sb.scorecardresearch

Published 23:26 IST, June 7th 2024

तरन तारन फर्जी मुठभेड़ मामले में बड़ा अपडेट, पूर्व थाना प्रभारी को आजीवन कारावास

Tarn Taran Fake Encounter: गुलशन कुमार को 22 जून 1993 को उनके घर से अगवा कर लिया गया था।

Follow: Google News Icon
  • share
Woman Can't Be Held Responsible For Lover's Suicide If Relationship Ends
प्रतीकात्मक तस्वीर | Image: Unsplash

Tarn Taran Fake Encounter: मोहाली की एक विशेष सीबीआई अदालत ने पंजाब के तरन तारन जिले में 1993 में एक फल विक्रेता को उसके घर से अगवा करने के बाद फर्जी मुठभेड़ में मार डालने के मामले में पुलिस के एक पूर्व अधिकारी को शुक्रवार को आजीवन कारावास की सजा सुनायी। यह जानकारी अधिकारियों ने दी।

अधिकारियों ने बताया कि अदालत ने पूर्व थाना प्रभारी (एसएचओ) गुरबचन सिंह को आजीवन कारावास की सजा सुनाने के अलावा तरन तारन शहर के तत्कालीन पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) दिलबाग सिंह को भी अपहरण से संबंधित भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 364 के तहत सात साल की जेल की सजा सुनाई। दिलबाग सिंह पुलिस उप महानिरीक्षक (डीआईजी) के पद से सेवानिवृत्त हुए थे।

अधिकारियों ने बताया कि गुलशन कुमार को 22 जून 1993 को उनके घर से अगवा कर लिया गया था और एक महीने तक अवैध हिरासत में रखने के बाद उसी साल 22 जुलाई को फर्जी मुठभेड़ में मार डाला गया था।

अदालत ने दिलबाग सिंह और पुलिस उपाधीक्षक के पद से सेवानिवृत्त हुए गुरबचन सिंह को मामले में दोषी पाया। तीन अन्य आरोपित अधिकारी - सहायक उप-निरीक्षक (एएसआई) अर्जुन सिंह और देविंदर सिंह और उप-निरीक्षक (एसआई) बलबीर सिंह - की मुकदमे के दौरान मृत्यु हो गई।

यह मामला उच्चतम न्यायालय के आदेश पर 1995 में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दिया गया था। संघीय एजेंसी ने 1999 में अपना आरोपपत्र दायर किया। इक्कीस साल बाद सात फरवरी, 2020 को आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए गए।

सीबीआई के एक प्रवक्ता ने एक बयान में कहा कि मुकदमे के दौरान, सीबीआई ने प्रत्यक्षदर्शियों सहित 32 गवाहों को पेश किया, जिन्होंने इस बात के पुख्ता सबूत दिए कि दिलबाग सिंह और गुरबचन सिंह ने कुमार को उनके घर से अगवा किया, उन्हें अवैध रूप से बंधक बनाकर रखा और बाद में 22 जुलाई, 1993 को उनकी हत्या कर दी।

उन्होंने कहा, "प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों से पता चलता है कि आरोपी पुलिस अधिकारियों ने हत्या को मुठभेड़ के रूप में पेश किया, तथा गवाहियों और दस्तावेजों से दोषी पुलिस अधिकारियों द्वारा गढ़ी गई झूठी कहानियां साबित हुई।"

पुलिस ने 22 जुलाई, 1993 को कुमार के शव का तरनतारन में उनके परिवार को सूचित किए बिना अंतिम संस्कार कर दिया।

ये भी पढ़ेंः नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण की टाइमिंग हुई फाइनल, अब 9 जून को इस समय होगी ताजपोशी

(Note: इस भाषा कॉपी में हेडलाइन के अलावा कोई बदलाव नहीं किया गया है)

Updated 23:26 IST, June 7th 2024