sb.scorecardresearch

पब्लिश्ड 15:12 IST, January 11th 2025

EXCLUSIVE/ 'ट्रैक्टर से गेट तोड़ा, हाथ-पैर काट दिया फिर जिंदा जला दिया', 1978 संभल दंगों के पीड़ित गुलाब का छलका दर्द; ; देखें VIDEO

1978 के संभल दंगों के पीड़ित गुलाब ने बताया, 'मुस्लिम दंगाइयों ने पहले कारखाने में छिपे लोगों के हाथ-पैर काट दिए फिर उन्हें जिंदा ही जला दिया था।'

Reported by: Ravindra Singh
Follow: Google News Icon
  • share

उत्तर प्रदेश का संभल जिला इस समय पूरे देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी चर्चा का विषय बना हुआ है। ऐसे में रिपब्लिक भारत हर रोज 1978 में हुए संभल दंगों के पीड़ितों की एक-एक कहानी का खुलासा कर रहा है। आज रिपब्लिक भारत की टीम संभल के ठिल्लुपुरा गांव पहुंची, जहां एक ऐसे परिवार को ढूंढ निकाला जिसने संभल के दंगों में अपने माता-पिता को खो दिया था। इस दंगे में उनके माता-पिता की दंगाइयों ने न सिर्फ बेरहमी से हत्या की बल्कि उनका शव भी उनके परिजनों तक नहीं पहुंचने दिया। जब रिपब्लिक भारत ने दंगों में मारे गए दंपति के बेटे गुलाब से बात की तो उनके जख्म ताजा हो गए और उनकी आंखों में संभल दंगों का दर्द साफ दिखाई दे गया।

मौजूदा समय गुलाब सिंह की उम्र लगभग 70 साल के आस-पास है। रिपब्लिक भारत से बातचीत करते हुए उन्होंने बताया कि कैसे 1978 के उस दंगों में उनके माता-पिता मारे गए थे और उनका शव भी आजतक उन्हें नहीं मिला है। उन्होंने बताया कि किसी तरह से जान बचाने के लिए उनके माता-पिता नखास के कारखाने में घुस गए थे जिसके बाद दंगाई कारखाने के गेट को ट्रैक्टर और ट्रक से तोड़कर उसके अंदर घुसे वहां छिपकर बैठे हिन्दू शरणार्थियों के पहले हाथ-पैर काट डाले फिर पूरे कारखाने को आग लगा दी। इस दौरान उसमें छिपे सभी जिंदा लोग भी जलकर राख हो गए थे।

रिपब्लिक से बोले संभल दंगों के पीड़ित गुलाब

मेरा गुलाब नाम है उस वक्त मेरी 20-21 साल उम्र थी माता-पिता उस समय बाजार गए थे सामान लेने के लिए घर में एक शादी थी। जब बाजार में दंगा हुआ तब वो लोग वहां भागकर मुरारी लाल के कारखाने में आ गए ये नखासे में था। ये कारखाना हिन्दुओं की बस्ती में था। उन लोगों को लगा यहां जान बच जाएगी। इसके बाद मुस्लिम दंगाइयों ने कारखाने के दो दरवाजे ट्रैक्टर और ट्रक से तोड़कर घुस गए जिसमें कई लोगों की मौत हो गई थी। इस हादसे में किसी की डेड बॉडी भी नहीं मिली थी। इस दंगे के बाद 72 घंटे का कर्फ्यू लग गया। मेरी माता जी का नाम नरेनिया था और पिता का नाम किशन था। उनकी उम्र उस समय 75-76 साल के आस-पास थी।

शाम तक करते रहे माता-पिता का इंतजार फिर...

1978 दंगों के पीड़ित गुलाब ने  रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क को बताया कि उन लोगों ने पहले तो माता-पिता का शाम तक इंतजार किया। उन्हें इस बात की जानकारी तो पहले ही मिल गई थी कि बाजार में दंगा हो गया है लेकिन ये नहीं जानते थे कि उनके माता-पिता इस दंगे में मारे गए हैं। इसलिए शाम होने के बाद उन्हें इस बात की चिंता हुई की आखिर अब तक वो लोग घर क्यों नहीं आए तब घरवाले माता-पिता को ढूंढने के लिए बाहर निकले। कर्फ्यू खुलने के बाद एक रिश्तेदार की मदद से हम लोग कारखाने पहुंचे तो माता की कुछ चूड़ियां और पिता जी की जूती ही मिली उनके शव भी दंगाइयों ने कहीं फेंक दिए थे।

यह भी पढ़ेंः Sambhal: संभल हिंसा मामले में पुलिस ने दो और आरोपियों को किया गिरफ्तार

अपडेटेड 15:22 IST, January 11th 2025