Published 15:51 IST, November 9th 2024
प्रेम रस सिद्धांत: ये किताब आपको सोचने पर मजबूर कर देगी
पता ही नहीं चला, कब सुबह से दोपहर, और दोपहर से शाम हो गयी। लिहाज़ा 300 पन्नों से कुछ अधिक की वह पुस्तक मैं जब पूरी पढ़ के उठा तो शाम के 5 बज चुके थे।
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जगद्गुरु कृपालु महाराज द्वारा लिखी गयी इस किताब में विज्ञान से लेकर अध्यात्म तक और दर्शनशास्त्र से लेकर तर्क के हर पहलू पर रोचक ढंग से बात की गयी है।
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मुझे आज भी याद है, जब मैं सात-आठ साल का था और गर्मी की छुट्टियों में अपनी नानी के घर गया था। वहाँ मेरी ही उम्र के एक लड़के ने मुझसे ये दो सवाल पूछे - “हम कौन हैं?” और “हम दुनिया में क्या करने आये हैं?”। उस समय तो ये बात मज़ाक में आयी-गयी हो गयी पर आज दशकों बाद भी ये सवाल उतने ही प्रासंगिक लगते हैं।
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मैं कई साल इसी उधेड़बुन में रहा। सैकड़ों दर्शनशास्त्र की किताबें पढ़ने के बाद भी मेरी शंकाओं के समाधान के बजाय मैं अलग-अलग सिद्धांतों के जाल में उलझता चला गया, और बुरी तरह भ्रमित हो गया। फिर अध्यात्म में रुचि रखने वाले मेरे एक मित्र ने मेरे 25वें जन्मदिन पर मुझे 'प्रेम रस सिद्धांत' नाम की एक किताब भेंट की।
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इस पुस्तक की रचना पाँचवें मूल जगद्गुरु, जगद्गुरु कृपालु महाराज ने की थी। बाबाओं पर मेरा विश्वास कभी रहा नहीं, इसलिए वो किताब कई दिनों तक मेरे पास पड़ी धूल खाती रही पर मैंने उसे पढ़ने का मन नहीं बनाया। एक दिन खाली समय में मैं उस किताब के कुछ पन्ने पलट कर देखने लगा। विषय-वस्तु कुछ रुचिकर जान पड़ी तो मैं उसे पढ़ने ही बैठ गया।
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पता ही नहीं चला, कब सुबह से दोपहर, और दोपहर से शाम हो गयी। लिहाज़ा 300 पन्नों से कुछ अधिक की वह पुस्तक मैं जब पूरी पढ़ के उठा तो शाम के 5 बज चुके थे। पर मुझे न तो भूख का एहसास था न ही प्यास का। बस मन में एक तीव्र उत्साह था कि मैंने आज इस दुनिया का परम सत्य जान लिया है।
मैंने तुरंत अपने उस दोस्त को फोन किया जिसने मुझे ये पुस्तक भेंट की थी। वो मेरे उत्साह से कुछ हतप्रभ सा प्रतीत हुआ। उसे लगा था कि मुझ जैसा नास्तिक कहाँ किसी बाबा की किताब पढ़ेगा। सोचता तो मैं भी अपने बारे में यही था, पर उस दिन से मेरे अंदर एक गहरा परिवर्तन आ गया।
अब आप भी यह जानने के लिए उत्सुक होंगे कि उस किताब में ऐसा क्या था जिसने मुझे हिला कर रख दिया। अधिकांश पुस्तकें किसी एक पक्ष तक अपने आपको सीमित कर लेती हैं और फिर उसी को सही सिद्ध करने का भरसक प्रयास करती हैं। पर प्रेम रस सिद्धांत की सबसे अच्छी बात मुझे यह लगी कि उसमें विज्ञान से लेकर अध्यात्म तक और दर्शनशास्त्र से लेकर तर्क के हर पहलू पर समन्वयात्मक ढंग से बात की गयी है।
जो भगवान में श्रद्धा रखते हैं, उन्हें तो इस पुस्तक को अपनाने में आसानी होगी ही पर जो लोग हर तथ्य को विज्ञान की कसौटी पर कसना चाहते हैं, उन्हें भी इस पुस्तक के तर्कों के आगे हथियार डालने पड़ेंगे। पुस्तक में 14 अध्याय हैं, और इसकी शुरुआत होती है हमारे जीवन के लक्ष्य से। अब ये एक ऐसा सवाल है जिसको हल करने का प्रयास हम सभी ने कभी न कभी किया होगा। अतः अलग-अलग पक्षों से इसकी चर्चा और फिर अकाट्य समाधान आपको आगे के चैप्टर्स पढ़ने के लिए मजबूर कर देगा।
असली आनंद क्या है और कैसे मिलेगा? हम जीवन में लगातार परिश्रम करते हैं एक अच्छी नौकरी के लिए, रुपया-पैसा कमाने के लिए, बड़ा घर खरीदने के लिए; यह सोचकर कि इससे हमें सुख मिल जायेगा। पर अभी तक, इतनी मेहनत करने के बाद भी, क्या हमें सुख मिला? और अगर कभी मिनट, दो मिनट के लिए ऐसा महसूस हुआ भी तो तुरंत छिन क्यों गया? उसकी जगह गुस्से या लालच ने क्यों ले ली?
क्या भगवान का अस्तित्व सच में है? भगवान कौन है? क्या उसे पाया जा सकता है? उसका प्रैक्टिकल तरीका क्या है? उसका पालन करते समय क्या सावधानियाँ बरतनी होंगी? और अंत में मनुष्य को क्या मिलेगा आदि प्रश्नों का हल लेखक जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने इस पुस्तक में बड़ी ही आसान भाषा में समझाया है।
मैंने जानबूझ कर ऊपर लिखे गए विषयों के बारे में विस्तार नहीं किया है क्योंकि मुझे लगा कि इतने कम शब्दों में मैं इस किताब के गहरे अर्थ के साथ न्याय नहीं कर पाऊँगा। अगर आप इन सवालों का जवाब जानना चाहते हैं और मेरी तरह अपनी जिज्ञासा को हमेशा के लिए शांत करना चाहते हैं तो एक बार खुद प्रेम रस सिद्धांत पढ़ कर देख सकते हैं।
15:41 IST, November 9th 2024