Published 23:05 IST, July 25th 2024
कारगिल के बारे में कितना जानते हैं आप? क्या है इतिहास और कैसे पड़ा नाम; यहां जानें सब कुछ
Kargil:भारत के बलिदानियों की कर्मभूमि कारगिल का इतिहास बहुत पुराना है। कारगिल करीब 14,086 वर्ग क्षेत्रफल में फैला हुआ है। जिसमें ज्यादातर शिया मुसलमान रहते हैं।
Kargil Vijay Diwas 2024: 26 जुलाई, 1999 को भारत के रणबांकुरों ने अपना शौर्य और पराक्रम दिखाते हुए पाकिस्तानी सेना को खदेड़कर कारगिल की बर्फीली चोटियों पर विजय पताका फहराया था। 26 जुलाई का दिन हर उन सैनिकों को अर्पित है जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। कारगिल विजय दिवस की रजत जयंती समारोह में एक बार फिर उन वीरों की अमर कहानी देश भर में गूंज रही है।
1999 में कारगिल का युद्ध तब शुरू हुआ था, जब पाकिस्तानी सेना नियंत्रण रेखा से भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ कर करगिल, बटालिक और द्रास सेक्टर की चोटियों तक आ पहुंची थी। भारत के लिए हालात बहुत खतरनाक थे, क्योंकि पाकिस्तानी ऊंची पहाड़ियों पर थे और हिंदुस्तानी फौज नीचे। हालात कठिन थे, पाकिस्तानियों के मंसूबे खतरनाक थे, लेकिन भारतीय फौज कहां हार मानने वाली थी। हमारे जांबाजों ने हर मुश्किल को मात देकर पाकिस्तानों को खदेड़ दिया था। इस लड़ाई में भारत के 500 से अधिक वीर जवान शहीद हुए थे।
कारगिल की 'विजय गाथा'
कारगिल का युद्ध 3 मई, 1999 को शुरू हुआ था। करीब 3 महीने तक चली इस जंग में भारत ने पाकिस्तान को 26 जुलाई, 1999 को घुटनों पर ला दिया था। घुसपैठ पाकिस्तान की सेना ने की थी और विजय का झंडा भारत ने फहराया। भारत के मिराज ने लेजर गाइडेड बमों से हमला किया था और बोफोर्स तोप की पाक को हराने में अहम भूमिका रही थी। 26 जुलाई को कारगिल की सभी चोटियों पर भारतीय जवानों ने तिरंगा फहरा दिया था।
पहले दूसरे दिन पाकिस्तान की सेना भारत पर हावी रही। इसके बाद भारतीय सेना ने युद्ध की रणनीति बदली और चोटियों के लिए अलग-अलग टीम बनी। ये जंग 15-18 हजार फीट की ऊंचाई पर लड़ी गई थी। 32 हजार फीट की ऊंचाई पर भारत की वायु शक्ति का इस्तेमाल हुआ था। दुश्मन कंक्रीट के बने बंकरों में छिपकर बैठा। पाकिस्तानी सैनिकों पर करीब 2.5 लाख गोले दागे गए थे। 300 से ज्यादा तोप, मोर्टार और रॉकेट लॉन्चर से वार किया गया था।
कारगिल का इतिहास
भारत के बलिदानियों की कर्मभूमि कारगिल का इतिहास बहुत पुराना है। कारगिल करीब 14,086 वर्ग क्षेत्रफल में फैला हुआ है। जिसमें ज्यादातर शिया मुसलमान रहते हैं। कारगिल नाम दो शब्दों खार और र्किल से मिलकर बना है। खार का मतलब किला होता है और र्किल का मतलब है केंद्र। कारगिल को किलों के बीच का स्थान कहा गया है। इसका कारण ये है कि ये जगह कई राज्यों के बीच में है। कई लोगों का मत है कि कारगिल शब्द गर और खिल शब्दों से लिया गया है। स्थानीय भाषा में गर का अर्थ है 'कहीं भी' और खिल का अर्थ है एक केंद्रीय स्थान जहां लोग रह सकते हैं।
कारगिल के नाम को श्रीनगर, स्कार्दो, लेह और पदुम की दूरी भी परिभाषित करती है जो करीब 200 किलोमीटर की समान दूरी पर है। समय बीतने के साथ खार र्किल या गर खिल को कारगिल के रूप में जाना जाने लगा। प्राचीन समय में, वर्तमान कारगिल के अधिकांश भाग का नाम पुरीक था। यह नाम तिब्बती विद्वानों द्वारा दिया गया है क्योंकि यहां रहने वाले लोगों में तिब्बतियों की विशेषताएं हैं। द्रास में दर्द जाति के लोग रहते हैं और जास्कर में लद्दाखी-तिब्बती वंश है। कारगिलियों के नस्लीय वंश आर्यन, दर्द, तिब्बती और मंगोलॉयड हैं। कारगिल एक ऐसा स्थान है जहां बहु-जातीय, बहु-भाषी, बहु-सांस्कृतिक लोग रहते हैं। लोगों की प्रजातियां ब्रोगपा, बाल्टिस, पुरिक, शिना और लद्दाखी हैं। बोली जाने वाली भाषाएं शिना, बाल्टी, पुरीग, लद्दाखी आदि हैं। बाल्टी और शिना भाषाएं उर्दू लिपि में लिखी जाती हैं, इसलिए इस क्षेत्र में उर्दू आम है।
(कारगिल के इतिहास की जानकारी भारत सरकार (कारगिल) की आधिकारिक वेबसाइट से ली गई है)
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Updated 23:05 IST, July 25th 2024