Published 16:20 IST, September 23rd 2024
Delhi: आतिशी बनीं खडाऊं वाली CM... तो छिड़ी सियासी बहस, क्या कहता है संविधान? जानिए एक्सपर्ट की राय
दिल्ली में CM आतिशी ने सोमवार को पदभार संभाला। हालांकि जिस कुर्सी पर अरविंद केजरीवाल बैठे थे, उसे आतिशी ने खाली छोड़ा है और अपने लिए अलग कुर्सी लगाई है।
Advertisement
अखिलेश राय/डालचंद
Delhi CM Atishi: दिल्ली में मुख्यमंत्री आतिशी हैं, लेकिन दफ्तर में मुख्यमंत्री वाली कुर्सियां 2 हैं। जिस कुर्सी पर बैठकर अब तक अरविंद केजरीवाल सरकार चला रहे थे, उसे आतिशी ने खाली छोड़ा है और अपने लिए ठीक बगल में कुर्सी लगाई है। आतिशी एक तरीके से दिल्ली की 'खडाऊं वाली CM' बनी हैं। नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री आतिशी ने 23 सितंबर को अपना पदभार संभाला और कार्यालय पहुंचते ही खुद को 'खडाऊं वाली CM' के तौर पर घोषित कर दिया। जैसे अयोध्या में भगवान राम के खड़ाऊ रखकर उनके भाई भरत ने शासन चलाया, ठीक वैसे ही CM आतिशी दिल्ली में सरकार चलाने जा रही हैं।
Advertisement
सवाल उठता है कि खुद सीएम होने के बावजूद आतिशी मुख्यमंत्री की कुर्सी को छोड़कर बगल में दूसरी कुर्सी पर बैठ गई हैं, क्या ये संवैधानिक तौर पर सही है कि नहीं। सवाल भारतीय जनता पार्टी की तरफ से भी उठने लगे हैं। ऐसे में सीएम दफ्तर में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर संविधान क्या कहता है, इसको एक्सपर्ट के जरिए समझने की कोशिश करते हैं। हालांकि उसके पहले बीजेपी के सवालों को भी जानना जरूरी है।
बीजेपी ने आतिशी को लेकर क्या सवाल उठाए?
भारतीय जनता पार्टी के सांसद मनोज तिवारी कहते हैं- 'आतिशी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है और अगर वो खाली कुर्सी दिखाती हैं तो इससे कई सवाल उठते हैं। इसका मतलब है कि वो खुद को मुख्यमंत्री नहीं मानती हैं। अगर वो खुद मुख्यमंत्री होते हुए किसी और को मुख्यमंत्री मानती हैं तो ये सीएम के पद और संविधान का अनादर है। मैंने दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी को पत्र लिखा है। मेरा पत्र कौन पढ़ेगा? कोई मुख्यमंत्री कैसे कह सकता है कि वो कठपुतली हैं? वो जनता की भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे हैं।'
Advertisement
CM दफ्तर में अलग कुर्सी पर आतिशी ने क्या कहा?
आतिशी कहती हैं कि मेरी भावनाएं भरत जैसी ही हैं, जब भगवान राम 14 साल के लिए वनवास गए थे और भरत को अयोध्या का शासन संभालना पड़ा था। वैसे ही दिल्ली सीएम आवास में केजरीवाल के लिए कुर्सी खाली रहेगी। आतिशी कहती हैं कि दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी अरविंद केजरीवाल की है। उम्मीद है लोग फरवरी में होने वाले चुनावों में केजरीवाल को वापस लाएंगे, तब तक उनकी कुर्सी सीएम कार्यालय में ही रहेगी। उनका कहना है कि जैसे भरत ने 14 साल भगवान श्रीराम की खड़ाऊं रखकर अयोध्या का शासन संभाला, वैसे ही मैं 4 महीने दिल्ली की सरकार चलाउंगी।
Advertisement
सियासत से इतर संविधान में नियम क्या?
वैसे एक मुख्यमंत्री अपने दफ्तर में अपने पसंद की कुर्सी पर बैठ सकता है, जिसमें कुर्सी का रंग अलग हो सकता है। डिजाइन अलग हो सकती है। हालांकि यहां बात दफ्तर में मुख्यमंत्री की कुर्सी होते हुए अलग कुर्सी पर बैठने की है, तो इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी दुबे कहते हैं, 'संवैधानिक तौर पर देखा जाए तो कुर्सी खाली छोड़ देना और दूसरी कुर्सी पर बैठना कहीं से भी संविधान का उल्लंघन नहीं है।'
वकील अश्विनी दुबे ये भी कहते हैं कि राजनीति में संवैधानिक नैतिकता की एक परंपरा रही है, जिसको ध्यान में रखा जाना चाहिए और उस परंपरा में इस तरह कुर्सी खाली छोड़ने या दूसरी कुर्सी रखना नैतिक तौर पर सही नहीं कहा जा सकता है। यहां नैतिक परंपराओं का भी ख्याल रखा जाना चाहिए।
Advertisement
16:20 IST, September 23rd 2024