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Published 09:59 IST, December 25th 2024

Atal Bihari Vajpayee 100th Birth Anniversary: शब्दों के धनी, दिलदार कवि, बेहतरीन वक्ता...सदैव 'अटल' रहेंगे वाजपेयी

अटल बिहारी वाजपेयी को किसी पहचान की जरुरत नहीं है क्‍योंकि जिस तरह राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान या राष्ट्रचिन्ह किसी देश की पहचान कराते हैं, वैसी ही स्थिति कुछ व्यक्

Reported by: Digital Desk
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Atal Bihari Vajpayee 100th birth anniversary
Atal Bihari Vajpayee 100th birth anniversary | Image: PTI

टूटे हुए सपने की कौन सुने सिसकी
अंतर की चिर व्‍यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं मानूंगा
काल के कपाल पर लिखता-मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं, गीत नया गाता हूं


Atal Bihari Vajpayee 100th Birth Anniversary: हम बात कर रहे हैं एक ऐसे महान नेता की जिनके करोडों चहेते हैं, जिनकी शख्सियत राजनीति की खुरदरी जमीन से लेकर कविता की मखमली फर्श तक फैली है। जिनकी चुटकी, ठहराव, शब्‍द और जिसके बोलने की कला का पूरा देश लोहा मानता है। जी हां इस महान शख्सियत का नाम है अटल बिहारी वाजपेयी और आज उनका जन्‍मदिन है। अगर आज वो हमारे बीच होते तो 100वीं जन्मदिन पर नया सवेरा देख रहे होते। तो आगे की बात करने से पहले वाजपेयी जी को जन्‍मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।

अटल बिहारी वाजपेयी को किसी पहचान की जरुरत नहीं है क्‍योंकि जिस तरह राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान या राष्ट्रचिन्ह किसी देश की पहचान कराते हैं, वैसी ही स्थिति कुछ व्यक्तित्वों की होती है। वे अपने राष्ट्र के पर्याय और पहचान बन जाते हैं। जैसे अब्राहम लिंकन से अमरीका, कोसीगिन से सोवियत संघ, चाऊ एनलाई या माओ-त्से तुंग से चीन, सद्दाम हुसैन से इराक, जुल्फिकार अली भुट्टो से पाकिस्तान और महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी या फिर अटल बिहारी वाजपेयी से भारत।

आज भी अटल है वाजपेयी

वाजपेयी का जन्‍म वर्ष 1924 में आज ही के दिन हुआ था। अपने युवा दिनों में अटल बिहारी वाजपेयी ने खूब अध्ययन किया और बाद के दिनों में भी पढ़ना नहीं भूले। वे सरकारी कागजों का भी गहन अध्ययन करते थे। वाजपेयी में किसी भी विषय पर घंटों तक बोल पाने की क्षमता थी। उन्‍हें बोलने से पहले पढ़ने की जरुरत नहीं थी। अटल जी जब भी भाषण देते थे तो विरोधी भी चुप होकर सुनते थे। वाजपेयी जी अलग-अलग क्षेत्रों से चुनाव जीतने में सक्षम रहे।

वो दो बार राज्यसभा में गए और दस बार लोकसभा सदस्य रहे। वा चार राज्यों के अलग-अलग क्षेत्रों, बलरामपुर, लखनऊ, विदिशा, ग्वालियर, नई दिल्ली, गांधीनगर से चुनाव जीतने में कामयाब रहे। उन्होंने सत्ता के लिए समझौते करने की जल्दबाजी नहीं दिखाई, उन्होंने अपने समय का इंतजार किया। उनका राष्ट्र भाषा हिन्दी से प्रेम अतुलनीय रहा। जब भी मौका मिला, उन्होंने हिन्दी को बढ़ाया। वे सोच, स्वभाव, रहन-सहन व पहनावे से संपूर्ण भारतीय रहे। वे उदार रहे, उनमें कट्टरता नहीं रही। उनमें साहस, प्रबंधन, समन्वय और संयोजन की शक्ति रही। ऐसा नहीं है कि वे केवल धीर-गंभीर रहते थे, वे हंसी-मजाक में भी पीछे नहीं थे। उनकी गिनती स्पष्टवादी नेताओं में हुई।

वाजपेयी जी के राजनीतिक सफर के सुनहरे पल

1957 में बाजपेयी जी जब पहले बार सांसद बने जो उनकी उम्र लगभग 33 साल थी। उसके बाद जनसंघ के टिकट पर उत्‍तर प्रदेश के बलरामपुर लोकसभा क्षेत्र से दूसरी बार लोकसभा के लिये चुने गये। 1968 में वाजपेयी जी को भारतीय जनसंघ का अध्‍यक्ष चुना गया। दीनदयाल उपाध्‍याय ने उनके बारे में कहा था कि वाजपेयी जी में आयु से कही ज्‍यादा दृष्टिकोण और समझदारी है। 1977 में मोरारजी देसाई के नेतृत्‍व में जनता पार्टी सरकार में वाजपेयी विदेश मंत्री बनें। उन्‍होंने संयुक्‍त राष्‍ट्र में हिंदी का गौरव बढ़ाया। 29 दिसंबर 1980 को भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ और वाजपेयी ही इसके संस्‍थापक अध्‍यक्ष बने।

उसके बाद 6 दिसंबंर 1992 को अयोध्‍या में विवादास्‍पद ढांचा ढहाने के अभियान से वाजपेयी जी ने खुद को अलग रखा और इस घटना पर खेद भी जताया। 1993 में वाजपेयी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष चुने गये जिससे राजनीतिक बिरादरी में भी भाजपा की स्‍वीकार्यता और जगह बढ़ने लगी। 1996 में लोकसभा चुनावों में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और वाजपेयी पहली बार प्रधानमंत्री बने। इस दौरान उनका कार्यकाल सिर्फ 13 दिन का रहा। 1998 में वाजपेयी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने और इस दौरान उनका कार्यकाल 13 माह का रहा।

इस कार्यकाल में ही उन्‍होंने परमाणु परीक्षण किया। उसके बाद लोकसभा चुनाव में वाजपेयी भले ही ए‍क वोट से हार गये मगर उन्‍होंने करोड़ो लोगों का दिल जीत लिया। 1999 के लोकसभा चुनाव में वाजपेयी के नेतृत्‍व में एनडीए बहुमत के साथ सत्‍ता में आया और फिर उसके बाद देश में राजनीतिक स्थिरता आई। 

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Updated 09:59 IST, December 25th 2024