Published 12:31 IST, December 17th 2024
जब 'खून की होली' से दहला था संभल... अचानक कैसे घटी 30 प्रतिशत हिंदू आबादी? INSIDE STORY
आज 77 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले संभल में पहले काफी संख्या में हिंदू रहते थे। साल 1976 और 1978 में यहां दो बड़े दंगे हुए, जिसके बाद हिंदुओं का पलायन शुरू हुआ।
जतिन शर्मा की रिपोर्ट
Sambhal 1978 Riots History : संभल में मस्जिद के सर्वे के दौरान हुई हिंसा से शुरू हुआ बवाल अब चार दशकों से बंद पड़े एक मंदिर और 1978 में हुए सांप्रदायिक दंगों तक पहुंच गया है। इतिहास के बारे में बात की जा रही है जब 1978 में दंगों के बाद मंदिर में ताला लगा दिया गया था। उस दौरान कई हिंदू परिवार इस इलाके से पलायन कर गए थे। यह मामला विधानसभा में भी गूंजा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में कहा कि भगवान विष्णु का दसवां अवतार संभल में ही होगा। यहां 21 नवंबर को भी हुआ। 24 नवंबर को भी सर्वे का कार्य चल रहा था। धीरे-धीरे सच लोगों के सामने आने लगा है। आज 77 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले संभल में पहले काफी संख्या में हिंदू रहते थे। साल 1976 और 1978 में यहां दो बड़े दंगे हुए, जिसके बाद यहां हिंदुओं का पलायन शुरू हो गया।
संभल में क्यों हुए थे 1978 में दंगे?
संभल में 1978 का दंगा उस वक्त होली के बाद शुरू हुआ। साल 1978 में होली का त्योहार 25 मार्च को मनाया जाना था और इस होली के अवसर पर दो स्थानों को लेकर संभल में दोनों सम्प्रदायों में तनाव था। क्योंकि एक जगह होली जलने के स्थान पर किसी मुस्लिम दुकानदार ने खोखा रख दिया गया था, जबकि दूसरी जगह पर एक चबूतरा बना लिया गया था। लेकिन लकड़ी का खोखा होली जलने के वक्त हटवा दिया गया और होली का त्योहार सकुशल सम्पन्न हुआ। बिना किसी मनमुटाव के वो दिन बित गया। एम.जी.एम. कॉलेज जो कि नगर पालिका संभल के पास गड्ढे में था। कॉलेज के संविधान में यह व्यवस्था थी कि कोई भी व्यक्ति या दस हजार रुपये का दान देकर प्रबन्ध समिति में आजीवन सदस्य के रूप में रह सकता था। स्थानीय ट्रक यूनियन द्वारा मंजर शफी के नाम से 10 हजार रूपये का एक चेक कॉलेज कोष में भेजा गया। जिसकी रसीद मंजर शफी के नाम से थी, क्योकि इस आधार पर मंजर शफी कॉलेज की प्रबन्ध समिति में आजीवन सदस्य होना था, लेकिन तत्कालीन उपजिलाधिकारी जो प्रबन्ध समिति के उपाध्यक्ष थे, उन्होंने मंजर शफी को मान्यता नहीं दी, जिस कारण मंजर शफी कॉलेज प्रबन्धन से नाराज था।
बाजार में मच गई थी भगदड़
होली पर महात्मा गांधी डिग्री कॉलेज (तहसील से नीचे राजकीय कन्या विद्यालय हुआ करता था), जो आज इंटर कॉलेज चौधरी सराय के नाम से जाना जाता है, कॉलेज में सभी छात्र-छात्राओं को टाइटिल दिये थे। इसमें मुस्लिम लड़कियों को भी टाइटिल दिये तो मंजर शफी नाराज हो गया। इसके बाद मंजर शफी ने बाजार बंद करवाने की कोशिश की। लेकिन प्रमोद चाय वाले ने दुकान बंद करने से मना कर दिया। तो मंजर शफी ने दुकान में रखी पकोड़े की थाली गिरा दी। इसकी अफवाह दीपा सराय में यह उड़ाई कि मंजर शफी को मार दिया, इसमें तत्कालीन उपजिलाधिकारी रमेश चन्द्र माथुर तहसीलदार कार्यालय पहुंचे, देखते ही देखते बाजार में भगदड़ मच गई। जिसके बाद बाजार में मौजूद ग्रामीण हिंदुओं को मामा बनवारी लाल अपने साले मुरारी लाल की फड़ में ले गये ताकि वो वहां सुरक्षित रहे। लेकिन उनके छिपे होने की जानकारी इनके मित्र कुछ मुस्लिम आढ़तियों को थी, जिन्होने छिपे होने की सूचना दी।
हिंदुओं की 40 दुंकाने जलाई
इसी मुस्लिम भीड़ ने पूरी सब्जी मंडी और लगभग 40 दुकानें हिंदुओं की जलाई और लूटमार की, वहीं डॉ. शफीउर्रहमान बर्क के दबाव में हिंदुओं से ज्यादा मुस्लिमों को बिना दुकानें जले ही मुआवजा दिलाया गया। इसके बाद दुश्मनी छिड़ गई और 24 हिंदुओं को काटा गया और गन्ने की खोई और टायर के साथ ढेर लगाकर जला दिया गया। जिस फड में हिंदू मौजूद थे उसको ट्रैक्टर लगाकर फाटक तोड़ा गया, इसके बाद गांवों में जो लोग वापस जा रहे थे, तो उन सभी 160 से लोगों को जान से मारा गया।
कई दिनों तक जंगल में मिलती रही लाशें
उस समय संभल का ऐसा कोई गांव नहीं था, जहां से कोई व्यक्ति न मरा हो। कई दिनों तक जंगल में लाशें मिलती रही, धीरे-धीरे हिंदुओं को मारते रहे। वहीं, फरहत अली, जिलाधिकारी ने भी इस पर कोई कार्रवाई नहीं की। जब फरहत अली को हिंदुओं ने घेरा और नाना जी देशमुख को फोन किया तो शाम तक पुलिस आई। तब तक दंगे से 184 से ज्यादा लोग मारे जा चुके थे।
मुस्लिमों को देते थे उधारी, काट काट कर मारा
मरे हुए लोगों का अधिकतर हिंदुओं ने बृजघाट में संस्कार किया। मामा बनवारी लाल ने कई मुस्लिमों को उधारी दे रखी थी। मामा बनवारी लाल को उनकी पत्नी और पुत्र ने बाहर जाने से रोका था कि यहीं दंगा हो रहा है। आप मत जाओ। लेकिन उन्होंने कहा कि सारे मुस्लिम मेरे मित्र और भाई जैसे हैं और मेरे साथ ही काम करते हैं। मुझे कुछ नहीं होगा। फिर फड के अंदर बनवारी लाल गोवल को मुस्लिमों ने कहा कि 'तुम इन पैरों से पैसे लेने आये हो और उनके पैर काट दिये।' फिर उपद्रवी मुस्लिमों ने उनसे कहा कि 'तुम इन हाथों से पैसे लोगे' और उनके हाथ भी काट दिये, उसके पश्चात उनकी गर्दन काट कर उनको मौत के घाट उतार दिया।
‘मुझे काटो मत गोली मार दो…’ लेकिन गला काटकर मारा
इससे पहले मामा बनवारी लाल ने कहा कि 'मुझे काटो मत, गोली मार दो।' लेकिन फिर भी उन्हें गोली न मारकर उनकी गर्दन को धीरे धीरे काटा और उन्हें मार डाला, इसके बाद 24 हिंदुओं को एक साथ ढेर लगाकर जला दिया। इस पूरी घटना को हरद्वारी लाल शर्मा और सुभाष चन्द्र रस्तोगी ने देखा था, क्योंकि यह दोनों टांड पर ड्रम में तिरपाल में छिप गये थे। इन दोनों लोगों ने हरद्वारी लाल के सगे भाई जो कि हाईस्कूल में पढ़ता था, उन्हें मुस्लिम लोगों द्वारा काटने और उसको चाकू से गोद कर मारते हुए देखा था।
Updated 12:31 IST, December 17th 2024