Published 19:00 IST, August 1st 2024
बिहार से निकली जाति जनगणना की गूंज संसद तक... कितनी सियासत कितनी जरूरत?
इतिहास बताता है कि कांग्रेस का जाति जनगणना वाला गुब्बारा सियासी शगूफ़े से ज्यादा कुछ भी नहीं है।
सियासत भी बड़ी अजीब होती जा रही है। ऐसा लगता है कि बस बखेड़ा खड़ा करना सियासी पार्टियों का मकसद रह गया है। जाति के मुद्दे पर हो रहा हो-हल्ला इशारा कर रहा है कि जनता की चिंता किसी को भी नहीं है। जुबां पर भले ही 140 करोड़ लोगों के उत्थान की बात हो, लेकिन दबे-पांव राजनीतिक दलों के निशाने पर सिर्फ और सिर्फ वोट बैंक होता है। आपको क्या लगता है कि सियासी पार्टियों को आपकी चिंता है, इसलिए जाति जनगणना की रट लगा रहे हैं? ये आपकी सबसे बड़ी भूल है।
जाति जनगणना से किसी पार्टी ने मना नहीं किया है। हां विपक्ष जाति जनगणना करवाने को लेकर खुलकर बोल रहा है और सत्ता पक्ष जाति जनगणना से इनकार नहीं कर रहा है। लेकिन सवाल ये है कि जाति की सियासी चाशनी से किसका भला होगा? या फिर कोई जाति का कार्ड खेलकर अपनी वैतरणी पार करना चाहता है?
वैसे जातीय जनगणना के जिन्न को नीतीश कुमार ने निकाला था और उन्होंने 2023 में बिहार में जातीय जनगणना भी करवाई और उसकी रिपोर्ट भी सार्वजनिक की... लेकिन सवाल ये है कि उस रिपोर्ट से आम आदमी को क्या फायदा हुआ? कौन से पिछड़े या कमजोर जाति के लिए नीतीश कुमार ने योजना निकाली? बहरहाल नीतीश जातीय जनगणना पर कदम आगे बढ़ाते उसके पहले ही उन्होंने पाला बदल लिया और अब जाति जनगणना के सुर को राहुल गांधी ने पकड़ लिया है और जाति जनगणना करवाने के लिए अड़ गए हैं। वैसे इसके पीछे लोकसभा चुनाव में मिली सफलता का नतीजा है। नहीं तो कांग्रेस के लिए जाति जनगणना इतना महत्वपूर्ण होता तो फिर जाति जनगणना पर अब तक कांग्रेस पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने साल 1980 में आई मंडल आयोग की रिपोर्ट क्यों नहीं लागू की?
1980 के चुनाव में कांग्रेस ने क्यों कैंपेन चलाया कि ‘जात पर ना पात पर, मुहर लगेगी हाथ पर’? इतना ही नहीं पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 6 सितंबर 1990 को मंडल आयोग को लेकर ये क्यों कहा कि मंडल आयोग से देश टूट रहा है? और सबसे बड़ी बात कि कर्नाटक सरकार जाति जनगणना के आंकड़े अब तक क्यों जारी नहीं किए हैं?
जाति जनगणना को लेकर कांग्रेस की मंशा क्या है ये उनके ही नेता बता सकते हैं लेकिन इतिहास बताता है कि कांग्रेस का जाति जनगणना वाला गुब्बारा सियासी शगूफ़े से ज्यादा कुछ भी नहीं है। हो सकता है कि राहुल गांधी बाकी राजनेताओं से कुछ अलग करना चाहते हों। तो उन्हें केंद्र से जातीय जनगणना की मांग छोड़कर कांग्रेस और सहयोगियों के शासित राज्यों में जातीय जनगणना करवानी चाहिए। जैसे नीतीश कुमार ने बिहार में जातीय जनगणना करवाई थी।
जाति जनगणना का इतिहास
वैसे देश में पहली बार साल 1931 में जातियों की गिनती हुई थी और ये गणना अंग्रेजों ने करवाई थी। देश में उस वक्त 4,147 जातियां गिनी गई थीं। साल 1941 में भी जातीय जनगणना हुई, लेकिन जाति के आंकड़े प्रकाशित नहीं किए गए और साल 1951 में जाति जनगणना के नाम पर सिर्फ SC/ST की गिनती हुई। साल 2011 में जनगणना हुई, लेकिन जातियों के आंकड़े जारी नहीं किए गए।
वैसे बिहार से निकला जातीय जनगणना का धुआं पूरी सियासत में फैल चुका है और विपक्ष गाहे-बगाहे जातीय जनगणना की रट लगा रहा है। जातीय जनगणना करवाना गलत नहीं है। लेकिन जाति पूछने पर भड़क जाना गलत है। जब आप पूरे देश से जाति पूछ सकते हैं तो कोई आपसे भी जाति पूछने का हक रखता है। इसका हर्ज क्या है? ऐसा नहीं हो सकता है आप सियासत के लिए धर्म-जाति का कार्ड खेलें और जब आप पर बन पड़े तो शोर मचाने लगे। सियासत में ऐसे पैमाने की कोई जगह हो सकती है लेकिन नैतिकता के तराजू पर नहीं।
Updated 19:00 IST, August 1st 2024