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Published 23:41 IST, November 11th 2024

Dev Uthani Ekadashi Katha: इस कथा के बिना अधूर है देवउठनी एकादशी का व्रत, पढ़ना या सुनना न भूलें

Dev Uthani Ekadashi बहुत ही खास मानी जाती है। अगर इस दिन आप व्रत करने जा रहे हैं, तो कथा का पाठ करना न भूलें, क्योंकि इसके बिना यह पूजा अधूरी मानी जाती है।

Dev Uthani Ekadashi
देवउठनी एकादशी व्रत कथा | Image: AI

Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha: साल की 24 एकादशियों में से सबसे सर्वश्रेष्ठ और महत्वपूर्ण मानी जाने वाली देवउठनी एकादशी का व्रत कल यानी मंगलवार 12 नवंबर, 2024 को रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु 4 महीने की योग निद्रा से जागते हैं। ऐसे में सभी लोग इस दिन जगत के पालन हार और माता तुलसी की विधिवत पूजा अर्चना और व्रत करते हैं, लेकिन यह व्रत तब तक पूरा नहीं होता है, जब तक जातक पूजा के समय व्रत की कथा का पाठ करता या सुनता नहीं है। तो चलिए जानते हैं कि देवउठनी एकादशी व्रत की कथा क्या है?

वैदिक पंचांग के मुताबिक देवउठनी एकादशी की शुरुआत सोमवार 11 नवंबर, 2024 की शाम 6 बजकर 47 मिनट से हो चुकी है, जो अगले दिन यानी मंगलवार 12 नवंबर, 2024 की शाम 4 बजकर 4 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में उदया तिथि के मुताबिक इसका व्रत 12 नवंबर को ही रखा जाएगा। अगर आप भी देवउठनी एकादशी का व्रत रखने जा रहे हैं, तो पूजा में इसकी कथा का पाठ करना ना भूलें।

देवउठनी एकादशी व्रत कथा (Devuthani Ekadashi Vrat Katha)

पौराणिक कथा के मुताबिक बहुत समय पहले की बात है एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखा करते थे। यहां तक कि राज्य के पशु भी इस दिन अन्न ग्रहण नहीं किया करते थे। ऐसे में एक दिन भगवान विष्णु ने राजा की परीक्षा लेने की सोची और सुंदरी भेष बनाकर सड़क किनारे बैठ गए। राजा की भेंट जब सुंदरी से हुई तो उन्होंने उसके यहां बैठने का कारण पूछा। सुंदरी ने राजा से कहा कि वह बेसहारा है। राजा उसके रूप पर मोहित हो गए और बोले कि तुम रानी बनकर मेरे साथ महल चलो, लेकिन उस सुंदर स्त्री ने राजा के सामने एक शर्त रखी।

सुंदर स्त्री ने राजा के सामने रखी ये शर्त

स्त्री ने राजा से कहा कि वह ये प्रस्ताव तभी स्वीकार करेगी जब उसे पूरे राज्य का अधिकार दिया जाएगा और वह जो बनाए राजा को वो ही खाना होगा। इस पर राजा ने शर्त मान ली। अगले दिन एकादशी पर सुंदरी ने बाजारों में बाकी दिनों की तरह अन्न बेचने का आदेश दिया और मांसाहार भोजन बनाकर राजा को खाने पर मजबूर करने लगी। राजा ने कहा कि आज एकादशी के व्रत में मैं तो सिर्फ फलाहार ग्रहण करता हूं। इस पर रानी यानी सुंदर स्त्री ने राजा को शर्त याद दिलाते हुए राजा को कहा कि अगर यह तामसिक भोजन नहीं खाया तो मैं बड़े राजकुमार का सिर धड़ से अलग कर दूंगी।

राजा से प्रसन्न हुए श्रीहरि

इस पर राजा बड़े धर्मसंकट में पड़ गए और अपनी इस परेशानी के साथ बड़ी रानी के पास पहुंचे और उनसे सारी कहानी कह सुनाई। इस पर बड़ी महारानी ने राजा से धर्म का पालन करने की बात कही और अपने बेटे का सिर काट देने को मंजूर हो गई। राजा हताश थे और सुंदरी की बात न मानने पर राजकुमार का सिर देने को तैयार हो गए। सुंदरी के रूप में श्रीहरि राजा के धर्म के प्रति समर्पण को देखर अति प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने असली रूप में आकर राजा को दर्शन दिए।

राजा को मिला बैंकुठ लोक

विष्णु जी ने राजा को बताया कि तुम परीक्षा में पास हुए, कहो क्या वरदान चाहिए। राजा ने इस जीवन के लिए प्रभू का धन्यवाद किया कहा कि अब मेरा उद्धार कीजिए। राजा की प्रार्थना श्रीहरि ने स्वीकार की और वह मृत्यु के बाद बैंकुठ लोक को चला गया।

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Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्‍यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।

Updated 23:41 IST, November 11th 2024