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पब्लिश्ड 07:42 IST, January 1st 2025

नया साल नया नियम... इस देश में मौत की सजा खत्म, राष्ट्रपति ने कानून को दी मंजूरी, जानें पूरा मामला

Zimbabwe: नए साल के आगाज से ठीक एक दिन पहले जिम्बाब्वे ने बड़ा फैसला लिया है जिसके तहत मौत की सजा को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है।

Reported by: Digital Desk
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court hammer | Image: Meta AI

Zimbabwe: नए साल के मौके पर दुनिया जश्न में डूबी हुई है। 12 बजते ही दुनियाभर के लोगों ने नए साल का स्वागत किया। नए साल के आगाज से ठीक एक दिन पहले जिम्बाब्वे ने बड़ा फैसला लिया है जिसमें मौत की सजा को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है। यानि कि अब देश में मौत की सजा नहीं दी जाएगी।

जिम्बाब्वे ने मंगलवार, 31 दिसंबर को आधिकारिक तौर पर मौत की सजा को खत्म कर दिया। राष्ट्रपति एमर्सन मनांगाग्वा ने कानून पर हस्ताक्षर किए जिसके तहत अब मौत की सजा पाने वाले लगभग 60 कैदियों की सजा को जेल में बदल दिया जाएगा।

दक्षिणी अफ्रीकी देश में फांसी पर रोक 

गौरतलब है कि साल 2005 से दक्षिणी अफ्रीकी देश में फांसी पर रोक लगा रखी है। हालांकि अदालतों ने हत्या, देशद्रोह और आतंकवाद सहित अपराधों के लिए मौत की सजा देना जारी बरकरार रखा है। मुत्युदंड उन्मूल अधिनियम के अनुसार, अब किसी भी जुर्म के लिए मौत की सजा दी जा सकती है। इसके अलावा वर्तमान में मौत की सजा काट रहे कैदियों के दंड को जेल की सजा में तब्दील करना होगा।

किस स्थिति में निलंबित की जा सकती है सजा?

एक प्रावधान के अनुसार, आपातकाल की स्थिति के दौरान मौत की सजा को निलंबित किया जा सकता है। वहीं एमनेस्टी इंटरनेशनल ने एक बयान में कहा है कि साल 2023 के आखिर में जिम्बाब्वे में कम से कम 59 लोगों को मृत्युदंड दिया गया था। 

अंतर्राष्ट्रीय अधिकार समूह अधिकारियों से निवेदन करते हुए कहता है कि वह सार्वजनिक आपातकाल के समय पर मौत की सजा के लिए इजाजत देने वाले विधेयक में संशोधन में शामिल खंड को हटाकर मृत्युदंड को पूरी तरह से खत्म करने के लिए आगे बढ़ा जाए। 

अफ्रीका के इतने देशों ने नियमों में किया बदलाव

द हेराल्ड अखबार की एक रिपोर्ट में बताया गया कि मौत की सजा खत्म होने के बाद मृत्युदंड भोग रहे 63 कैदियों को सजा सुनाने के लिए फिर से अदालत की ओर रुख करना होगा। एमनेस्टी का कहना है कि अफ्रीका के लगभग 24 ऐसे देश हैं जिन्होंने अमूमन सभी अपराधों के लिए मौत की सजा को खत्म कर दिया है। वहीं दो अतिरिक्त देशों ने इसे सिर्फ सामान्य अपराधों के लिए खत्म किया है।

बताया जाता है कि 1960 में गुरिल्ला युद्ध के दौरान एक ट्रेन पर हमला करने के लिए मृत्युदंड की सजा सुनाए जाने से राष्ट्रपति मनांगाग्वा इस सजा के मुखर विरोधी रहे।

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अपडेटेड 07:55 IST, January 1st 2025