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पब्लिश्ड 22:02 IST, January 13th 2025

MahaKumbh: पौष पूर्णिमा के स्नान के साथ कल्पवास की शुरुआत, क्या हैं इसके 21 नियम? महर्षि वेदव्यास के पद्म पुराण में जिक्र

कल्पवासी अपने मन को सांसरिक मोह से अलग कर आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग की ओर ले जाता है। कल्पवास में साधु-संन्यासियों के सत्संग और भजन-कीर्तन करने का विधान है।

Kalpavas rules in MahaKumbh
क्या हैं कल्पवास के 21 नियम? महर्षि वेदव्यास के पद्म पुराण में है उल्लेख | Image: Republic

MahaKumbh 2025: प्रयागराज की रेती पर पौष पूर्णिमा की शुभ बेला पर शुरू हुए महाकुंभ में श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा है। मेला प्रशासन के मुताबिक, सोमवार को शाम 6 बजे तक 1.65 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने गंगा और संगम में आस्था की डुबकी लगाई। इस दौरान, श्रद्धालुओं पर हेलीकॉप्टर से फूल बरसाए गए। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र संगम पर सोमवार को पौष पूर्णिमा के स्नान के साथ ही ‘कल्पवास’ की भी शुरुआत हो गई।

सोमवार को पौष पूर्णिमा पर शाही स्नान के साथ शुरू हुए महाकुंभ ने गंगा, यमुना और रहस्यमयी सरस्वती नदियों के मिलन बिंदु को आस्था, संस्कृति और मानवता के जीवंत संगम में बदल दिया है। दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से आए श्रद्धालु दुर्लभ खगोलीय संयोग का अनुभव कर रहे हैं, जो हर 144 साल में एक बार होता है। मोक्ष की तलाश में संगम में पवित्र डुबकी लगाने वाले लोगों में बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक भी शामिल हैं, जो दुनिया के सबसे बड़े मानव समागम में आध्यात्मिक उत्साह के साथ हिस्सा ले रहे हैं।

100 सालों की तपस्या के समान पुण्य

प्रयागराज में पुण्य स्नान के लिए संगम तट पर कोने-कोने से श्रद्धालु आस्था की डोर में बंधे गंगा, यमुना, सरस्वती के पवित्र त्रिवेणी संगम में अमृत स्नान करने आ रहे हैं। इसके साथ ही महाकुंभ की विशिष्ट परंपरा कल्पवास की भी शुरुआत हो गई है। पद्म पुराण और महाभारत के अनुसार संगम तट पर माघ मास में कल्पवास करने से 100 सालों तक तपस्या करने के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। विधि-विधान के अनुसार लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं ने संगम तट पर केला, तुलसी और जौं रोपकर एक महा व्रत और संयम का पालन करते हुए कल्पवास की शुरुआत की।

करीब 10 लाख लोग करेंगे कल्पवास

तीर्थराज प्रयागराज में माघ मास में कल्पवास करने का विधान है, महाकुंभ में कल्पवास करना विशेष फलदायी माना जाता है। इसलिये इस साल अनुमान के मुताबिक 10 लाख से अधिक लोग संगम तट पर पूरे एक महीने का कल्पवास करेंगे। कल्पवास के विधान और महत्व के बारे में तीर्थ पुरोहित श्याम सुंदर पाण्डेय कहते हैं कि कल्पवास का शाब्दिक अर्थ है कि एक कल्प अर्थात एक निश्चित समयावधि में संगम तट पर निवास करना।

उन्होंने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक कल्पवास करने का विधान है। श्रद्धालु अपनी शारीरिक और मानसिक स्थित के अनुरूप तीन दिन, पांच दिन, ग्यारह दिन आदि का संकल्प लेकर भी कल्पवास करते हैं। पूरी तरह विधि-विधान से कल्पवास करने वाले साधक बारह वर्ष लगातार कल्पवास कर महाकुंभ के अवसर पर इसका उद्यापन करते हैं, जो कि शास्त्रों में विशेष फलदायी और मोक्षदायक माना गया है।

कल्पवास के 21 नियम

कल्पवास को हमारे शास्त्रों और पुराणों में मानव की आध्यात्मिक उन्नति का श्रेष्ठ मार्ग बताया गया है। कल्पवास को सनातन परंपरा के अनुसार वानप्रस्थ आश्रम से संन्यास आश्रम में प्रवेश का द्वार माना गया है। एक महीने संगम या गंगा तट पर विधिपूर्वक कल्पवास करने से मानव का आंतरिक एवं बाह्य कायाकल्प होता है। पुरोहित श्याम सुंदर पाण्डेय ने बताया कि पद्म पुराण में भगवान दत्तात्रेय ने कल्पवास के 21 नियमों का उल्लेख किया है, जिसका पालन कल्पवासी संयम के साथ करते हैं।

  • तीनों समय गंगा स्नान 
  • दिन में एक समय फलाहार या सादा भोजन 
  • मांस, शराब- मदिरा जैसी बुरी लत का पूर्णतः त्याग 
  • झूठ नहीं बोलना, 
  • अहिंसा
  • इन्द्रियों पर नियंत्रण
  • दयाभाव और ब्रह्मचर्य का पालन करना
  • ब्रह्म मुहूर्त में जागना
  • स्नान
  • दान
  • जप
  • सत्संग
  • संकीर्तन
  • जमीन पर सोना 
  • श्रद्धापूर्वक देव पूजन करना शामिल है।

पौराणिक मान्यता और शास्त्रों के अनुसार पौष पूर्णिमा के दिन श्रद्धालुओं ने ब्रह्म मुहूर्त में संगम स्नान कर, भगवान शालिग्राम और तुलसी की स्थापना कर, उनका पूजन किया। सभी कल्पवासियों को उनके तीर्थ पुरोहितों ने पूजन करवा कर हाथ में गंगा जल और कुशा लेकर कल्पवास का संकल्प करवाया। इसके साथ ही कल्पवासियों ने अपने टेंट के पास विधिपूर्वक जौ और केला का पौधा भी रोपा। सनातन परंपरा में केले के पौधे को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है।

केले और तुलसी का पूजन

कल्पवासी पूरे माघ मास केला और तुलसी का पूजन करेंगे। तीनों काल में सभी कल्पवासी नियम पूर्वक गंगा स्नान, जप, तप, ध्यान, सत्संग और पूजन करेंगे। कल्पवास के समय में साधु-संन्यासियों के सत्संग और भजन-कीर्तन करने का विधान है। कल्पवासी अपने मन को सांसरिक मोह से अलग कर आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग की ओर ले जाता है।

(भाषा इनपुट)

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अपडेटेड 22:02 IST, January 13th 2025