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पब्लिश्ड 20:39 IST, July 27th 2024

करगिल विजय दिवस- जरा याद करो कुर्बानी पर कितने खरे हम?

शहादत का दर्द विक्रम बत्रा के परिवार से पूछिए। शहीद मेजर राजेश अधिकारी की पत्नी से पूछिए। शहीद कैप्टन विजयंत थापर की मां से पूछिए।

Reported by: Dheeraj Singh
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करगिल विजय दिवस- जरा याद करो कुर्बानी पर कितने खरे हम?
Kargil Vijay Diwas 2024 | Image: Kargil Vijay Diwas 2024

Kargil Vijay Diwas 2024: करगिल दिवस...हर साल आता है। 140 करोड़ लोग, नेता, अभिनेता सभी लोग शहीदों को श्रद्धांजलि देकर अपना काम छुट्टी कर लेते हैं। लेकिन क्या उस शहादत की कीमत हम उतार पा रहे हैं? कुछ लोग ऐसे भी होंगे जो इन तस्वीरों को देख उनकी आंखें नम हो जाती होंगी। दुश्मन के खिलाफ गुस्सा भी आता होगा लेकिन सवाल ये है कि क्या देशवासियों में सर्वोच्च बलिदान की कीमत है या फिर ऐसे दिवस को एक फेस्टिवल की तरह मनाते चले आ रहे हैं? अगर ऐसा है तो सभी को इन संकेतों को समझने की जरूरत है । लेकिन ऐसा लगता है कि लोगों की समझ शून्य की ओर कदम बढ़ा चुकी है। वो इसलिए कि सियासी पार्टियां दिलों दिमाग पर धीरे-धीरे कब्जा करती जा रही हैं और लोगों की समझ में सेंध लगा दिया है । क्योंकि नेताओं को सिर्फ और सिर्फ सत्ता से मतलब है। देश किस ओर जा रहा है, नई पीढ़ी पर क्या असर होगा इसकी चिंता करना तो दूर, इसके बारे में ना सोचते हैं और ना समझने की कोशिश करते हैं।

शहादत का दर्द विक्रम बत्रा के परिवार से पूछिए। शहीद मेजर राजेश अधिकारी की पत्नी से पूछिए। शहीद कैप्टन विजयंत थापर की मां से पूछिए। शहीद कैप्टन सौरभ कालिया के घरवालों से पूछिए। घर का दीया जब बुझ जाता है तो क्या हालत होती है? यकीन मानिए घर का चूल्हा भी जलने से इनकार कर देता है। चारों तरफ मायूसी और गम के काले बादल छाए रहते हैं। किसी ने सही कहा कि भगत सिंह पैदा हो, मगर हो पड़ोसी के घर पर, एक जवान का शहीद होना, एक परिवार का खत्म होने जैसा है। आज हम भले ही उन शहीदों का याद कर रहे हैं जिन्होंने अदम्य साहस का परिचय दिया था। लेकिन अगले दिन से फिर उसी दलदल में फंस जाएंगे जो देश के खिलाफ होगा। देश के विचारधारा से अलग होगा। कोई मौलवी, कोई मौलाना, कोई पाखंडी, कोई राजनेता एक बार फिर देश में जहर घोलने का काम करेगा। जिसका प्रभाव देशवासियों पर होगा और इस असर का नतीजा लोगों के बीच दुर्भावना पैदा होगी, आपसी भाईचारे के ताने-बाने के टूटने का डर होगा क्योंकि आज सियासत ऐसी हो गई है कि ना तो सियासतदानों को शर्म है और ना हया। और देश की चिंता तो कतई नहीं। अगर चिंता है तो बस पावर को हथियाने के तरकीबों की। लेकिन देश की जनता और सियासी पार्टियों को समझना होगा कि कितनी मुश्किलों से आजादी मिली है। कितनी मुश्किलों से एक-एक तिनका जोड़कर देश का निर्माण हुआ है, कितनी जद्दोजहद के बाद देश आज इस मुकाम पर खड़ा है।

ऐसे में अभी भी वक्त है सियासी पार्टियों को धर्म का चश्मा उतारकर देशहित में सियासत करनी चाहिए। सियासत दान अपने विचारधारा को बदले और लोगों के अंदर देशभक्ति का जज्बा पैदा करें ताकि देश का युवा निराशा के अंधकार से निकलकर देशभक्ति के प्रकाश से प्रज्जवलित हो। युवा पीढ़ी मुकम्मल रास्ता अपनाए जो आने वाले मुस्तकबिल के काम आ सके। लेकिन सियासतदान अगर यूं ही जहर फैलाते रहेंगे तो देश में भाईचारे के मधुर बंधन टूटने का खतरा बढ़ जाएगा। ऐसे में देश के 140 करोड़ जनता की जिम्मेदारी है कि देश की एकजुटता, अखंडता और संप्रभुता बनी रहे।

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अपडेटेड 20:39 IST, July 27th 2024