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पब्लिश्ड 17:13 IST, December 3rd 2024

विनायक चतुर्थी पर गणेश जी के इन मंत्रों का करें जाप, यहां दी गई आरती से करें उन्हें प्रसन्न

यदि आप मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को भगवान गणेश के मंत्रों का जाप करना चाहते हैं तो यहां दिए गए मंत्र आपके काम आ सकते हैं।

Lord Ganesha
गणेश जी | Image: Pexels

Vinayak chaturthi 2024: बता दें हर महीने दो पक्ष आते हैं। शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी विनायक चतुर्थी कहलाती है और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी संकष्टी चतुर्थी कहलाती है। यह भगवान गणेश को समर्पित है। इस बार मार्गशीर्ष माह की विनायक चतुर्दशी मनाई जा रही है। ऐसे में इस विनायक चतुर्थी पर गणेश भगवान के कुछ मंत्रों का जाप किया जाए और उनकी आरती की जाए तो इससे भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं। जानते हैं उनकी आरती और मंत्रों के बारे में…

श्री गणेश की आरती

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे,मूसे की सवारी॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत,निर्धन को माया॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
'सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो, जाऊं बलिहारी॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

गणेश जी का स्तोत्र मंत्र:

प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम।
भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये।।
प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम।
तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम।।
लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम्।।
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो।।
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम्।।
जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय:।।
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:।।

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Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्‍यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।

अपडेटेड 17:18 IST, December 3rd 2024