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Published 22:45 IST, April 15th 2021

1952 में धारा 370 के खिलाफ सबसे पहले प्रस्ताव पास करने वाला था RSS- रतन शारदा

1952 में धारा 370 के विरुद्ध सबसे पहले प्रस्ताव पास करने वाला संघ था. प्रजा परिषद् को पूर्ण सहयोग देकर सारे जम्मू कश्मीर और भारत को जगाने वाले संघ के स्वयमसेवक थे.

Reported by: Ratan Sharda
| Image: self

आज रिपब्लिक भारत पर अर्नब गोस्वामी के कार्यक्रम ‘पूछता है भारत’ में एक कश्मीरी छद्म हिन्दू प्रेमी ने कहा – “कश्मीरी पंडित हमारे भाई हैं, वे आयें, हमारे घर में रहे. संघ कौन होता है यह कहने वाला कि कश्मीरी हिन्दू कश्मीर घटी में फिर बसेंगे.” उसने यह भी कहा, “संघ यू ही बात कर रहा है, बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना.” पहले तो यह बात तो दीगर है कि कश्मीरी हिन्दू कोई मेहमान नहीं जो उनके घर में रहे. उनके मकान, उनकी जायदाद जो हडपी है, वह वापस हो, वे ससम्मान वापस घर आयें.

यह बहस छिड़ी थी संघ के सरकार्यवाह दत्ताजी होसबले जी के नवरेह उत्सव के उपलक्ष में भाषण से. उन्होंने कहा, “यह संकल्प हम सबने लिया है. सात बार विस्थापित हुए हिन्दू, अब और विस्थापित नहीं होंगे.” उन्होंने यह भी कहा कि सरकार कानून बना सकती है, वातावरण बना सकती है, परन्तु समाज को भी साथ में लगना होगा, एक होना होगा.

“बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना” सुन कर मुझे मनोरंजक लगा और दुखद भी. अब्दुल्ला आये ईरान से, फिर अन्य दुनिया के भागों से और कश्मीर को धीरे-धीरे नरक बना दिया. जो कश्मीर के, हिन्दू भारत के संस्कृति और ज्ञान के स्रोत हैं, उन्हें इन अब्दुल्लाओं ने अपने ही घर से पराया कर दिया. जैसा दत्ताजी ने कहा, 1949-1990 का सातवां विस्थापन यह अंतिम होगा. मुझे याद आ गई, माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी की, जिन्होंने 1949 के गुजरात दंगों के बाद लोकसभा में गरज कर कहा था, “अब हिन्दू मार नहीं खायेगा.” जी हां यह दंगे 2002 से भी विध्वंसक थे. कई दिनों तक चलते रहे थे. कांग्रेस सरकार छिप कर बैठी थी, असहाय.

जहां तक संघ और कश्मीर का प्रश्न है, संघ के बहुत गहरे रिश्ते कश्मीर से हैं, हिन्दू समाज का संगठन होने के कारण. 1949 में कश्मीर के भारत में विलय के चल रहे अप्रिय घटनाक्रम को तोड़ने के लिए सरदार पटेल ने संघ के सरसंघचालक गुरूजी को महाराज हरी सिंह से मिलने का सुझाव दिया. वे जानते थे कि संघ के बारे में उनके विचार अच्छे थे. गुरूजी गए और उनसे भेंट की. महाराज तैयार हो गए थे, परन्तु नेहरु और शेख अब्दुल्ला की चालों के कारण मामला अटक गया. नेहरु किसी भी कीमत पर अब्दुल्ला के हाथ कश्मीर सौंपना चाहते थे. इस घटना के कई सबूत अब हैं.

पाकिस्तान के 1949 में हुए हमले के समय संघ के स्वयंसेवक अपनी जान पर खेल कर जम्मू कश्मीर को बचाने में सफल रहे. सैंकड़ों स्वयंसेवक बलिदान हुए. पहले डोगरा फौजों के साथ और फिर भारतीय सेना के साथ रण में उनको सहयोग देते हुए. पुल बनाना, सडकें बनाना, हवाई पट्टी बनाना, हवाई जहाज से गिराई रसद इकठ्ठा करके सेना को देना. इन सब में यह स्वयंसेवक बलिदान हुए. जिसे और जानकारी चाहिए, वह ‘ज्योति जला निज प्राण की’ पुस्तक पढ़ सकता है.

1952 में धारा 370 के विरुद्ध सबसे पहले प्रस्ताव पास करने वाला संघ था. प्रजा परिषद् को पूर्ण सहयोग देकर सारे जम्मू कश्मीर और भारत को जगाने वाले संघ के स्वयमसेवक थे. इसी संघर्ष में जन संघ के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुख़र्जी बलिदान हो गए.

1960 के बाद सऊदी अरब के पैसों से जो कट्टरपंथी वहाबी इस्लाम जडें जमाने लगा तो उसके विरुद्ध संघ ने एक बार नहीं, बार-बार आगाह किया. संघ के प्रस्तावों में सबसे अधिक प्रस्ताव कश्मीर पर जारी किये गए. 24 प्रस्ताव पारित हुए. केवल पारित ही नहीं हुए, बल्कि उन पर यथासंभव कार्यवाही भी की.  1949 से 90 में जब परिस्थिति बिगड़ने लगी तो कश्मीर के स्वयंसेवक जब तक संभव हुआ डट कर खड़े रहे. 1949 में न्यायमूर्ति नीलकंठ गंजू की न्यायालय के सामने निर्मम हत्या कर दी गयी और आतंकवादियों ने घोषणा की कि जो उनकी लाश को हाथ लगाएगा उसका अंजाम बुरा होगा. तब संघ के स्वयंसेवक उनकी लाश को चुनौती के साथ उठा कर लाये और उनका सामान के साथ अंतिम संस्कार किया. 1490-90 में जब कश्मीरी हिन्दू बड़ी संख्या में बंदूकों के साए में कश्मीर घाटी छोड़ कर निकले तो उनके लिए जम्मू में सहायता के लिए सबसे पहले संघ के स्वयंसेवक खड़े थे. उन्होंने जम्मू कश्मीर सहायता समिति का गठन किया और जो यथा संभव सहायता कर सकते थे, वह की.

संघ एकमात्र संगठन है जिसने 1952 से 2019 तक धारा  360 और 35A को समाप्त करने के लिए लगातार संघर्ष किया और कश्मीरी हिन्दुओं का विषय कभी सेक्युलर पंथियों द्वारा दबाने नहीं दिया. साथ ही 35A से पीड़ित लाखों वविस्थापितों, अल्पसंख्यक, दलित और महिलाओं के प्रश्न को ज्वलंत रखा, जिसके कारण आखिर मोदी जी की सरकार बनी और यह धाराएँ हटीं और उनको न्याय मिला. फिर संघ नहीं बोलेगा कश्मीर पर तो अब्दुल्ला परिवार बोलेगा? या पाकिस्तान परस्त राजनैतिक भेड़िये और आतंकवादी बोलेंगे?

अब जब कश्मीरी हिन्दुओं को पुनर्स्थापित करने का प्रश्न है, तो संघ नहीं तो कौन खड़ा रहेगा? जैसा दत्ता जी ने कहा, यह हिन्दू समाज का कर्त्तव्य है कि वह एकता के साथ इस समस्या को सुलझाने के लिए कार्य करे. सरकार ने कानून बदल दिए, वातावरण तैयार किया. अब समाज को आगे बढ़ना है.

जी हाँ, यदि किसी को कश्मीरी हिन्दुओं के बारे में बोलने का हक़ है, तो सबसे पहले संघ को है. बेगानी शादी में अब्दुल्ला आये थे, जिन्होंने यहाँ के मूल कश्मीरी हिन्दुओं को मुसलमान बनाया, उनको जड़ों से काटा. अब यहा के मूल निवासियों को, हिन्दुओं को, फिर ससम्मान स्थान देना होगा. उनके ही DNA के वंशज जो मुसलमान बने हैं, उन्हें भी अपने आप को उन्ही प्राचीन जड़ों से जोड़ना होगा, चाहे वो पूजा किसी की भी करें. तभी चिर शांति जम्मू कश्मीर में स्थापित होगी.

(नोट : इस लेख के अंदर लिखे किए गए विचार और राय लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। लेख में दिखाई देने वाले तथ्य, विश्लेषण और अनुमान रिपब्लिक भारत / रिपब्लिक वर्ल्ड / ARG Outlier Media Pvt. Ltd. के विचारों को नहीं दर्शाते हैं।)

Updated 10:21 IST, April 16th 2021

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