पब्लिश्ड 21:57 IST, December 5th 2024
Eknath Shinde: उद्धव से बगावत कर बने CM...ऑटो चालक से डिप्टी सीएम बनने तक कैसा रहा पूरा राजनीतिक सफर
नवंबर में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिंदे ठाणे जिले के कोपरी-पचपखाड़ी से विधायक चुने गए और उन्होंने पार्टी को भी शानदार जीत दिलाई।
Eknath Shinde Profile - A Journey Auto Driver to Deputy CM: वर्ष 2022 में शिवसेना से बगावत करने वाले वरिष्ठ नेता एकनाथ संभाजी शिंदे ने महाराष्ट्र में एक तेजतर्रार व कर्मठ नेता की छवि हासिल की है जिसे उन्होंने महायुति सरकार के नेतृत्व के दौरान ढाई साल के अपने मुख्यमंत्री के कार्यकाल में आकार दिया। शिंदे (60) ने बृहस्पतिवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता देवेन्द्र फडणवीस के नेतृत्व वाली नयी सरकार में उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उनके (शिंदे के) कुछ उत्साही समर्थक भले ही इसे "पदावनति" बता रहे हों, लेकिन कभी ऑटो-रिक्शा चालक रहे शिंदे हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में शिंदे की पार्टी ने दमदार प्रदर्शन किया और महायुति की जीत में अहम भूमिका निभाई।
नवंबर में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिंदे ठाणे जिले के कोपरी-पचपखाड़ी से विधायक चुने गए और उन्होंने पार्टी को भी शानदार जीत दिलाई। शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने 81 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिनमें से 57 पर जीत हासिल की। वहीं, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली प्रतिद्वंद्वी शिवसेना (उबाठा) का प्रदर्शन बहुत खराब रहा और वह केवल 20 सीट जीत सकी। मुख्यमंत्री के अपने कार्यकाल (30 जून, 2022 से चार दिसबंर, 2024) में शिंदे ने हमेशा उपलब्ध रहने वाले नेता के तौर पर छवि बनाई और मुंबई तटीय सड़क, मुंबई ट्रांस हार्बर लिंक (अटल सेतु, मेट्रो रेल, नवी मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, मुंबई-नागपुर समृद्धि महामार्ग और धारावी पुनर्विकास जैसी बड़ी परियोजनाओं को आगे बढ़ाया।
महायुति की जीत में एकनाथ शिंदे की अहम भूमिका
विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ महागठबंधन की प्रचंड जीत में शिंदे की महत्वपूर्ण भूमिका रही और उनकी सरकार द्वारा महिलाओं के लिए लाई गयी लाडकी बहिन योजना पांसा पलटने वाली साबित हुई। यह योजना महिलाओं के बीच इतनी लोकप्रिय हुई कि शिवसेना नेता को 'लाडका भाऊ' भी कहा जाने लगा। ठाणे जिले से अपना राजनीतिक जीवन शुरू करने वाले शिवसेना नेता की सबसे बड़ी खूबी लोगों और पार्टी कार्यकर्ताओं तक उनकी पहुंच थी। शिंदे की सियासत में सिद्दत से काम करने और उनके परिणामों को देखकर इस बात का दावा कर सकते हैं कि वही शिवसेना की विरासत के वास्तविक उत्तराधिकारी हैं।
सियासी करियर खतरे में डाल बने शिवसेना के असली उत्तराधिकारी
शिंदे ने जून 2022 में मुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत की तो उनका यह कदम अपने राजनीतिक करियर को खतरे में डालने वाला प्रतीत हुआ, लेकिन ढाई साल बाद वह बेहद मजबूत होकर उभरे। उन्होंने खुद को न केवल सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन में महत्वपूर्ण नेता के रूप में स्थापित किया, बल्कि महाराष्ट्र की बेहद प्रभावशाली हस्तियों में भी शुमार हुए।
कभी ठाणे की सड़कों पर चलाते थे ऑटो
कभी मुंबई से सटे ठाणे शहर में ऑटो चालक के रूप में काम करने वाले शिंदे ने राजनीति में कदम रखने के बाद बेहद कम समय में ठाणे-पालघर क्षेत्र में शिवसेना के प्रमुख नेता के तौर पर अपनी पहचान बनायी। उन्हें जनता से जुड़े मुद्दों को आक्रामक तरीके से उठाने के लिए जाना जाता था। नौ फरवरी 1964 को जन्मे शिंदे ने स्नातक की शिक्षा पूरी होने से पहले ही पढ़ाई छोड़ दी और राज्य में उभर रही शिवसेना में शामिल हो गए। मूलरूप से पश्चिमी महाराष्ट्र के सतारा जिले से ताल्लुक रखने वाले शिंदे ने ठाणे जिले को अपना कार्यक्षेत्र बनाया। पार्टी की हिंदुत्ववादी विचारधारा और बाल ठाकरे के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर शिंदे ने शिवसेना का दामन थाम लिया।
1997 में ठाणे के पार्षद बनने के साथ शुरू हुआ शिंदे का सियासी सफर
वह कहते हैं कि महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी तरक्की के लिए वह शिवसेना और इसके संस्थापक, दिवंगत बाल ठाकरे के ऋणी हैं। शिवसेना में शामिल होने के बाद उन्हें पार्टी के मजबूत नेता आनंद दिघे का मार्गदर्शन मिला। 2001 में दिघे की आकस्मिक मृत्यु के बाद उन्होंने ठाणे-पालघर क्षेत्र में पार्टी को मजबूत किया। शिंदे 1997 में ठाणे नगर निगम में पार्षद चुने गए थे और इसके बाद वह 2004 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर पहली बार विधायक बने। 2005 में उन्हें शिवसेना का ठाणे जिला प्रमुख बनाया गया। शिंदे के बेटे श्रीकांत शिंदे कल्याण सीट से लोकसभा सदस्य हैं।
2014 में मिला बड़ा मौका, थोड़े समय के लिए बने नेता विपक्ष
शिंदे को 2014 में कुछ समय के लिए राज्य विधानसभा में विपक्ष का नेता नियुक्त किया गया था। शिवसेना द्वारा देवेंद्र फडणवीस मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होने के फैसले के बाद उन्होंने यह पद संभाला। शिंदे के प्रभाव में तब इजाफा हुआ जब 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना ने भाजपा के साथ हाथ मिलाया और फडणवीस के नेतृत्व में सरकार बनाई जिसमें वह मंत्री रहे। शिंदे तत्कालीन मुख्यमंत्री फडणवीस (2014-19) के करीब आए और उनकी घनिष्ठता चर्चा का विषय बन गयी और ठाणे नगर निगम को छोड़कर, भाजपा ने 2016 में शिवसेना के खिलाफ महाराष्ट्र के सभी नगरीय निकायों के चुनाव लड़े।
जमीन से जुड़े नेता के तौर पर शिंदे की पहचान
जब शिवसेना ने भाजपा से नाता तोड़ लिया और 2019 के अंत में रांकपा और कांग्रेस के साथ महा विकास आघाडी (एमवीए) सरकार बनाई, तो वह कैबिनेट मंत्री बने। कोविड-19 महामारी के दौरान, राकांपा के पास स्वास्थ्य मंत्रालय होने के बावजूद, शिंदे-नियंत्रित महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास निगम ने कोरोना वायरस के रोगियों के इलाज के लिए मुंबई और उसके उपनगरों में स्वास्थ्य केंद्र स्थापित किए। शिंदे को जमीन से जुड़ा नेता माना जाता है, क्योंकि वह पार्टी कार्यकर्ताओं और सहकर्मियों के लिए हमेशा उपलब्ध रहते हैं।
एकनाथ शिंदे ने उद्धव से ऐसे छीनी पार्टी और सीएम की कुर्सी
शिवसेना उद्धव ठाकरे से छीनने की पटकथा तो 20 जून 2022 को लिखी जा चुकी थी गई थी जब एकनाथ शिंदे ने महाविकास अघाड़ी और शिवसेना के मुखिया उद्धव ठाकरे से बगावत कर दी थी। इस बगावत में शिंदे को शिवसेना के 40 विधायकों और 10 निर्दलीय विधायकों का साथ मिला था। कुल मिलाकर 50 विधायकों के समर्थन से एकनाथ शिंदे ने महाविकास अघाड़ी से बागवत की और उनकी सरकार को अल्पमत में ला दिया। यहां एक बड़ा सवाल ये था कि आखिर शिंदे ने बगावत को इस बगावत को क्यों और कैसे अंजाम दिया था?
यहां से शुरू हुई थी एकनाथ शिंदे की बगावत की चिंगारी
एकनाथ शिंदे की शिवसेना से बगावत की दो कहानिया हैं, पहला घटनाक्रम शुरू होता है महाराष्ट्र में एमएलसी के चुनाव में जहां 10 विधान परिषद की सीटों के लिए चुनाव हो रहा था। इस चुनाव में बीजेपी ने होशियारी दिखाते हुए एक अतिरिक्त प्रत्याशी को मैदान में उतार दिया। शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी को ये बात समझ में आ गई कि क्रॉस वोटिंग करवाने के लिए बीजेपी ने ये खेल खेला है। बाद में जिस बात की आशंका थी वही सही निकली। उद्धव ठाकरे ने अपने इनपुट्स से इस बात की जानकारी हासिल कर ली थी कि ये क्रॉस वोटिंग शिवसेना के विधायकों ने की है। उन्होंने तुरंत विधायकों की एक बैठक बुलाई। इस बैठक से एकनाथ शिंदे सहित 11 विधायक नदारद थे। तब तक शिवसेना में फूट पड़ चुकी थी।
बगावत की चिंगारी बनी शोला
अब शिवसेना किसी बड़ी बगावत की आशंका बननी शुरू हो चुकी थी। अभी सीएम उद्धव ठाकरे इस सदमे से उबर भी नहीं पाए थे उससे पहले ही मीडिया में खबर आ गई कि एक दर्जन से भी अधिक शिवसेना के विधायक सूरत के एक होटल में पहुंच चुके हैं। ये सभी एकनाथ शिंदे के समर्थन में सूरत पहुंचे थे। यहीं से शिंदे के बगावत की दूसरी कहानी शुरू हुई। अब एक तरफ उद्धव गुट अपनी औकात पर उतरने की कोशिश करने लगा और आक्रमक होकर धमकियां और बयानबाजियां शुरू कर दीं। सूरत से सभी विधायकों को लेकर असम के गुवाहाटी लाया गया। वहीं अब उद्धव ठाकरे ने मौजूदा खतरे को भांपते हुए कांग्रेस और एनसीपी के साथ बैठक शुरू की लेकिन संदेश मिल चुका था कि अंदर ही अंदर बड़ा और निर्णायक खेल हुआ है।
शिंदे के पास था 40 से ज्यादा विधायकों का समर्थन
मामला शिवसेना के लिए तब और भी ज्यादा गंभीर हो गया जब एकनाथ शिंदे ने मीडिया के सामने आकर बोल दिया कि उनके पास शिवसेना के पास 40 से ज्यादा विधायकों का समर्थन है। अगर इस संख्या से कम विधायक शिंदे के पास होते तो फिर एंटी डिफेक्शन लॉ के तहत शिंदे सहित सभी बागी विधायकों का सियासी करियर खतरे में डाल देता। यही संख्या बल ही शिंदे के लिए सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट साबित हुआ, उनके पास संख्या बल था, इस बात का अहसास उद्धव ठाकरे को भली भांति था उन्होंने महाराष्ट्र की जनता से भावुक अपील भी की कि अगर बागी विधायक चाहते हैं कि वो सीएम के पद से इस्तीफा दे दें तो वो दे देंगे लेकिन तब तक विद्रोह की चिनगारी शोलों में बदल चुकी थी।
चुपचाप अपना दांव खेलने के इंतजार में बैठी थी बीजेपी
उद्धव गुट की छटपटाहट और बेचैनी उनके कार्यकर्ताओं में भी साफ तौर पर दिखाई दे रही थी। इस बीच बीजेपी चुप्पी साधे हुए सब कुछ शांति से देख रही थी। वो शिंदे की ओर से सारे दांव चलने का इंतजार कर रही थी और फिर वो दिन भी आ गया जब बीजेपी ने अपना दांव खेला और तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को फ्लोर टेस्ट के लिए बोल दिया चिट्ठी के जरिए मांग की गई कि उद्धव अपनी सरकार का बहुमत साबित करें। 30 जून को बहुत साबित करना था तब उद्धव सुप्रीम कोर्ट चले गए वहां से भी उन्हें राहत नहीं मिली। जब उद्धव को ये एहसास हो गया कि अब सरकार गिरना तय है तो उन्होंने इस्तीफा देना ही बेहतर समझा। वहीं दूसरी ओर बीजेपी ने समर्थन देकर एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बना दिया। इस तरह से एकनाथ शिंदे ने शिवसेना और सीएम की कुर्सी दोनों पर कब्जा किया।
शिंदे ने उद्धव से छीनी पार्टी और सीएम की कुर्सी
राज्यपाल ने भी तेजी दिखाते हुए 30 जून को बहुमत साबित करने के लिए कह दिया। उद्धव सुप्रीम कोर्ट चले गए, फ्लोट टेस्ट के खिलाफ याचिका दायर की, लेकिन समय ऐसा खराब कि वहां से भी कोई राहत नहीं मिली। उद्धव समझ चुके थे कि अगर फ्लोट टेस्ट के लिए गए, उनकी सरकार का गिरना तय है। नंबर साथ था नहीं, ऐसे में उन्होंने इस्तीफा देना ही ठीक समझा। वहां इस्तीफा हुआ दूसरी तरफ बीजेपी ने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बना दिया। तो इस तरह शिवसेना भी शिंदे की हो गई और मुख्यमंत्री की कुर्सी भी उनके हाथ में आ गई।
(इनपुट - भाषा)
अपडेटेड 21:58 IST, December 5th 2024