Published 20:43 IST, December 11th 2024
कान में बाली, फ्रेंच कट दाढ़ी... 1996 वर्ल्ड कप में कांबली के आंसुओं का सैलाब, जिसमें डूब गया करियर
हमने विनोद कांबली को 1996 विश्वकप के सेमीफाइनल में रोते हुए देखा था। यहीं से कांबली के पतन का दौर शुरू हो गया था और क्रिकेट फैंस के बीच उनकी इमेज खराब हो गई थी।
कहते हैं कि सफलता अगर कम उम्र में मिल जाए तो उसे संभाल पाना एक बड़ी चुनौती होती है। कुछ ऐसा ही मामला भारतीय टीम के पूर्व क्रिकेटर विनोद कांबली के साथ भी हुआ था। महज 21 साल की उम्र में एक कैलेंडर में ही टेस्ट क्रिकेट में 1000 रनों का आंकड़ा 54 से भी अधिक औसत प्रति इनिंग के हिसाब से और इस सबसे बड़ी बात दो दोहरे शतक भी शामिल थे। कांबली को कम उम्र मिली इस सफलता से वो मीडिया की सुर्खियों में छा गए और अपने क्रिकेट की प्रैक्टिस से उनका ध्यान भटकने लगा। अब कांबली पैसे, शोहरत और विज्ञापन की ओर भी आकर्षित हो रहे थे, वहीं उनके साथ कोई ऐसा भी था जो इन सब बातों से परे सिर्फ अपने क्रिकेट पर फोकस कर रहा था।
ये कोई और नहीं सचिन तेंदुलकर थे जो लगातार एकाग्र होकर अपनी क्रिकेट प्रैक्टिस को फोकस कर रहे थे और लगातार सीख रहे थे। दोनों ने एक साथ करियर शुरू किया था आज सचिन तेंदुलकर कहां हैं और विनोद कांबली कहां? विनोद कांबली कम उम्र में ही क्रिकेट छोड़ ग्लैमर की दुनिया की ओर चले गए जिसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा। कभी कांबली करोड़ों में खेल रहे थे लेकिन उनका बुढ़ापा आज बीसीसीआई की पेंशन पर कट रहा है। इसके पीछे कोई और नहीं सिर्फ कांबली की अनुशासनहीनता है। कम उम्र में ही सफलता हाथ लगने पर कोई भी अपने लक्ष्य को भूलकर रास्ता भटक सकता है कुछ ऐसा ही विनोद कांबली के साथ भी हुआ।
जब मिली शोहरत, ग्लैमर में डूब गए कांबली
कांबली ने एक के बाद एक करके टेस्ट क्रिकेट में एक कैलेंडर में ही दो दोहरे शतक जमा दिए थे। ऐसा करने वाले वो सबसे कम उम्र के बल्लेबाज थे। कांबली को कम उम्र में मिली शोहरत हजम नहीं हो पाई। क्रिकेट के ग्राउंड पर ही कांबली ग्लैमरस लुक में दिखाई देने लगे थे। कांबली मैदान में कानों में बाली, फ्रेंच कट दाढ़ी और सिर मुंडवाकर कुछ ऐसे लुक में दिखाई देते थे कि मानों वो भारतीय खिलाड़ी हों ही नहीं। ग्लैमर ने कांबली का ध्यान क्रिकेट से खींचा जिसकी वजह से कांबली आज ऐसी हालत में पहुंच गए हैं। हमने विनोद कांबली को 1996 विश्वकप के सेमीफाइनल में रोते हुए देखा था। यहीं से कांबली के पतन का दौर शुरू हो गया था और क्रिकेट फैंस के बीच उनकी इमेज खराब हो गई थी।
पारिवारिक जीवन में भी रहे असफल
ऐसा नहीं है कि विनोद कांबली सिर्फ क्रिकेट ग्राउंड पर ही फ्लॉप रहे। कांबली अपने निजी जीवन में भी सफल नहीं हो सके। विनोद कांबली ने दो शादियां की थीं। पहली शादी कांबली ने साल 1998 में नोएल लुईस के साथ की थी। नोएल लुईस पुणे के एक होटल में रिसेप्सनिस्ट थीं। नोएल क्रिस्चियन धर्म से थीं। कांबली ने ये लव मैरिज की थी। लेकिन बहुत जल्दी ही कांबली का फैसला गलत साबित हो गया और ये शादी कुछ ही सालों में टूट गई। इसके बाद विनोद कांबली ने एक मॉडल से शादी की। इस मॉडल का नाम एंड्रिया हेविट है। एंड्रिया हेविट भी क्रिस्चियन धर्म से थीं। दूसरी शादी के पहले विनोद कांबली ने अपना धर्म परिवर्तन भी कर लिया था। वो हिन्दू धर्म से ईसाई धर्म में चले गए। कांबली का एक बेटा जीसस क्रिस्टियानो और एक बेटी है।
1996 विश्वकप के सेमी फाइनल कांबली के करियर का टर्निंग प्वाइंट
1996 विश्वकप का पहला सेमीफाइनल विनोद कांबली के करियर का बड़ा टर्निंग प्वाइंट बना। ये मुकाबला 13 मार्च 1996 के दिन कोलकाता के ईडेन गार्डन में खेला गया था। टॉस जीतकर टीम इंडिया ने मेहमान टीम को पहले बल्लेबाजी के आमंत्रित किया था। स्ट्राइकर गेंदबाज जवागल श्रीनाथ ने मैच के पहले ओवर में पूरे विश्कप में तहलका मचाने वाली जोड़ी सनथ जयसूर्या और रोमेश कालूवितर्णा को पवेलियन लौटाकर खलबली मचा दी थी। लेकिन इस मुकाबले में कप्तान अर्जुन रणतुंगा, रौशन महानामा और अरविंद डीसिल्वा जैसे बल्लेबाजों के थोड़े-थोड़े योगदान से 251 रन के सम्मानजनक स्कोर तक पहुंच गया था। इसके जवाब में टीम इंडिया की शुरुआत तो खराब रही जब स्कोर बोर्ड पर 10 रन भी नहीं जुड़े थे और नवजोत सिंह सिद्धू आउट होकर पवेलियन चले गए थे। इसके सचिन तेंदुलकर ने संजय मांजरेकर के साथ मिलकर पारी को आगे बढ़ाया और ये लगने लगा था कि अब भारत ने मैच पर पकड़ बना ली है। तभी दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से सचिन रन आउट हो गए और टीम ताश के पत्तों की तरह बिखर गई।
1996 विश्वकप के सेमी फाइनल में बनें विलेन!
विनोद कांबली इस मुकाबले में एक तरफ जमे हुए थे और एक तरफ से टीम इंडिया के विकेटों के पतझड़ लगे हुए थे। ऐसे में भारतीय क्रिकेट फैंस को लगातार गुस्सा आ रहा था कि आखिर कांबली स्ट्राइक अपने पास क्यों नहीं रखता और जब रखता है तो रन क्यों नहीं बनाता। दरअसल इसमें कांबली की कोई गलती भी नहीं थी। कोलकाता की पिच अचानक से खराब हो गई और उम्मीद से ज्यादा टर्न लेने लगी थी। गेंद टप्पा लेने के बाद किधर टर्न होगी इस बात का अंदाजा गेंदबाज को भी नहीं हो रहा था। ऐसे में रन बनाना बहुत मुश्किल हो गया था। तभी दर्शकों ने स्टेडियम में शोर-शराबा शुरू कर दिया और मैच रेफरी को बीच में ही मैच रोकना पड़ा था। उस समय स्कोर बोर्ड पर भारत ने 34.1 ओवर में 8 विकेट के नुकसान पर 120 रन बनाए थे। विनोद कांबली 29 गेंदों पर 10 रन बनाकर नाबाद थे। इस मुकाबले को रोककर श्रीलंका को विजयी घोषित कर दिया गया और दर्शकों ने हंगामा शुरू कर दिया। इसके बाद विनोद कांबली रोते हुए स्टेडियम से पवेलियन की ओर जा रहे थे। कांबली के इन्हीं आंसुओं के सैलाब में उनका क्रिकेट करियर भी बह गया। इसके बाद वनडे क्रिकेट में विनोद कांबली ने वापसी तो की लेकिन वो कुछ खास नहीं कर पाए।
Updated 21:38 IST, December 11th 2024