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पब्लिश्ड 22:58 IST, August 15th 2024

Putrada Ekadashi Vrat Katha: व्रत का चाहते हैं पूरा फल? तो पूजा में पढ़ें ये कथा, तभी सफल होगी पूजा

Ekadashi Vrat Katha: अगर आप पुत्रदा एकादशी व्रत का पूरा फल पाना चाहते हैं, तो इस दिन पूजा में व्रत की कथा पढ़ना न भूलें। तभी आपको इस एकादशी का पूरा फल मिलेगा।

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पुत्रदा एकादशी व्रत कथा | Image: Freepik

Putrada Ekadashi Vrat Katha: हिंदू धर्म में पूजा-पाठ का बेहद खास महत्व माना जाता है। वहीं जब बात किसी खास व्रत की हो तो उसका महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है। इसी तरह साल में एक बार आने वाली पुत्रदा एकादशी का व्रत भी है। यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित किया गया है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से पुत्र प्राप्ति की कामना पूरी होने के साथ कई और फायदे भी होते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस व्रत को रखने वाले लोगों को विष्णु भगवान की विधिपूर्वक पूजा करने के साथ-साथ व्रत कथा भी पढ़ना जरूरी होता है, नहीं तो ये पूजा अधूरी मानी जाती है।

शास्त्रों के मुताबिक जब भी कोई विशेष पूजा-अर्चना या व्रत किया जाता है, तो इसमें विधिवत पूजा-पाठ के साथ-साथ व्रत या पूजा की कथा पढ़ना भी जरूरी होता है, क्योंकि बिना कथा के पूजा अधूरी होती है और साधक को इसका पूरा फल नहीं मिलता है। ऐसे में अगर आप भी साल में एक बार पड़ने वाली पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने जा रहे हैं, तो इस दिन पूजा के साथ व्रत कथा का पाठ जरूर करें। आइए जानते हैं इस पुत्रदा एकादशी पर कौन सी कथा पढ़नी चाहिए।

पुत्रदा एकादशी व्रत में कैसे करें पूजा?

  • पुत्रदा एकादशी के दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को सूर्योदय से पहले नहा-धोकर सूर्य देव को जल चढ़ाएं और फिर व्रत का संकल्प लें।
  • इसके बाद पूजा स्थान पर गंगाजल छिड़कर उस जगह को पवित्र करें। फिर पूजा की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाएं।
  • चौकी पर विष्णु जी की मूर्ति पूर्व दिशा में स्थापित करें।
  • दाएं ओर कलश पर मौली बांधकर उसे स्थापित करें। उस पर लाल कपड़ा बांधें और उसकी पूजा करें।
  • इसके बाद विष्णु जी का पंचामृत, गंगाजल से अभिषेक करें, फिर पीले वस्त्र पहनाएं। इसके बाद हल्दी, कुमकुम, चंदन, इत्र आदि पूजन सामग्री अर्पित करें।
    मीठे का भोग लगाएं, उसमें तुलसीदल जरुर रखें और बाद में पुत्रदा एकादशी की कथा सुनें।
  • आखिरी में आरती करें और फिर जरुरतमंदों को अन्न, वस्त्र आदि का दान करें।
  • दूसरे दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएं और शुभ मुहूर्त में व्रत खोलें।

सावन की पुत्रदा एकादशी व्रत में जरूर पढ़ें ये  कथा, तभी पूरी होगी पूजा

प्राचीन काल में सुकेतुमान नाम का एक बड़ा ही दयालु और उदार राजा था। प्रजा भी राजा से बहुत ही खुश रहती थी, लेकिन राजा के कोई संतान नहीं थी जिसकी वजह से सब कुछ होते हुए भी वे बहुत ही दुखी रहता था। पुत्र सुख की प्राप्ति के लिए राजा ने अनेक उपाय किए लेकिन उनको पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई। फिर एक दिन राजा ने राज्य के सभी ऋषि-मुनियों, सन्यासियों और विद्वानों को बुलाकर संतान प्राप्ति के उपाय पूछे। राजा की बात सुनकर सभी ने कहा कि ‘हे राजन तुमने पूर्व जन्म में सावन माह की एकादशी के दिन अपने तालाब से एक गाय को जल नहीं पीने दिया था। जिसके कारण गाय ने तुम्हे संतान न होने का श्राप दिया था। उसी श्राप के चलते आपको पुत्र सुख नहीं मिल पा रहा है। इस पर राजा ने उनसे इसका उपाय पूछा।

तब ऋषि-मुनियों ने कहा कि हे राजन अगर तुम और तुम्हारी पत्नी पुत्रदा एकादशी का व्रत रखें तो इस श्राप से मुक्ति पा सकते हैं। जिसके बाद तुम्हें संतान की प्राप्ति हो सकती है। यह सुनकर राजा ने पत्नी के साथ मिलकर पुत्रदा एकादशी का व्रत का संकल्प लिया। इसके बाद राजा ने सावन माह में आने वाली पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा और इस व्रत के प्रभाव से वह शाप से मुक्त हो गया। जिसके बाद उसकी पत्नी गर्भवती हुई और एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। राजा काफी प्रसन्न हुए और तब से वह प्रत्येक पुत्रदा एकादशी का व्रत करने लगे। कहते हैं जो कि साधक पूरे मन व श्रद्धा के साथ यह व्रत करता है भगवान विष्णु उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

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Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्‍यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।

अपडेटेड 22:58 IST, August 15th 2024