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पब्लिश्ड 13:59 IST, January 8th 2025

EXCLUSIVE/ भिक्षा मांगने से शुरुआत... फिर एक कंडक्टर से आचार्य बनाने तक की कहानी अनिरुद्धाचार्य जी महाराज की जुबानी

कथावाचक अनिरुद्धाचार्य ने बताया कि 'बचपन में हमारी शुरुआत हुई जब हम होश संभाले तो सबसे पहले गांवों में भिक्षा मांगने जाया करता था। उसी से भरण पोषण होता था।'

Reported by: Ravindra Singh
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एक कंडक्टर से आचार्य बनाने तक की कहानी अनिरुद्धाचार्य जी महाराज की जुबानी | Image: Republic Video Grab

Aniruddhacharya Profile: मथुरा के प्रसिद्ध कथावाचक बाबा अनिरुद्धाचार्य ने भी रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क के समिट 'महाकुंभ महासम्मेलन' में हिस्सा लिया। इस दौरान उन्होंने अपनी जीवन यात्रा के बारे में बात करते हुए बताया कि उन्होंने अपना जीवन जब उन्होंने होश संभाला था तब एक भिक्षुक (Monk) के रूप में शुरू किया था। इसके बाद वो एक ट्रक पर कंडक्टर (Cunductor) बन गए और काफी दिनों तक वहां काम करते रहे। आज 'वायरल बाबा' के नाम से मशहूर कथावाचक अनिरुद्धाचार्य जी ने बताया कि धर्म और सेवा की इच्छा बचपन से ही उनकी सबसे ज्यादा रुचि वाला काम रहा था इसलिए ईश्वर ने उन्हें वहां पहुंचा दिया।

कथावाचक बाबा अनिरुद्धाचार्य जी ने रिपब्लिक भारत की एंकर सलोनी के एक सवाल जिसमें उन्होंने पूछा था कि बाबा आपके बारे में मैंने काफी रिसर्च किया था तो पता चला कि आप ट्रक के कंडक्टर का काम भी कर चुके थे। तो मैं आपसे पूछना चाहूंगी कि कैसे आप आज के अपने इस मुकाम तक पहुंचे। यहां तक पहुंचने में आपको किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा? इस सवाल के जवाब में कथावाचक अनिरुद्धाचार्य ने बताया कि 'बचपन में हमारी शुरुआत हुई जब हम होश संभाले तो सबसे पहले गांवों में भिक्षा मांगने जाया करता था। गांव में मिली भिक्षा को हम लाते थे और उसी से भरण पोषण होता था। इस तरह से भिक्षा मांगने से शुरुआत हुई और मां उसी भिक्षा से प्रसाद बनाकर दिया करती थीं। इसके बाद भाव यही था कि समाज की सेवा करेंगे।'


कभी भिक्षा मांग कर होता था गुजारा आज वृंदावन में 30 हजार लोगों को करवा रहे भोजन

मथुरा के मशहूर कथावाचक बाबा अनिरुद्धाचार्य अपनी यात्राा के बारे में आगे बताते हुए कहा, 'आज भगवान की कृपा से वृंदावन में गौरी - गोपाल रसोई चलती है जहां रोजाना 30 हजार लोग नित्य प्रति प्रसाद पाते हैं वो भी निःशुल्क। वहां पर 290 वृद्ध माताएं रहती हैं और 150 विद्यार्थी गौरी-गुरु गोपाल में पढ़ते हैं। ये सारी सेवाएं... भगवान ने जो जिम्मेदारी दी वो पूरी करने की शक्ति भी दे रहे हैं। भिक्षा मांगने की शुरुआत के साथ नीति और नियत भी सही थी और सही है भी तो भगवान ने उसका फल ये दिया कि उसकी सेवा से मुझे जोड़ दिया।'

विलासिता और वासनाओं ने कर दिया है सामाजिक रिश्तों से मोहभंग

वहीं रिश्तों के मोहभंग के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि लोगों का मोहभंग नहीं हुआ है बल्कि लोग अज्ञान की तरफ बढ़ गए हैं, लोग गलत दिशा की तरफ चले गए हैं। आज खाओ-पियो मौज करो की भावनाएं मन में समा चुकी हैं। आजकल लोग केवल विलासी हो चुके हैं। उन्हें अपने धर्म से मतलब नहीं है। आजकल एक स्त्री अपने पति के होते हुए भी पराए पुरुष को देख रही है। एक पुरुष अपनी पत्नी के होते हुए भी पराई स्त्री की ओर देख रहा है क्यों? ऐसा इसलिए कि उसके भीतर वासनाएं इतनी ज्यादा हैं कि उसकी वासनाओं ने उसे अधर्मी बना दिया है। रावण को अधर्मी किसने बना दिया था वो तो बहुत बड़ा धर्मी था लेकिन रावण के विषयों ने उसकी वासनाओं ने उसे अधर्मी बना दिया। ठीक उसी तरह से आज के समाज में वासना भर चुकी है चाहे वो स्त्री हों चाहे वो पुरुष हों और उस वासना  के गुलाम बनकर रह गए हैं। यही वजह है कि आज कल रिश्तों से लोगों का मोहभंग हुआ जा रहा है।

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अपडेटेड 13:59 IST, January 8th 2025