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पब्लिश्ड 07:43 IST, January 16th 2025

Brihaspati Dev Puja: गुरुवार को करें बृहस्पति देव की आरती और मंत्रों का जाप, हर दुख-परेशानी का होगा नाश!

Brihaspati Dev ki Aarti: गुरुवार के दिन बृहस्पति देव की पूजा करते समय उनकी इस आरती का पाठ जरूर करें।

Brihaspati Dev
बृहस्पति देव | Image: Shutterstock

Brihaspati Dev ki Aarti aur Mantras: हिंदू धर्म में गुरुवार का दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu) और बृहस्पति देव (Brihaspati Dev) को समर्पित है। माना जाता है कि इस दिन बृहस्पति देव की श्रद्धापूर्वक पूजा करने से प्रभु अपने भक्तों पर हमेशा अपनी कृपा बनाए रखते हैं। इतना ही नहीं बृहस्पति देव अपने भक्तों को सभी संकटों-दुखों से उबारने का भी काम करते हैं।

गुरु बृहस्पति देव की उपासना के साथ-साथ उनके नाम का व्रत रखने वालों का वैवाहिक जीवन बेहद सुखद और खुशहाल रहता है। ऐसे में अगर आप भी बृहस्पति देव की कृपा पाना चाहते हैं तो आपको गुरुवार के दिन उनकी पूजा करते समय उनकी आरती करने के साथ-साथ कुछ विशेष मंत्रों का जाप भी करना चाहिए। आइए जानते हैं इस बारे में।

बृहस्पति देव की आरती (Brihaspati Dev ki Aarti)

जय वृहस्पति देवा,
ऊँ जय वृहस्पति देवा।

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छिन-छिन भोग लगाऊँ,
कदली फल मेवा।
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा।

तुम पूर्ण परमात्मा,
तुम अन्तर्यामी।
जगतपिता जगदीश्वर,
तुम सबके स्वामी।
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा।

चरणामृत निज निर्मल,
सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक,
कृपा करो भर्ता।
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा।

तन, मन, धन अर्पण कर,
जो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर,
आकर द्वार खड़े।
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा।

दीनदयाल दयानिधि,
भक्तन हितकारी।
पाप दोष सब हर्ता,
भव बंधन हारी।
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा।

सकल मनोरथ दायक,
सब संशय हारो।
विषय विकार मिटाओ,
संतन सुखकारी।
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा।

जो कोई आरती तेरी,
प्रेम सहित गावे।
जेठानंद आनंदकर,
सो निश्चित पाए।
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा।

सब बोलो विष्णु भगवान की जय।
बोलो वृहस्पति देव भगवान की जय।

बृहस्पति देव के मंत्र (Brihaspati Dev ke Mantras)

देवानाम च ऋषिणाम च गुरुं कांचन सन्निभम।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्।।

ॐ बृं बृहस्पतये नमः।।

ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः।।

ध्यान मंत्र:

रत्नाष्टापद वस्त्र राशिममलं दक्षात्किरनतं करादासीनं,
विपणौकरं निदधतं रत्नदिराशौ परम्।
पीतालेपन पुष्प वस्त्र मखिलालंकारं सम्भूषितम्,
विद्यासागर पारगं सुरगुरुं वन्दे सुवर्णप्रभम्।।

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Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्‍यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।

अपडेटेड 07:43 IST, January 16th 2025