Published 07:37 IST, November 2nd 2024
Govardhan Puja 2024: गोवर्धन पूजा के दिन जरूर करें इस चालीसा का पाठ, श्रीकृष्ण हो जाएंगे खुश
Govardhan Puja 2024: आज देशभर में गोवर्धन पर्व मनाया जा रहा है। आइए जानते हैं पूजा का शुभ मुहूर्त और सही पूजन विधि क्या है।
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Govardhan Puja 2024 Chalisa: आज यानी शनिवार, 02 नवम्बर को देशभर में गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जा रहा है। गोवर्धन पूजा का पावन पर्व हर साल कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा ठीक दीपावली के अगले दिन की जाती है। इस पर्व का हिंदू धर्म में विशेष महत्व होता है।
दरअसल, इस तिथि पर गोवर्धन पूजन करने का विधान है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस दिन श्रीकृष्ण के स्वरूप गोवर्धन पर्वत (गिरिराज जी) और गाय की पूजा का विशेष महत्व होता है। गोवर्धन,वृंदावन और मथुरा सहित पूरे बृज में इस दिन जोर-शोर से ये पर्व मनाया जाता है। साथ ही इस दिन एक विशेष चालीसा का पाठ करने से श्रीकृष्ण की कृपा सदैव अपने भक्तों पर बनी रहती है। आइए जानते हैं इस बारे में।
श्री गिरिराज चालीसा (Shri Giriraj Chalisa)
दोहा
बंदहु वीणा वादिनी, धर गणपति कौ ध्यान।
महाशक्ति राधा सहित, कृष्ण करौ कल्याण।।
सुमिरन कर सब देवगण, गुरु-पितु बारम्बार।
वरणों श्री गिरिराज यश, निज मति के अनुसार।।
चौपाई
जय हो जग बंदित गिरिराजा।
ब्रज मण्डल के श्री महाराजा।।
विष्णु रूप तुम हो अवतारी।
सुंदरता पर जग बलिहारी।।
स्वर्ण शिखर अति शोभा पावें।
सुर-मुनिगण दरशन कुं आवें।।
शांत कंदरा स्वर्ग समाना।
जहां तपस्वी धरते ध्याना।।
द्रोणागिरि के तुम युवराजा।
भक्तन के साधौ हौ काजा।।
मुनि पुलस्त्य जी के मन भाए।
जोर विनय कर तुम कूं लाये।।
मुनिवर संग जब ब्रज में आये।
लखि ब्रजभूमि यहां ठहराये।।
बिष्णु-धाम गौलोक सुहावन।
यमुना गोवर्धन वृंदावन।।
देव देखि मन में ललचाये।
बास करन बहु रूप बनाये।।
कोउ वानर, कोउ मृग के रूपा।
कोउ वृक्ष, कोउ लता स्वरूपा।।
आनंद लें गोलोक धाम के।
परम उपासक रूप नाम के।।
द्वापर अंत भये अवतारी।
कृष्णचन्द्र आनंद मुरारी।।
महिमा तुम्हरी कृष्ण बखानी।
पूजा करिबे की मन ठानी।।
ब्रजवासी सब लिये बुलाई।
गोवर्धन पूजा करवाई।।
पूजन कूं व्यंजन बनवाये।
ब्रजवासी घर-घर तें लाये।।
ग्वाल-बाल मिलि पूजा कीनी।
सहस्त्र भुजा तुमने कर लीनी।।
स्वयं प्रकट हो कृष्ण पुजावें।
माँग-माँग के भोजन पावें।।
लखि नर-नारी मन हरषावें।
जै जै जै गिरवर गुण गावें।।
देवराज मन में रिसियाए।
नष्ट करन ब्रज मेघ बुलाए।।
छाया कर ब्रज लियौ बचाई।
एकऊ बूँद न नीचे आई।।
सात दिवस भई बरखा भारी।
थके मेघ भारी जल-धारी।।
कृष्णचन्द्र ने नख पै धारे।
नमो नमो ब्रज के रखवारे।।
कर अभिमान थके सुरराई।
क्षमा मांग पुनि अस्तुति गाई।।
त्राहिमाम मैं शरण तिहारी।
क्षमा करौ प्रभु चूक हमारी।।
बार-बार बिनती अति कीनी।
सात कोस परिकम्मा दीनी।।
संग सुरभी ऐरावत लाये।
हाथ जोड़ कर भेंट गहाये।।
अभयदान पा इन्द्र सिहाये।
करि प्रणाम निज लोक सिधाये।।
जो यह कथा सुनें, चित लावें।
अन्त समय सुरपति पद पावें।।
गोवर्धन है नाम तिहारौ।
करते भक्तन कौ निस्तारौ।।
जो नर तुम्हरे दर्शन पावें।
तिनके दु:ख दूर ह्वै जावें।।
कुण्डन में जो करें आचमन।
धन्य-धन्य वह मानव जीवन।।
मानसी गंगा में जो नहावें।
सीधे स्वर्ग लोक कूं जावें।।
दूध चढ़ा जो भोग लगावें।
आधि व्याधि तेहि पास न आवें।।
जल, फल, तुलसी-पत्र चढ़ावें।
मनवांछित फल निश्चय पावें।।
जो नर देत दूध की धारा।
भरौ रहै ताकौ भंडारा।।
करें जागरण जो नर कोई।
दु:ख-दारिद्रय-भय ताहि न होई।।
श्याम शिलामय निज जन त्राता।
भुक्ति-मुक्ति सरबस के दाता।।
पुत्रहीन जो तुमकूं ध्यावै।
ताकूं पुत्र-प्राप्ति ह्वै जावै।।
दंडौती परिकम्मा करहीं।
ते सहजही भवसागर तरहीं।।
कलि में तुम सम देव न दूजा।
सुर नर मुनि सब करते पूजा।।
दोहा
जो यह चालीसा पढ़े, सुनें शुद्ध चित्त लाय।
सत्य सत्य यह सत्य है, गिरवर करें सहाय।।
क्षमा करहुँ अपराध मम, त्राहिमाम गिरिराज।
देवकीनन्दन शरण में, गोवर्धन महाराज।।
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।
07:37 IST, November 2nd 2024