Published 21:13 IST, November 1st 2024
दिल्ली की अदालत ने हत्या की कोशिश के मामले में जताया संदेह, 3 लोगों को किया बरी
दिल्ली की एक अदालत ने हत्या की कोशिश के करीब सात साल पुराने एक मामले की जांच पर गंभीर संदेह जताते हुए तीन व्यक्तियों को बरी कर दिया।
दिल्ली की एक अदालत ने हत्या की कोशिश के करीब सात साल पुराने एक मामले की जांच पर गंभीर संदेह जताते हुए तीन व्यक्तियों को बरी कर दिया।अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अतुल अहलावत ने कहा कि मंशा अपराध का एक आवश्यक तत्व होती है तथा घायल प्रत्यक्षदर्शी के बयान के आधार पर इसे तय करना एक ‘‘दोधारी तलवार’’ है। अदालत ने कहा कि इसका इस्तेमाल आरोपी को फंसाने में भी किया जा सकता था।
अदालत फहीम कुरैशी, नईम कुरैशी और हनीफ खान के खिलाफ मामले की सुनवाई कर रही थी, जो 18 अक्टूबर 2017 को शिकायतकर्ता असलम के घर में कथित तौर पर घुसने और उन्हें पीटने के आरोपी हैं।
अभियोजन पक्ष ने कहा कि घटना के दौरान, फईम ने असलम पर गोली भी चलाई थी। अदालत ने 9 अक्टूबर को सुनाये गए 72 पृष्ठों के फैसले में असलम के बयान पर गौर किया, जिसके अनुसार, उस पर गोली चलाए जाने के बाद उसका भाई शकील घटनास्थल पर पहुंचा था। लेकिन शकील की गवाही में कुछ ‘‘सुधार’’ को रेखांकित किया गया, जिसमें उसने दावा किया था कि उसने पूरी घटना देखी थी, जिसमें हाथापाई और फईम द्वारा असलम पर कथित तौर पर गोली चलाना भी शामिल था।
इसे ‘‘अभियोजन पक्ष के मामले के लिए झटका’’ करार देते हुए अदालत ने कहा कि गोली लगने से असलम की पतलून में छेद होने के निशान नहीं थे और उसके इस परिधान को कभी फॉरेंसिक जांच के लिए नहीं भेजा गया।
अदालत ने पाया कि न तो कथित हथियार बरामद किया गया और न ही अपराध स्थल पर खोखे पाये गए और यहां तक कि घटनास्थल से एकत्र किये गए रक्त के नमूनों का भी विश्लेषण नहीं किया गया। न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा, ‘‘इसलिए यह साबित नहीं किया जा सका कि अपराध स्थल से एकत्र किया गया रक्त का नमूना घायल व्यक्ति का था, या नहीं। वर्तमान मामले में यह भी साबित नहीं किया जा सका कि रक्त किसी मानव या पशु का था।’’
अदालत ने असलम का इलाज करने वाले चिकित्सक के बयान पर भी गौर किया, जिसने खुद ही चोट पहुंचाने की संभावना से इनकार नहीं किया। अदालत ने कहा, ‘‘मौजूदा मामले में, जांच पर गंभीर संदेह पैदा होता है, जिसे खारिज नहीं किया जा सकता।’’
शिकायतकर्ता और आरोपियों के बीच पुरानी रंजिश के संबंध में अदालत ने कहा कि केवल मकसद ही पर्याप्त नहीं है। अदालत ने कहा, ‘‘मंशा अपने आप में एक दोधारी तलवार है। परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित मामलों में, मंशा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हालांकि, प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य पर आधारित मामलों में इसका उतना महत्व नहीं होता है।’’ अदालत ने कहा, ‘‘इसलिए, यह (अभियोजन पक्ष का दावा) कोई भरोसा पैदा नहीं करता है और आरोपी व्यक्तियों को इस मामले में फंसाये जाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।’’
Updated 21:13 IST, November 1st 2024