका भी जवाब ना में होगा, लेकिन आपको पता है कि आखिर क्यों? ये सारा खेल वोटबैंक है। एक खास वर्ग के वोट के लिए मतलबी सियासतदान ऐसा सालों से करते आए हैं और अब जाकर शायद उनकी पोल पट्टी खुल रही है। विपक्ष का काम है सियासत करना, सियासत करें...सत्ता पक्ष पर सवाल उठाए। सत्ता पक्ष के कारगुजरियों को उजागर करें। 

विपक्ष सकारात्मक सियासत करें तो जनता के बीच एक अलग पहचान बनेगी। विपक्ष की राहें इन बातों से अलहदा है। उसे अपने मतलब के हिसाब से किसी मुद्दे को गलत कहना, मतलब के हिसाब सही कहना है ऐसे में सवाल ये है कब तक विपक्ष तुष्टिकरण के चक्कर में विपक्ष मौन रहेगा? सवाल ये भी है कि ऐसे लोगों को कब तक विपक्ष बचाता रहेगा। कब तक विपक्ष गंदी सोच के लोगों को समर्थन करता रहेगा। क्या हर कुछ विपक्ष वोट बैंक के पैमाने से तोलता रहेगा?

Updated 18:42 IST, September 15th 2024

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