पब्लिश्ड 22:28 IST, January 15th 2025
Mahakumbh 2025: मोह-माया से दूर, कठिन तपस्या और सच्ची साधना...महिला नागा साधुओं की भी है रहस्यमयी दुनिया
आज हम आपको महाकुंभ के उस अनछुए पहलू से रूबरू कराएंगे, जिसे जानने की उत्सुकता हर श्रद्धालु के मन में होती है। यहां आपको अनोखी जानकारी मिलेगी।
- भारत
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Mahila Naga Sadhu: आज हम आपको महाकुंभ के उस अनछुए पहलू से रूबरू कराएंगे, जिसे जानने की उत्सुकता हर श्रद्धालु के मन में होती है। महाकुंभ के धार्मिक महत्व से लेकर अखाड़ों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि तक, नागा साधुओं की परंपरा और उनके अनुशासन की अनोखी जानकारी आपको मिलेगी। यहां आपको महिला नागा साधुओं की रहस्यमयी दूनिया के बारे में भी जानने को मिलेगा।
महाकुंभ, जिसे भारतीय संस्कृति का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माना जाता है, हर 12 साल में 4 प्रमुख तीर्थ स्थानों हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में आयोजित किया जाता है। यह आयोजन सिर्फ आस्था और परंपरा का उत्सव नहीं है, बल्कि यह भारतीय सनातन संस्कृति की गहराइयों में उतरने का एक अवसर भी है।
नागा साधुओं का अनोखा संसार
महाकुंभ में 13 अखाड़ों का प्रमुख स्थान है, जिन्हें संत समाज का आधार माना जाता है। इनमें शैव और वैष्णव परंपरा के नागा साधु प्रमुख हैं। अखाड़ों की स्थापना का उद्देश्य धर्म और संस्कृति की रक्षा के साथ-साथ समाज को मार्गदर्शन देना भी है। सभी अखाड़े में धर्म ध्वजा का खास महत्व है, जो उनकी पहचान और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक होती है। नागा साधु बनने की प्रक्रिया अत्यंत कठिन और अनुशासन पूर्ण होती है। दीक्षा के दौरान साधु मोह-माया से पूरी तरह मुक्त हो जाते हैं और अपने श्राद्ध कर्म स्वयं करते हैं। नागा साधु 24 घंटे में सिर्फ एक बार भोजन करते हैं और अपनी इंद्रियों पर पूर्ण नियंत्रण रखते हैं। उनके शरीर पर लगाई जाने वाली भस्म सांसारिक बंधनों से मुक्ति का प्रतीक मानी जाती है।
महिला नागा साधुओं का भी योगदान
महाकुंभ में नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया हमेशा से श्रद्धालुओं और दर्शकों के लिए आकर्षण का केंद्र रही है। शिव भक्ति में लीन, मोह-माया से दूर नागा साधुओं का जीवन अनोखा और प्रेरणादायक होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पुरुष नागा साधुओं की तरह महिला नागा साधु भी आध्यात्मिक साधना के पथ पर चलती हैं? इनका जीवन न सिर्फ कठिन तपस्या और त्याग का उदाहरण है, बल्कि उनकी दिनचर्या और परंपराएं भी अद्भुत रहस्यों से भरी हुई हैं। कुछ सालों में महिला नागा साधु भी इस परंपरा का हिस्सा बनी हैं। हालांकि, उन्हें कई सामाजिक और पारंपरिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। उनके अनुशासन और तपस्या का स्तर भी उतना ही कठोर होता है जितना पुरुष नागा साधुओं का।
महिला नागा साधुओं का जीवन, परंपराएं और रहस्य
महाकुंभ में नागा साधुओं की तरह महिला नागा साधुओं का जीवन भी उतना ही अनोखा और रहस्यमय है। वे भी अपने जीवन को पूरी तरह से ईश्वर को समर्पित कर देती हैं और गृहस्थ जीवन को त्याग कर कठोर तपस्या में लीन रहती हैं। यहां आप महिला नागा साधुओं के जीवन, उनके नियम, दिनचर्या और उनकी तपस्या के अनछुए पहलुओं को जान पाएंगे।
मोह-माया से दूर रहती हैं महिला नागा साधु
महिला नागा साधु सांसारिक मोह-माया से दूर रहती हैं। उनका पूरा दिन पूजा-पाठ और साधना में व्यतीत होता है। उनकी दिनचर्या शिव, पार्वती और माता काली की भक्ति से शुरू होकर आध्यात्मिक साधना पर ही समाप्त होती है।
महिला नागा साधु कैसे बनती हैं?
महिला नागा साधु बनने की प्रक्रिया काफी कठिन और अनुशासन से भरी होती है। नागा साधु बनने से पहले उन्हें 10-15 साल तक कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। गुरु को यह विश्वास दिलाना पड़ता है कि वे ईश्वर के प्रति समर्पित और कठिन साधना के योग्य हैं। नागा साधु बनने से पहले जीवित रहते हुए अपना पिंडदान और मुंडन कराना अनिवार्य होता है।
महिला नागा साधुओं के वस्त्र और नियम
महिला नागा साधुओं के लिए दिगंबर (निर्वस्त्र) रहना निषिद्ध है। वे गेरुए रंग का एक बिना सिला कपड़ा पहनती हैं, जिसे 'गंती' कहा जाता है। माथे पर तिलक लगाना और पूर्ण रूप से सादगी से रहना उनके जीवन का हिस्सा है।
महिला नागा साधुओं की दिनचर्या और खानपान
महिला नागा साधु ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शिवजी का जाप करती हैं, दोपहर में भोजन के बाद भी साधना करती हैं और शाम को दत्तात्रेय भगवान की आराधना में वक्त बिताती हैं। उनका भोजन अत्यंत सादा होता है, जिसमें कंदमूल, फल, जड़ी-बूटियां और पत्तियां शामिल होती हैं।
महिला नागा साधु कहां रहती हैं?
महाकुंभ के दौरान महिला नागा साधुओं के लिए अखाड़ों में विशेष स्थान बनाए जाते हैं, जिन्हें 'माई बाड़ा' कहा जाता है। यहां वे बाकी साध्वियों के साथ रहती हैं और शाही स्नान में हिस्सा लेती हैं। महिला नागा साधु न सिर्फ शिव भक्ति का अद्भुत उदाहरण हैं, बल्कि उनकी कठिन तपस्या और साधना समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है। महिला नागा साधुओं की यह रहस्यमयी और प्रेरणादायक दुनिया भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक परंपरा की गहराइयों को समझने का मौका देती है।
5 फीट लंबी जटा वाले बाबा
महाकुंभ क्षेत्र में हर बार अनूठी हस्तियां देखने को मिलती हैं। हरिद्वार से आए एक बाबा, जिनकी जटा 5 फीट लंबी है, वह मुख्य आकर्षक बने हुए हैं। 1998 में दीक्षा लेने के बाद से उन्होंने अपने बाल नहीं कटवाए हैं, जो अब उनकी तपस्या और अनुशासन का प्रतीक बन चुके हैं। महाकुंभ न सिर्फ धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह भारत की आध्यात्मिक धरोहर का प्रतीक है। नागा साधुओं की परंपरा, अखाड़ों का महत्व और उनके अनुशासन के माध्यम से महाकुंभ हमें हमारी संस्कृति और मूल्यों की गहराइयों से जोड़ता है।
अपडेटेड 23:55 IST, January 15th 2025