Published 14:31 IST, August 19th 2024
सर्वे में बड़ा खुलासा, मेडिकल के 28 फीसदी छात्रों को मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के एक कार्य बल के ऑनलाइन सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि मेडिकल के लगभग 28 प्रतिशत स्नातक (यूजी) और 15.3 प्रतिशत स्नातकोत्तर (पीजी) छात्रों ने मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझने की बात स्वीकार की है।
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के एक कार्य बल के ऑनलाइन सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि मेडिकल के लगभग 28 प्रतिशत स्नातक (यूजी) और 15.3 प्रतिशत स्नातकोत्तर (पीजी) छात्रों ने मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझने की बात स्वीकार की है।
सर्वेक्षण में 25,590 स्नातक छात्र, 5,337 स्नातकोत्तर छात्र और 7,035 संकाय सदस्यों ने हिस्सा लिया। इसमें सलाह दी गई है कि रेजिडेंट डॉक्टर प्रति सप्ताह 74 घंटे से अधिक काम न करें, सप्ताह में एक दिन की छुट्टी लें और रोजाना सात से आठ घंटे की नींद लें।
मेडिकल छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण पर राष्ट्रीय कार्य बल की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 12 महीनों में 16.2 प्रतिशत एमबीबीएस छात्रों ने मन में स्वयं को नुकसान पहुंचाने या आत्महत्या करने के विचार आने की बात कही, जबकि एमडी/एमएस छात्रों के मामले में यह संख्या 31 प्रतिशत दर्ज की गई।
कार्य बल ने इस सर्वे रिपोर्ट को जून में अंतिम रूप दिया। रिपोर्ट के मुताबिक, छात्रों में अकेलेपन या सामाजिक अलगाव की भावना आम है। 8,962 (35 प्रतिशत) छात्र हमेशा या अक्सर इसका अनुभव करते हैं और 9,995 (39.1 प्रतिशत) ने कभी-कभी इन भावनाओं से दो-चार होने की बात कही। सामाजिक संपर्क कई लोगों के लिए एक मुद्दा है, क्योंकि 8,265 (32.3 प्रतिशत) को सामाजिक संबंध बनाने या बनाए रखने में मुश्किल होती है और 6,089 (23.8 प्रतिशत) को यह 'कुछ हद तक कठिन' लगता है।
तनाव भी एक बड़ी समस्या है। सर्वे में शामिल लोगों में से 36.4 प्रतिशत ने बताया कि उन्हें तनाव से निपटने के लिए ज्ञान और कौशल की कमी महसूस होती है। 18.2 प्रतिशत लोगों ने फैकल्टी या परामर्शदाताओं से बहुत कम सहयोग मिलने की बात कही।
इस सर्वेक्षण के अनुसार, 56.6 प्रतिशत छात्रों ने अपने शैक्षणिक भार को संभालने योग्य, लेकिन अत्यधिक बताया। 20.7 प्रतिशत छात्रों के मुताबिक, उन पर शैक्षणिक भार बहुत ज्यादा है। केवल 1.5 प्रतिशत ने इसे हल्का बताया।
सर्वेक्षण में पाया गया कि ‘‘असफलता का डर’’ यूजी छात्रों के बीच एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जिसमें 51.6 प्रतिशत सहमत हैं या दृढ़ता से सहमत हैं कि यह उनके प्रदर्शन पर नकारात्मक असर डालता है। इसके अलावा, 10,383 छात्र यानी 40.6 प्रतिशत लगातार शीर्ष ग्रेड प्राप्त करने का दबाव महसूस करते हैं।
सर्वे के मुताबिक, 56.3 प्रतिशत यूजी छात्र व्यक्तिगत जीवन और शैक्षणिक कार्य के बीच संतुलन बैठाने में संघर्ष महसूस करते हैं। मेडिकल पाठ्यक्रम से उत्पन्न तनाव एक महत्वपूर्ण कारक है, जिसमें 11,186 (43.7 प्रतिशत) ने इसे अत्यधिक या महत्वपूर्ण रूप से तनावपूर्ण, जबकि 9,664 (37.8 प्रतिशत) ने इसे मध्यम रूप से तनावपूर्ण बताया।
सर्वेक्षण में पाया गया कि बार-बार परीक्षा लिए जाने को 35.9 प्रतिशत छात्रों ने अत्यधिक या महत्वपूर्ण रूप से तनावपूर्ण बताया और 37.6 प्रतिशत के लिए यह मध्यम रूप से तनावपूर्ण है। मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच को 18.6 प्रतिशत छात्रों ने बहुत या कुछ हद तक दुर्गम माना। 18.8 प्रतिशत ने इन सेवाओं की गुणवत्ता को बहुत खराब या खराब बताया।
मेडिकल के 25,590 स्नातक छात्रों के लिए रैगिंग और तनाव से संबंधित मापदंडों का विश्लेषण उनके अनुभवों और तनाव के स्तर के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है।
करीब 76.8 प्रतिशत छात्रों ने बताया कि उन्होंने किसी भी तरह की रैगिंग या उत्पीड़न का अनुभव नहीं किया, जबकि 9.7 प्रतिशत ने ऐसे अनुभवों की सूचना दी। 17,932 (70.1 प्रतिशत) छात्रों का मानना है कि उनके कॉलेज में रैगिंग को रोकने और उससे निपटने के लिए पर्याप्त उपाय हैं, जबकि 3,618 (14.1 प्रतिशत) असहमत हैं, और 4,040 (15.8 प्रतिशत) छात्र अनिश्चित हैं।
पीजी के 20 प्रतिशत छात्रों ने माना कि उन्हें वर्तमान शैक्षणिक भार अक्सर चुनौतीपूर्ण लगता है। 9.5 प्रतिशत ने इसे बहुत ज्यादा तनाव पैदा करने वाला बताया, जबकि 32 प्रतिशत ने कहा कि वे इसे झेलने में सक्षम हैं।
लगभग आधे पीजी छात्रों (45 प्रतिशत) ने बताया कि वे सप्ताह में 60 घंटे से अधिक काम करते हैं और 56 प्रतिशत से अधिक को साप्ताहिक अवकाश भी नहीं मिलता।
कार्य बल के सर्वेक्षण के अनुसार, 18 प्रतिशत पीजी छात्रों ने बताया कि रैगिंग अभी भी होती है और इससे उन्हें नुकसान होता है। 1425 (27 प्रतिशत) छात्रों ने वरिष्ठ पीजी छात्रों की ओर से उत्पीड़न झेलने, जबकि 1669 (31 प्रतिशत) ने संकाय और वरिष्ठ रेजिडेंट डॉक्टरों से इसी तरह का अनुभव होने की सूचना दी।
कार्य बल ने कहा कि रैगिंग विरोधी नियमों के बारे में जागरूकता अपेक्षाकृत अधिक (84 प्रतिशत) है, लेकिन अभी भी लगभग 20 प्रतिशत छात्र इन नियमों से अनभिज्ञ हैं, जो शिक्षा और संचार प्रयासों को बढ़ावा देने की आवश्यकता दर्शाता है।
पीजी के ज्यादातर छात्रों ने मध्यम से बहुत अधिक तनाव (84 प्रतिशत) का अनुभव करने की बात स्वीकार की। कार्य बल ने कहा कि यह चिकित्सा संस्थानों के भीतर प्रभावी तनाव प्रबंधन और मानसिक स्वास्थ्य सहायता संरचनाओं की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
स्नातकोत्तर के 3419 (64 प्रतिशत) छात्रों ने बताया कि शैक्षणिक भार ने उनके मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। उन्होंने तनाव के कारकों के रूप में लंबे दैनिक कार्य घंटे, पांच दिनों तक लगातार ड्यूटी और कार्यस्थलों पर अपर्याप्त बुनियादी ढांचा जैसे कारकों का हवाला दिया।
इसके अलावा, 1034 (19 प्रतिशत) स्नातकोत्तर छात्रों ने तनाव कम करने के लिए तंबाकू, शराब, भांग और अन्य नशीले पदार्थों के सेवन की जरूरत महसूस होने की बात कही। 1409 (26 प्रतिशत) पीजी छात्रों ने स्नातकोत्तर छात्रों में तनाव और मादक पदार्थों के सेवन के बीच संबंध होने की बात कही।
ऐसे 5,337 छात्रों में से 10 प्रतिशत से अधिक ने माना कि उन्होंने पिछले एक साल में आत्महत्या करने की सोची थी। 237 (4.44 प्रतिशत) पीजी छात्रों ने पिछले साल आत्महत्या करने की कोशिश करने की बात स्वीकार की। 17 प्रतिशत पीजी छात्रों ने अपनी थीसिस के दौरान गाइड से अपर्याप्त सहयोग मिलने की जानकारी दी।
Updated 14:31 IST, August 19th 2024