sb.scorecardresearch

Published 14:06 IST, December 27th 2024

भारत का आर्थिक संकट, अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील और मनमोहन सिंह का अडिग फैसला... सोनिया से नाराजगी की कहानी

अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील के समय मनमोहन सिंह सोनिया गांधी की असहमति को लेकर नाखुश थे। बताया जाता है कि उन्होंने इस्तीफा देने तक को कह दिया था।

Reported by: Digital Desk
Edited by: Dalchand Kumar
Follow: Google News Icon
  • share
manmohan singh and sonia gandhi
manmohan singh and sonia gandhi | Image: PTI

Manmohan Singh: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से जुड़े किए किस्से हैं। इसी में से एक किस्सा मनमोहन सिंह की सोनिया गांधी से नाराजगी का है। भले सोनिया गांधी ने 2004 में मनमोहन सिंह को शीर्ष पद के लिए नियुक्त किया था, लेकिन दोनों के रिश्ते हमेशा अच्छे नहीं रहे। कुछ मौके ऐसे भी आए जब मनमोहन सिंह की अहस्तक्षेप की प्रवृत्ति सोनिया के राजनीतिक दृष्टिकोण के विपरीत थी। यही सोनिया गांधी से नाराजगी की कहानी बनी। अभी मनमोहन सिंह इस दुनिया में नहीं रहे हैं। 26 दिसंबर की देर शाम पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह चल बसे। इस समय में भारत में लोग पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री के देश के प्रति योगदान पर विचार और उनकी कार्यशैली की बात कर रहे हैं।

ये आरोप लगते रहे हैं कि मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री रहते हुए सोनिया गांधी के हिसाब से चले। उनकी सरकार को रिमोट कंट्रोल सरकार की संज्ञा मिली चुकी थी। यहां तक ​​कि राजनीतिक विरोधियों ने उन्हें 'डमी' और 'शैडो' प्रधानमंत्री करार दिया। इसके बावजूद मनमोहन सिंह के देश के प्रति योगदान को दरकिनार कतई नहीं किया जा सकता है। मनमोहन सिंह के कार्यकाल के कुछ पन्नों को अगर देखा जाए तो उनके फैसले देशहित में थे, चाहे उनके लिए मनमोहन सिंह को कांग्रेस और गांधी परिवार के खिलाफ ही क्यों ना जाना पड़ा हो, वो अपने फैसलों पर अडिग रहे।

भारत का आर्थिक संकट और मनमोहन के फैसले

मनमोहन सिंह को 1991 में प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार ने वित्त मंत्री नियुक्त किया था। उस समय भारत की अर्थव्यवस्था गंभीर वित्तीय संकट का सामना कर रही थी। देश के विदेशी भंडार खतरनाक रूप से निम्न स्तर पर थे। मनमोहन सिंह ने अर्थव्यवस्था के पतन से बचने के लिए इसे नियंत्रण मुक्त करने की पहल की। अपनी सरकार और पार्टी के सदस्यों के कड़े विरोध के बावजूद उन्होंने साहसिक कदम उठाए, जिसमें मुद्रा का अवमूल्यन, आयात शुल्क में कमी और सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों का निजीकरण शामिल था।

यह भी पढ़ें: आवास पर अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा मनमोहन सिंह का पार्थिव शरीर, जानिए कब-कहां होगा अंतिम संस्कार

आसान शब्दों में समझें तो जब मनमोहन सिंह ने 1991 में वित्त मंत्रालय की बागडोर संभाली, तब भारत का राजकोषीय घाटा GDP के 8.5 प्रतिशत के करीब था, भुगतान संतुलन घाटा बहुत बड़ा था और चालू खाता घाटा भी GDP के तकरीबन 3.5 प्रतिशत था। यही नहीं, देश के पास जरूरी आयात के भुगतान के लिए सिर्फ दो हफ्ते लायक ही विदेशी मुद्रा बची थी। नौबत ये थी कि भारत को तब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में सोना गिरवी रखना पड़ा था। कुल मिलाकर भारत की अर्थव्यवस्था घुटने टेक चुकी थी। उस हालात में मनमोहन सिंह ने देश में नए आर्थिक युग की शुरुआत की। मनमोहन ने इस स्थिति को मौके की तरह लिया। आर्थिक सुधारों की एक व्यापक नीति को लेकर मनमोहन सिंह ने कुशलता के साथ अर्थव्यवस्था की कमान संभाली। उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसले लिए और नतीजन भारत की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटी। वृद्धि दर भी तेज हुई। इसमें मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव का पूरा सहयोग मिला।

न्यूक्लियर डील और मनमोहन सिंह का अडिग फैसला

प्रधानमंत्री के तौर पर पहले कार्यकाल में मनमोहन सिंह ने ऐसा फैसला लिया, जिससे वो पीछे नहीं हटे, भले सरकार उस समय दांव पर लग चुकी थी। अमेरिका के साथ मनमोहन सिंह ने संबंधों को नया आयाम दिया था और उसी समय में भारत अमेरिका से परमाणु करार करने की दिशा में आगे बढ़ा।

यह भी पढ़ें: मनमोहन सिंह को PM मोदी-अमित शाह ने श्रद्धांजलि दी, राष्ट्रपति भवन पर झंडा झुका... 10 अपडेट्स

मनमोहन सिंह लेफ्ट की बैसाखी के सहारे सरकार चला रहे थे। अमेरिका से साथ ये ऐतिहासिक समझौता गठबंधन के दलों को मंजूर नहीं थी। मनमोहन सिंह की इस दिशा में आगे बढ़ने का फैसला ऐसा था कि इससे उनकी खुद की सरकार जोखिम में थी। इसकी परवाह मनमोहन सिंह ने नहीं की। जॉर्ज डब्ल्यू बुश उस समय अमेरिकी राष्ट्रपति थे। मनमोहन सिंह ने प्रस्ताव दिया और 2008 में संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के बीच एक अभूतपूर्व परमाणु समझौता हुआ।

सोनिया से नाराजगी की कहानी और इस्तीफे की धमकी

अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील को पहले मनमोहन सिंह के प्रस्ताव से उनके आलोचक खुश नहीं थे। बताया जाता है कि कई लोगों ने इसका विरोध किया था। राजनीतिक दलों के विरोध के बीच खुद सोनिया गांधी मनमोहन सिंह के इस फैसले को लेकर असहमत थीं। कहा जाता है कि मनमोहन सिंह को सोनिया गांधी का ये रुख कतई पसंद नहीं आया था। वो सोनिया गांधी से निराश हो गए थे और इतना गुस्सा थे कि इस्तीफा देने तक की पेशकश होने कर दी थी। खैर, ये नौबत नहीं आई, क्योंकि मनमोहन सिंह अपने सहज और विनम्र स्वभाव के चलते सरकार को बचाने और डील फाइनल कराने में सफल हो गए।

यह भी पढ़ें: मनमोहन सिंह पर बोले रामनाथ कोविंद, कहा-देश की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी

Updated 14:06 IST, December 27th 2024