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पब्लिश्ड 21:54 IST, January 16th 2024

राज्य सरकारें अपने उद्यमों को दी जाने वाली गारंटी के लिए न्यूनतम शुल्क लें- RBI

RBI के एक कार्यसमूह ने सुझाव दिया है कि राज्य सरकारों को अपने स्थानीय निकायों और सहकारी संस्थानों के कर्ज पर दी गई गारंटी के लिए न्यूनतम शुल्क लेना चाहिए।

Edited by: Nidhi Mudgill
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आरबीआई | Image: ani

भारतीय रिजर्व बैंक के एक कार्यसमूह ने सुझाव दिया है कि राज्य सरकारों को अपने उद्यमों, स्थानीय निकायों और सहकारी संस्थानों के कर्ज पर दी गई गारंटी के लिए न्यूनतम शुल्क लेना चाहिए। आरबीआई ने मंगलवार को बयान में कहा कि राज्य सरकारों की गारंटी के कारण प्रदेश की वित्तीय स्थिति और बैंक प्रणाली को जोखिम को ध्यान में रखते हुए, जुलाई, 2022 में आयोजित राज्य वित्त सचिवों के 32वें सम्मेलन के दौरान एक कार्यसमूह गठित करने का निर्णय लिया गया था।

रिजर्व बैंक ने अपनी वेबसाइट पर ‘राज्य सरकार गारंटी पर कार्यसमूह की रिपोर्ट’ जारी की है। राज्य सरकारों को प्राय: विभिन्न राज्य उद्यमों, सहकारी संस्थानों, शहरी स्थानीय निकायों और अन्य सार्वजनिक इकाइयों की ओर से बैंकों और वित्तीय संस्थानों के पक्ष में गारंटी देने और जारी करने की आवश्यकता होती है।

वित्तीय जवाबदेही और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम के तहत एक वित्त वर्ष में केंद्र सरकार की तरफ से दी जाने वाली अतिरिक्त गारंटी के लिए सीमा सकल घरेलू उत्पाद का 0.5 प्रतिशत तय की गयी है। गारंटी एक प्रकार की देनदारी है जो वित्तीय संस्थानों को कर्ज लेने वालों के चूक के जोखिम से बचाती है। गारंटी आमतौर पर तब मांगी जाती है जब निवेशक/कर्ज लेने वाला चूक का जोखिम उठाने को तैयार नहीं होते हैं।

समूह की प्रमुख सिफारिश में कहा गया है, ‘‘राज्य सरकारें दी गयी गारंटी के लिए न्यूनतम शुल्क लेने पर विचार कर सकती हैं। साथ ही जोखिम श्रेणी और कर्ज की अवधि के आधार पर अतिरिक्त जोखिम प्रीमियम लिया जा सकता है।’’ कार्यसमूह ने यह भी सुझाव दिया कि राज्य सरकारें एक वर्ष के दौरान जारी की जाने वाली बढ़ी हुई गारंटी के लिए राजस्व प्राप्तियों का पांच प्रतिशत या सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 0.5 प्रतिशत, जो भी कम हो, की सीमा तय करने पर विचार कर सकती हैं।

इसके अलावा, जिस उद्देश्य के लिए सरकारी गारंटी जारी की जाती है उसे स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए। कार्यसमूह ने कहा, ‘‘जहां तक ​​राजकोषीय जोखिम के आकलन का सवाल है, सशर्त/बिना शर्त, वित्तीय/प्रदर्शन गारंटी के बीच कोई अंतर नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि इन सभी की प्रकृति देनदारी वाली है...।’’

उसने यह भी सुझाव दिया है कि राज्य सरकारों को परियोजनाओं/गतिविधियों को उच्च जोखिम, मध्यम जोखिम और कम जोखिम के रूप में वर्गीकृत करना चाहिए और उनके लिए गारंटी देने से पहले उचित जोखिम भार तय करना चाहिए। कार्यसमूह में केंद्रीय वित्त मंत्रालय, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग), आंध्र प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक, ओडिशा और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के प्रतिनिधि शामिल थे। 

अपडेटेड 21:54 IST, January 16th 2024