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Published 17:54 IST, January 22nd 2024

500 साल का विवाद, कदम-कदम पर हजारों चुनौतियां और फिर मिली सफलता... राम मंदिर संघर्ष की पूरी कहानी

Ram Mandir Ayodhya 500 years History: आज अयोध्या में रामलला विराज गए हैं। ये सफर आसान नहीं रहा। आइए राम मंदिर संघर्ष की पूरी कहानी जानते हैं।

Reported by: Kunal Verma
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Ram Mandir Ayodhya History
राम मंदिर संघर्ष की पूरी कहानी | Image: PTI/Republic

Ram Mandir Ayodhya History: आज, 22 जनवरी 2024 को सदियों की तपस्या के अंत के साथ अयोध्या में रामलला विराज गए हैं। हालांकि, ये सफर आसान नहीं रहा। कई चुनौतियां आईं और कई परेशानियों से भी जूझना पड़ा। इस पूरे सफर में एक बात कॉमन रही और वो थी- राम मंदिर के लिए रामभक्तों का संघर्ष।

यूं तो राम मंदिर का इतिहास 500 साल पुराना है, लेकिन BJP के पूर्व राज्यसभा सांसद बलबीर पुंज ने अपनी किताब 'ट्रिस्ट विद अयोध्या (Tryst With Ayodhya)' में अयोध्या के उन पहलुओं का जिक्र किया है, जो 200 साल पहले शुरू हुआ था। उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि अयोध्या विवाद सबसे पहले 1822 में अदालत तक पहुंचा था। इसके बाद 1855 में हनुमानगढ़ी मंदिर में हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच विवाद शुरू हो गया।

28 जुलाई 1855 को हिंदुओं ने की थी हनुमानगढ़ी की रक्षा

28 जुलाई 1855 में हिंदू-मुस्लिम विवाद के बीच मेजर जनरल जीडी आउट्राम ने नवाब वाजिद अली शाह को सूचना दी थी कि हनुमानगढ़ी को नष्ट करने के लिए एक बड़ी फोर्स इकट्ठा हुई है और इस विवाद को टाला नहीं जा सकता। फिर हनुमान गढ़ी के भीतर किलेबंदी की गई और इस दौरान हिंदुओं ने न सिर्फ हनुमानगढ़ी की रक्षा की, बल्कि भगवान राम के जन्मस्थान को भी सुरक्षित किया।

राम मंदिर बनाने की अपील

इतिहासकार मीनाक्षी जैन ने अपनी किताब में एक और घटना का जिक्र किया। इसमें बताया गया कि साल 1885 में जन्मस्थान के महंत रघुवरदास ने अदालत का रुख किया और उन्होंने गुहार लगाई कि राम चबूतरा में राम मंदिर बनाने की अनुमति दी जाए। हालांकि, अदालत ने उस अपील को ठुकरा दिया और कहा कि इसमें कानून एवं व्यवस्था की समस्या हो सकती है।

जब जवाहर लाल नेहरू ने दिया था रामलला की प्रतिमा हटाने का आदेश

साल 1937 में गोरखनाथ मठ के महंत रह चुके दिग्विजय नाथ ने हिंदू महासभा ज्वाइन कर लिया और राम मंदिर के लिए हिंदुओं को एकजुट करने लगे। साल 1949 में उन्होंने एक टीम का नेतृत्व किया, जिसने उस समय के बलरामपुर के राजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह और स्वामी करपात्री महाराज के साथ एक बैठक की।

बताया जाता है कि जुलाई 1949 में यूपी सरकार को एक याचिका दी गई, जिसमें मंदिर बनाने की बात की गई। सरकार ने उसे फैजाबाद के जिला प्रशासन को भिजवाया और उसपर रिपोर्ट देने के लिए कहा। इसके बाद अक्टूबर में इसकी रिपोर्ट सबमिट की गई, जिसमें DM ने कहा कि लोगों की आस्था का सवाल है और वो वहां पर एक भव्य मंदिर बनाना चाहते हैं।

इससे पहले हिंदू महासभा ने भी अगस्त 1949 में एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें अयोध्या में राम मंदिर, मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि और काशी में विश्वनाथ मंदिर को लेकर बात की गई। इसमें सोमनाथ मंदिर का एक उदाहरण भी दिया गया।

22-23 दिसंबर 1949 की वो घटना आज भी लोगों की जहन में कैद है, जब विवादित ढांचे के अंदर राम की प्रतिमा स्थापित कर दी गई थी। उस वक्त दिग्विजय नाथ ने लोगों को वहां प्रार्थना शुरू करने के लिए मोटिवेट भी किया था। राम भक्तों का मानना है कि रामलला की प्रतिमा खुद ही प्रकट हो गई थी। एक मुस्लिम कॉन्सटेबल ने भी दावा किया था कि उसने मस्जिद में एक भगवान जैसे बच्चे का रूप देखा था, जो देखते ही देखते गोल्डन लाइट में बदल गई। इसे देखते ही वो बेहोश हो गया।

आपको बता दें कि तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू ने यूपी सरकार को आदेश दिया था कि उस प्रतिमा को वहां से हटाया जाए। हालांकि, सिटी मजिस्ट्रेट गुरु दत्त सिंह, जिन्हें बाद में VHP नेता अशोक सिंघल ने पहले कार सेवक के रूप में सम्मानित किया, ने मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को फैजाबाद-अयोध्या में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी और बाद में अपना इस्तीफा सौंप दिया। इसके बाद जिला मजिस्ट्रेट केके नायर ने भी प्रतिमा हटाने से मना कर दिया और तत्कालीन फैजाबाद कांग्रेस के सांसद राघव दास ने तो ये तक कह दिया था कि अगर प्रतिमा हटाई गई तो वो इस्तीफा दे देंगे।

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए लिखा गया था पत्र

इतिहासकार बताते हैं कि कांग्रेस नेता दाऊ दयाल खन्ना पहले ऐसे राजनेता थे, जिन्होंने 1983 में तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर राम मंदिर निर्माण की बात कही थी। उन्होंने इस पत्र में काशी और मथुरा का भी जिक्र किया था।

वहीं, 1984 में विश्व हिंदू परिषद की धर्म संसद की एक बैठक हुई थी, जिसमें दिल्ली के विज्ञान भवन से राम जन्मभूमि के लिए एक आंदोलन लॉन्च किया गया। तत्कालीन कार्यवाहक पीएम गुलजारी लाल नंदा ने धर्म संसद को अपना समर्थन दिया और दाऊ गयाल खन्ना को राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का संयोजक बनाया गया।

1986 में भी लिया गया था एक ऐतिहासिक फैसला

फैजाबाद के तत्कालीन जिला जज के एम पांडे ने साल 1986 में ये आदेश पारित किया था कि बाबरी मस्जिद के ताले खोल दिए जाएं और हिंदुओं को भी रामलला की प्रार्थना करने दिया जाए। इस वक्त भी एक अजीब घटना घटी थी। के एम पांडेय ने अपनी एक किताब वॉइस ऑफ कॉन्साइंस में इस घटना का जिक्र किया है। उन्होंने इसमें लिखा है कि जब वो ये फैसला सुना रहे थे, तो एक काला बंदर कोर्टरूम की छत पर आकर बैठा था। जब तक कोर्ट की कार्यवाही चली, वो बंदर वहीं बैठा रहा। इसके बाद जब वो फैसला सुनाने के बाद घर गए तो उन्होंने उसी बंदर को अपने घर के बरामदे में देखा। इस बार उन्हें एहसास हुआ कि वो भगवान की शक्ति का कोई रूप है और उन्होंने उसे प्रणाम किया।

साल 1986 के बाद की टाइलाइन

2 फरवरी 1986: पुंज के अनुसार, विश्व हिंदू परिषद ने सरकार से अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की गुहार लगाई।

3 फरवरी 1986: फैजाबाद कोर्ट के फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील की गई।

साल 1986: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड दिल्ली में एकत्र हुई और वहां उन्होंने गुहार लगाई कि बाबरी मस्जिद मुसलमानों को सौंप दी जाए।

सितंबर 1989: VHP ने ऐलान किया कि 10 अक्टूबर 1989 को अयोध्या के राम मंदिर के लिए शिलान्यास होगा।

जुलाई 1989: BJP ने कहा कि राम जन्मभूमि हिंदुओं को वापस दे देनी चाहिए।

13 जुलाई 1989: अयोध्या में बजरंग दल के सम्मेलन के दौरान पूरे भारत से 6000 से अधिक स्वयंसेवक इस आंदोलन में शामिल हुए।

9 नवंबर 1989: कामेश्वर चौपाल ने पहले राम शिला की आधारशिला रखी।

25 सितंबर 1990: लाल कृष्ण आडवाणी ने रथ यात्रा शुरू की। आडवाणी को समस्तीपुर में लालू यादव के आदेश पर गिरफ्तार कर लिया गया।

30 अक्टूबर 1990: कारसेवकों पर पुलिस ने फायरिंग की।

7 जनवरी, 1993: संसद ने अयोध्या में निश्चित क्षेत्र का अधिग्रहण अधिनियम पारित किया, जिसने सरकार को विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि की 67.03 एकड़ भूमि का अधिग्रहण करने का अधिकार दिया। इसने संविधान के अनुच्छेद 143 (1) के तहत राष्ट्रपति संदर्भ के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट से यह निर्धारित करने के लिए भी कहा कि क्या बाबरी मस्जिद के निर्माण से पहले उस स्थान पर पहले से कोई मंदिर था।

9 नवंबर 2019: सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने सर्वसम्मति से अयोध्या में राम मंदिर के लिए पूरी विवादित जमीन हिंदू याचिकाकर्ताओं को दे दी। मस्जिद निर्माण के लिए कहीं और जमीन देने का भी फैसला किया गया।

5 अगस्त 2020: पीएम मोदी ने राम मंदिर का शिलान्यास किया।

22 जनवरी 2024: अयोध्या में रामलला की भव्य प्राण प्रतिष्ठा की गई, जिसमें पीएम मोदी ने अनुष्ठान किया और दुनियाभर में इसका जश्न मनाया गया।

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Updated 19:56 IST, January 22nd 2024