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पब्लिश्ड 11:53 IST, April 7th 2024

370 का किस्सा पहले ही खत्म, अब Article 371 की चर्चा क्यों? क्या हैं प्रावधान और कहां-कहां है लागू

मल्लिकार्जुन खड़गे ने 6 अप्रैल 2024 को राजस्थान में अनुच्छेद 371 का गलती से जिक्र किया। इस पर कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के अपने-अपने आरोप और तथ्य हैं।

Reported by: Dalchand Kumar
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Home Minister Amit Shah and Congress Leader Mallikarjun Kharge
गृह मंत्री अमित शाह और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे | Image: ANI/PTI

Article 371: गलती से ही सही, लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव में एक नए मुद्दे की एंट्री हुई है। ये मुद्दा अनुच्छेद 371 का है। कांग्रेस के अध्यक्ष की जुबान फिसली, जो अनुच्छेद 370 की जगह अनुच्छेद 371 का जिक्र कर गए। वैसे पहले भी अनुच्छेद 371 की चर्चा होती आई है, लेकिन इस पर अभी नई सियासत शुरू हुई है। चुनावी माहौल में ये राजनीतिक मुद्दा बन चुका है, क्योंकि कांग्रेस और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के अपने-अपने आरोप और तथ्य हैं।

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने 6 अप्रैल 2024 को राजस्थान में अनुच्छेद 371 का गलती से जिक्र कर दिया। खड़गे बोल अनुच्छेद 370 पर रहे थे, लेकिन उनकी जुबान फिसली और अनुच्छेद 371 कहकर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को घेरना शुरू कर दिया। अब आरोप प्रत्यारोप तमाम हैं, लेकिन इसको समझना भी जरूरी है कि आखिर अनुच्छेद 371 क्या है और इसका प्रभाव किन राज्यों पर क्या पड़ता है?

अनुच्छेद 371, उसके अलग पार्ट और राज्य

अनुच्छेद 371 जम्मू कश्मीर वाले आर्टिकल 370 से अलग है। अनुच्छेद 370 'जम्मू और कश्मीर के संबंध में अस्थायी प्रावधान' से संबंधित था, जिसे भारत सरकार ने 5 अगस्त 2019 को खत्म कर दिया था। वैसे अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 371 दोनों 26 जनवरी 1950 को इसके प्रारंभ के समय संविधान का हिस्सा थे। अनुच्छेद 371-A से 371-J तक को बाद में शामिल किया गया। अनुच्छेद 371 का विषय अलग-अलग राज्यों को अलग-अलग विशेषाधिकार देता है। पूर्वोत्तर के 6 राज्यों समेत तकरीबन 12 राज्य हैं, जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 371 से 'विशेष दर्जा' मिलता है। अनुच्छेद 371, 371ए, 371बी, 371सी, 371डी, 371ई, 371एफ, 371जी, 371एच, और 371जे दूसरे राज्यों से जुड़े विशेष प्रावधानों को परिभाषित करते हैं।

अनुच्छेद 371: जब संविधान पहली बार लागू हुआ तो उस समय सिर्फ अनुच्छेद 371 था, जिसके तहत महाराष्ट्र और गुजरात के लिए विशेष प्रावधान दिए गए। इसमें 'सौराष्ट्र और कच्छ' के लिए 'अलग विकास बोर्ड' बनाने की 'विशेष जिम्मेदारी' राज्य के राज्यपाल को दी गई। इस अनुच्छेद के तहत राज्य सरकार की जिम्मेदारी होती है कि वो इन क्षेत्रों के लिए फंड आवंटित करे।

अनुच्छेद 371A (13वां संशोधन अधिनियम 1962): इसमें नागालैंड से संबंधित प्रावधान शामिल हैं। ये प्रावधान 1960 में केंद्र और नागा पीपुल्स कन्वेंशन के बीच 16 सूत्री समझौते के बाद डाला गया था, जिसके कारण 1963 में नागालैंड बना। नागालैंड के मामलों में संसद ऐसे कानून नहीं बना सकती है, जो नागा समुदाय की सामाजिक, धार्मिक या प्रथागत कानूनी प्रथाओं, या राज्य विधानसभा की सहमति के बिना भूमि के हस्तांतरण और स्वामित्व को प्रभावित करते हैं।

अनुच्छेद 371B (22वां संशोधन अधिनियम 1969): इसमें प्रावधान असम राज्य के लिए हैं। इसके तहत राष्ट्रपति राज्य के जनजातीय क्षेत्रों से चुने गए सदस्यों वाली विधानसभा की एक समिति के गठन और कामों का प्रावधान कर सकते हैं।

अनुच्छेद 371C (27वां संशोधन अधिनियम 1971): राष्ट्रपति विधानसभा में पहाड़ी क्षेत्रों से चुने गए सदस्यों की एक समिति के गठन का प्रावधान कर सकते हैं और इसके कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए राज्यपाल को 'विशेष जिम्मेदारी' सौंप सकते हैं।

अनुच्छेद 371D (32वां संशोधन अधिनियम 1973, बाद में आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2014): अनुच्छेद 371D आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्य के लिए है। इसके तहत, राष्ट्रपति को सुनिश्चित करना होता है कि राज्य के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले लोगों को रोजगार और शिक्षा में समान मौके मिलें। राज्य सरकार अलग से सिविल सर्विसेज में पोस्ट बना सकती है।

अनुच्छेद 371E: ये देश की संसद के कानून के तहत आंध्र प्रदेश में एक यूनिवर्सिटी की स्थापना की अनुमति देता है। हालांकि अन्य प्रावधानों के अर्थ में ये कोई 'विशेष प्रावधान' नहीं है।

अनुच्छेद 371F (36वां संशोधन अधिनियम 1975): सिक्किम की विधानसभा के सदस्य लोकसभा में सिक्किम के प्रतिनिधि का चुनाव कर सकते हैं। सिक्किम की आबादी के अलग-अलग वर्गों के अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए संसद विधानसभा में सीटों की संख्या तय कर सकती है, जो सिर्फ उन वर्गों के होंगी।

अनुच्छेद 371G (53वां संशोधन अधिनियम 1986): ये प्रावधान कहता है कि संसद मिजोरम के लिए ऐसा कानून नहीं बना सकती है, जो मिजो की धार्मिक या सामाजिक प्रथा, मिजो प्रथागत कानून और प्रक्रिया, मिजो प्रथागत कानून के अनुसार निर्णयों से जुड़े नागरिक और आपराधिक न्याय के प्रशासन, भूमि का स्वामित्व और हस्तांतरण से जुड़ा है। हालांकि राज्य की विधानसभा में कानून पास होने के बाद संसद ऐसा कर सकती है।

अनुच्छेद 371H (55वां संशोधन अधिनियम 1986): इसके तहत अरुणाचल प्रदेश में कानून और व्यवस्था को लेकर राज्यपाल की एक विशेष जिम्मेदारी है। वो राज्य की कैबिनेट से बातचीत के बाद 'कार्रवाई' को लेकर अपना व्यक्तिगत निर्णय ले सकते हैं।

अनुच्छेद 371J (98वां संशोधन अधिनियम 2012): इसमें हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के लिए एक अलग विकास बोर्ड का प्रावधान है। इस क्षेत्र में विकास कामों पर खर्च के लिए समान रूप से पैसा मिलेगा। इस क्षेत्र के लोगों के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षा में 'समान मौके और सुविधाएं" होंगी। इसके अलावा हैदराबाद-कर्नाटक में यहां के लोगों के लिए शैक्षणिक संस्थानों और राज्य सरकार की नौकरियों में आरक्षण का प्रावधान किया जा सकता है।

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अभी अनुच्छेद 371 पर कांग्रेस क्या कहती है?

मल्लिकार्जुन खड़गे ने जब गलती से अनुच्छेद 371 का जिक्र किया तो राजनीतिक बयानबाजी के घटनाक्रम में कांग्रेस ने अपना पक्ष रखा। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश कहते हैं, 'अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने गलती से कहा कि मोदी अनुच्छेद-371 को रद्द करने का श्रेय लेते हैं। उनका मतलब स्पष्ट रूप से अनुच्छेद 370 था।' साथ में जयराम रमेश आरोप लगाते हैं- 'लेकिन सच्चाई ये है कि नरेंद्र मोदी वास्तव में नागालैंड से संबंधित अनुच्छेद 371-ए, असम से संबंधित अनुच्छेद 371-बी, मणिपुर से संबंधित अनुच्छेद 371-सी, सिक्किम से संबंधित अनुच्छेद 371-एफ, मिजोरम से संबंधित अनुच्छेद 371-जी और और अरुणाचल प्रदेश से संबंधित अनुच्छेद 371-एच में बदलाव करना चाहते हैं।'

खड़गे की गलती पर बीजेपी का जवाब

देश के गृह मंत्री अमित शाह कहते हैं कि भारत की अवधारणा को नहीं समझने के लिए विपक्षी दल की 'इतालवी संस्कृति' को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।

अमित शाह कहते हैं- "ये सुनना शर्मनाक है कि कांग्रेस पार्टी पूछ रही है, कश्मीर से क्या वास्ता है?" गृह मंत्री लिखते हैं- 'कांग्रेस को याद दिलाना चाहूंगा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और प्रत्येक राज्य और नागरिक का जम्मू-कश्मीर पर अधिकार है, जैसे जम्मू-कश्मीर के लोगों का शेष भारत पर अधिकार है। कांग्रेस को ये नहीं पता कि कश्मीर में शांति और सुरक्षा के लिए राजस्थान के कई वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दी है। लेकिन ये सिर्फ कांग्रेस नेताओं की गलती नहीं है। भारत के विचार को न समझ पाने के लिए अधिकतर कांग्रेस पार्टी की इटालियन संस्कृति ही दोषी है।'

गृह मंत्री शाह आगे कहते हैं- “ऐसे बयानों (खड़गे की टिप्पणी) से हर उस देशभक्त नागरिक को ठेस पहुंचती है, जो देश की एकता और अखंडता की परवाह करता है। जनता कांग्रेस को जरूर जवाब देगी। और कांग्रेस की जानकारी के लिए ये अनुच्छेद 371 नहीं, बल्कि अनुच्छेद 370 था, जिसे मोदी सरकार ने निरस्त कर दिया था। हालांकि कांग्रेस से ऐसी भयानक गलतियां करने की अपेक्षा ही की जाती है। इसके द्वारा की गई ऐसी भूलों ने दशकों से हमारे देश को परेशान किया है।”

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अपडेटेड 13:58 IST, April 7th 2024