Published 17:57 IST, December 1st 2024
दिल्ली में प्रदूषण के कारण लगने वाले प्रतिबंध श्रमिकों को कैसे प्रभावित करते हैं?
दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता अत्यधिक गंभीर श्रेणी में पहुंचने के बाद निर्माण एवं विध्वंस गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने से बहुत मजदूर बेरोजगार हो गए हैं।
Delhi Pollution: बिहार के राजमिस्त्री राजू सिंह ने कहा, ‘‘जब वे हमारा काम बंद कर देते हैं, तो हमें सिर्फ मजदूरी का नुकसान नहीं होता है। हमारी थाली से भोजन छिन जाता है और हम अपने बच्चों के भविष्य के लिए जो थोड़ी बहुत बचत करते हैं, वो भी गंवा देते हैं।’’ राजू उन हजारों प्रवासी और स्थानीय निर्माण श्रमिकों में से एक है, जो दिल्ली-एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) में हवा की गुणवत्ता अत्यधिक गंभीर श्रेणी में पहुंचने के बाद निर्माण एवं विध्वंस गतिविधियों पर 11 नवंबर को प्रतिबंध लगाए जाने के कारण बेरोजगार हो गए हैं। सर्दी के दौरान इस तरह के और भी प्रतिबंध लगने की संभावना है।
राजू ने कहा, ‘‘हालांकि, दूषित हवा में काम करने से हमारे लिए सांस लेना मुश्किल हो जाता है, फिर भी मैं खाली बैठने के बजाय काम करना पसंद करूंगा।’’ दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की रोकथाम के लिए हर साल लगाए जाने वाले इस तरह के प्रतिबंधों से राजू और उसके जैसे हजारों श्रमिकों की रोजीरोटी पर असर पड़ता है।
जीआरएपी के तहत प्रदूषण विरोधी उपाय
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के इलाकों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) चरणबद्ध प्रतिक्रिया कार्य योजना (जीआरएपी) के तहत प्रदूषण विरोधी उपाय लागू करता है। जीआरएपी प्रणाली साल 2017 में शुरू की गई थी और यह वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) के स्तर के आधार पर लागू की जाती है। जीआरएपी के पहले और दूसरे चरण (एक्यूआई 201 से 400 तक) के प्रतिबंध दिशा-निर्देशों, धूल नियंत्रण और डीजल जनरेटर के इस्तेमाल पर रोक पर केंद्रित होते हैं। वहीं, तीसरे चरण (एक्यूआई 401-450 तक) के तहत शहर में सभी गैर-जरूरी निर्माण और वाहनों के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी जाती है। इसी तरह, चौथे चरण (एक्यूआई 450 से ऊपर) के तहत सभी निर्माण-विध्वंस गतिविधियों और गैर-जरूरी ट्रक एवं बीएस-IV डीजल वाहनों के प्रवेश पर रोक लगाने के साथ घर से काम करने की सुविधा देने की सलाह दी जाती है।
धूल श्रेणी में निर्माण कार्यों की बड़ी हिस्सेदारी
अर्बनएमिशंस डॉट इंफो के संस्थापक और निदेशक डॉ. सरथ गुट्टीकुंडा ने एक अध्ययन का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने 1990-2022 तक दिल्ली में वायु प्रदूषण के स्तर की समीक्षा की और पाया कि धूल श्रेणी में निर्माण कार्यों की बड़ी हिस्सेदारी है और ये 10-30 फीसदी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं। निर्माण गतिविधियों पर 2021 में 20 दिनों और 2022 में 35 दिनों के लिए प्रतिबंध लगाया गया था। पिछले साल गैर-आवश्यक निर्माण कार्यों पर 26 दिनों तक रोक थी और इस वर्ष भी लंबी अवधि तक प्रतिबंध बरकरार रहने की संभावना है।
बिहार के राजमिस्त्री अजय कुमार भी बेरोजगार हुए
बिहार का एक अन्य राजमिस्त्री अजय कुमार (34) भी जीआरएपी से जुड़े प्रतिबंध लागू होने के बाद बेरोजगार हो गया। अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए वह सब्जी की एक दुकान पर सहायक के रूप में काम करने लगा, जिससे उसकी कमाई सामान्य आय के एक-तिहाई से भी कम हो गई है। निर्माण श्रमिक रीना देवी (40) की भी यही कहानी है। घर चलाने के लिए उसने एक पुरानी सिलाई मशीन पर पड़ोसियों के लिए कपड़े सिलना शुरू कर दिया, जिससे उसे नियमित मजदूरी का कुछ हिस्सा तो मिल ही जाता है। रीना कहती है, ‘‘यह पैसे कमाने का एकमात्र तरीका था। कमाई बेहद कम थी, लेकिन इससे हम भोजन और अन्य बुनियादी जरूरतें जुटाने में सक्षम हो गए।’’
पश्चिम बंगाल के सुजीत ने बताई परेशानी
पश्चिम बंगाल का सुजीत कहता है कि निर्माण गतिविधियों पर हर साल लगने वाले प्रतिबंध से उसका बजट बिगड़ जाता है और वह कर्ज के जाल में फंसता चला जा रहा है। सुजीत के मुताबिक, ‘‘जब काम रोक दिया जाता है, तो हमें अधिक ब्यार दर पर कर्ज लेना पड़ता है। जब काम बहाल होता है, तो हमारी ज्यादातर मजदूरी कर्ज चुकाने में खर्च हो जाती है।’’ सुजीत बाढ़ के प्रति संवेदनशील अपने गांव को छोड़ इस उम्मीद से दिल्ली आया था कि मौसम की मार से उसकी रोजीरोटी प्रभावित नहीं होगी, लेकिन दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के खतरनाक श्रेणी में पहुंचने पर हर साल लगाए जाने वाले प्रतिबंधों से उसकी मुश्किलें और बढ़ जाती हैं।
दिल्ली-एनसीआर में 13 लाख श्रमिकों का अनुमान
दिल्ली-एनसीआर में 13 लाख निर्माण श्रमिक होने का अनुमान है। इनमें ज्यादातर बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के प्रवासी श्रमिक शामिल हैं। बेहतर कमाई की उम्मीद में वे अपने परिवार साथ लेकर आते हैं, निर्माण साइट पर अस्थाई आश्रय बनाते हैं और अनजाने में एक और समस्या-बाल मजदूरी को बढ़ावा देते हैं। काजल (12) की अब तक की जिंदगी एक निर्माण साइट से दूसरे में जाने में बीती। उसने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा और 10 साल की उम्र से ही मजदूरी करने लगी। ग्रेटर नोएडा में एक निर्माण साइट पर पत्थर ढोने का काम करने वाली काजल कहती है, ‘‘हम काम की तलाश में पूरे शहर में घूमते रहते हैं।’’
Updated 17:57 IST, December 1st 2024