अपडेटेड 16 September 2023 at 07:19 IST
इंदिरा-राजीव जैसी विरासत नहीं, 'चाय की दुकान' से 'द बॉस' तक... कुछ ऐसा रहा PM मोदी का सफर
PM Modi Birthday: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 17 सितंबर को 73वां जन्मदिन मनाने जा रहे हैं। उनका जन्म 17 सितंबर 1950 को मेहसाणा जिले में मौजूद छोटे से कस्बे वड़नगर में हुआ था।
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Narendra Modi Birthday: 21वीं सदी उस भारत की है, जिस भारत को विश्व गुरु बनाने का सपना लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगे बढ़ रहे हैं। उनकी लोकप्रियता, वर्ल्ड लीडर की छवि और क्षमता की बदौलत भारत को भी वो सम्मान दुनिया में मिल रहा है, जिसके लिए कोई भी देश लगातार कोशिशें करता है।
खबर में आगे पढ़ें:-
- नरेंद्र मोदी का सियासी सफरनामा
- नहीं थी इंदिरा-राजीव जैसी विरासत
- 'चाय की दुकान' से 'द बॉस' बनने तक का सफर
मोदी का 17 सितंबर को 73वां जन्मदिन
आज के दौर में नरेंद्र मोदी के सामने पूरी दुनिया नतमस्तक है, नरेंद्र मोदी के इशारों पर युद्ध थम जाते हैं और दुनिया के नेता नरेंद्र मोदी से मिलने के लिए लाइन में खड़े होते हैं। ये सब ही दिखा देता है कि ये मोदी हैं और उनका नया भारत है। अब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 17 सितंबर को 73वां जन्मदिन मनाने जा रहे हैं, तो उनके 'चाय की दुकान' से 'द बॉस' तक की कहानी समझने की कोशिश करते हैं।
वड़नगर की गलियों में गुजरा बचपन
नरेंद्र मोदी की यात्रा गुजरात के मेहसाणा जिले में मौजूद छोटे से कस्बे वड़नगर की गलियों से शुरू होती है। इतिहास के टापू पर खड़े गुजरात के एक शहर वड़नगर के गरीब परिवार में अपनी जिंदगी गुजार रहे दामोदर दास मोदी और हीराबा की तीसरी संतान के रूप में नरेंद्र मोदी पैदा हुए। उनका जन्म 17 सितंबर 1950 को हुआ था, जब देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुए महज तीन ही साल हुए थे।
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कहा जाता है कि नरेंद्र मोदी के पिता रेलवे स्टेशन पर बनी दुकान पर चाय बेचा करते थे और गरीबी में पढ़ाई के बजाय नरेंद्र मोदी अपने पिता की मदद किया करते थे। वो सैनिक बनना चाहते थे, देश के लिए कुछ बड़ा करना चाहते थे। हालांकि सैनिक बनने का उनका सपना सपना ही रहा।
गरीबी में दबे कई सपने
फिर भी मोदी की जिंदगी का अहम हिस्सा जो बना रहा, वो था 'सेवा'। सेना में मौका न मिला तो, जैसे भी हो सके, वैसे ही सैनिकों की सेवा का जिम्मा उठा लिया। बताया जाता है कि जब पाकिस्तान के साथ युद्ध चल रहा था, तो रेलवे स्टेशन पर आने-जाने वाले फौजियों के लिए वो चाय लेकर जाते थे।
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जो लड़का फौजियों की वर्दी न पहन पाने से निराश और उदास था, भाग्य ने उसके लिए कुछ अलग ही दुनिया बसा रखी थी। संघर्ष के समय में नरेंद्र मोदी ने घर परिवार छोड़ दिया था और देशभर के भ्रमण पर निकल चुके थे। इन यात्राओं ने इस नौजवान के ऊपर अमिट छाप छोड़ी।
बीच में दो साल तक भारत घूमने के बाद मोदी वापस घर लौट आए थे, लेकिन अगले दो हफ्तों के बाद ही वो अहमदाबाद के लिए निकल गए, जहां नई जिंदगी और नया दरवाजा इंतजार कर रहा था।
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अहमदाबाद और उसके आगे की राह
करीब 20 साल की उम्र में नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का झंडा उठा दिया था। उनके समर्पण और संगठन कौशल से हर कोई प्रभावित हुआ, जिसके चलते 1972 में उन्हें प्रचारक बना दिया गया।
प्रचारक बने तो, उस जिम्मेदारी को निभाने के लिए उन्हें गुजरात भर में घूमना पड़ता था। यहीं से झुकाव राजनीति की तरफ बढ़ता चला गया। 1980 के दशक में नरेंद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी के साथ जुड़े।
बताया जाता है कि एक कार्यकर्ता के रूप में नरेंद्र मोदी गली-गली घूमा करते थे। जब वो गुजरात के दौरे पर थे, तो अमित शाह और नरेंद्र मोदी स्कूटर पर गली-गली जाते थे। संगठन के पोस्टरों को देखते थे और जहां पोस्टर नहीं लगे होते थे, वहां वो खुद पोस्टर लगाते थे।
इस दौरान मोदी कई आंदोलनों का हिस्सा भी बनने लगे थे। इनमें से बड़ा आंदोलन कांग्रेस सरकार पर देशव्यापी भ्रष्टाचार के आरोप भी थे, माना जाता है कि आपातकाल के पीछे यह भी एक बड़ी वजह थी।
तमाम गुजराती नौजवानों की तरह मोदी ने भी नवनिर्माण आंदोलन में हिस्सा लिया। बाद में जब उस आंदोलन को जयप्रकाश नारायण का नेतृत्व मिला तो इंदिरा गांधी सरकार हिल गई थी। देश में आपातकाल लगा दिया गया, नरेंद्र मोदी जैसे नौजवान नेता देशभर की जेलों में ठूस दिए गए। लालू यादव, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान जैसे नेता भी उसी आंदोलन के गर्भ से निकले थे।
बीजेपी में कैसी मजबूत हुई छवि?
1990 का दशक नजदीक आते आते मोदी की भारतीय जनता पार्टी में अलग छवि बन चुकी थी। वो 1988-89 में गुजरात इकाई के महासचिव बन गए थे। इसके बाद 1990 में सोमनाथ-अयोध्या रथ यात्रा में लाल कृष्ण आडवाणी के साथ खड़े होकर नरेंद्र मोदी ने एक नए सफर की शुरुआत की। यहां से उन्हें उन्हें आडवाणी के विश्वासपात्र करीबी कार्यकर्ताओं में भी शुमार किया जाने लगा।
उन्हें कई राज्यों की प्रभारी बना दिया गया था और फिर 1995 में बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव की जिम्मेदारी भी उन्हें मिल गई। 1998 में संगठन का महासचिव बना दिया गया। हालांकि मोदी की ये राजनीतिक कामयाबियां बिल्कुल भी ऐसी नहीं थीं, जिसे देखकर दावे से कहा जाए कि यह शख्स एक दिन देश का सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री बनेगा।
हालांकि 2001 का समय आते-आते नरेंद्र मोदी की किस्मत पूरी तरह बदल चुकी थी। वो इसलिए कि 2001 में नरेंद्र मोदी को गुजरात की कमान मिली, जब केशुभाई पटेल को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
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फिर शुरू हुआ केंद्र का सफर
मोदी के सफर में सबसे अहम बात रही, वो थी 'सेवा'। जमीनी स्तर से उठकर आए, नरेंद्र मोदी ने गुजरात को पूरे देश के लिए विकास और सख्त प्रशासन चलाने का एक मॉडल बना दिया था। यही मॉडल, 2014 में बीजेपी और मोदी के काम आया। लेकिन भाजपा जैसी पार्टी में यह जितना आसान दिखता है मोदी के मामले में उतना आसान नहीं रहा।
कहा जाता है कि एक प्रतिद्वंद्वी उनके गुरु समझे जाने वाले आडवाणी भी थे, जो कि इससे पहले 2009 में पार्टी का चेहरा बन चुके थे। कई और दिग्गज नेता भी कतार में थे जो तब संगठन में मोदी से कहीं ज्यादा ताकतवर नजर आते थे।
पर पार्टी में चुनाव नरेंद्र मोदी का हुआ और 2014 के चुनावों में जनता ने इस पर पक्की मोहर लगा दी थी। मोदी ने सब कुछ यूं ही हासिल नहीं कर लिया है, वो भी तब, जब न उनसे पास इंदिरा गांधी और राजीव जैसी विरासत नहीं थी। नेहरू के समय से चली राजनीतिक विरासत इंदिरा गांधी को मिली थी और उनके बाद राजीव को।
मोदी बने अब 'द बॉस'
हालांकि आडवाणी, वाजपेयी से मिले गुरुमंत्र, संघ की दीक्षा और बीजेपी के अनुशासन को धारण कर मोदी सियासत के पथ पर निकले थे, समय के साथ एक-एक कर वो तमाम पड़ाव पार करते गए। आज मोदी का मुकाम दूसरा है।
भारत में कोई नेता उनके रुतबे का नहीं है और वे निश्चित ही दुनिया के सबसे ताकतवर नेताओं में से एक हैं। मोदी कुछ भी कर सकते हैं, ये भरोसा अब पूरी दुनिया को होने लगा है। मोदी को वर्ल्ड लीडर्स ने भी 'द बॉस' की संज्ञा दे ही दी है।
Published By : Dalchand Kumar
पब्लिश्ड 16 September 2023 at 07:09 IST




