बांग्लादेश में जो हो रहा है.वो आंखें खोलने वाला है.खासकर उनलोगों के लिए जो मजहब देखकर सियासी मज़मून बदल लेते हैं. मानवता का पाठ पढ़ाने लगते हैं. ऐसे लोग अभी कहां हैं. आखिर मौन क्यों हैं. हिंदुओं पर हो रहे बर्बरता पर क्या उनकी जुबां सील गई है। जो कल तक संसद में भगवान शिव की तस्वीरें दिखा रहे थे . क्या उनकी आत्मा बांग्लादेश में हो रहे अत्याचार पर सो चुकी है? आपको बता दें, ये वही विपक्ष है जो कल तक संविधान की दुहाई दे रहा था. लेकिन बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद ऐसा लगता है कि उनका संविधान से भरोसा उठ गया है. और अब सत्ता का सुख पाने के लिए बांग्लादेश जैसे हालात भारत में भी होने की दुआएं कर रहे हैं। ऐसे में सवाल ये है कि क्या सियासी पार्टियों के लिए वोटबैंक से ऊपर कुछ भी नहीं है? सवाल ये है कि कब तक मानवता के नाम पर तथाकथित सियासतदान  ऐसे 'जिहादी सोच' पर पर्दा डालते रहेंगे?  और सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या सियासदानों का खास वर्ग बांग्लादेश जैसे हालात भारत में होने की दुआएं कर रहा है?