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पब्लिश्ड 00:03 IST, September 5th 2024

पैरालंपिक में लगातार दूसरे सिल्वर मेडल के बाद कथुनिया ने मानसिक मजबूती पर जोर दिया

भारत के पैरा डिस्कस थ्रोअर योगेश कथुनिया ने कहा कि पेरिस पैरालिंपिक में एक और रजत पदक जीतने के बाद उन्हें अपने खेल की मानसिक मजबूती पर काम करने की जरूरत है।

योगेश कथुनिया | Image: Paralympic Games (YouTube)

Paris Paralympics 2024: भारत के पैरा डिस्कस थ्रो खिलाड़ी योगेश कथुनिया ने बुधवार को कहा कि पेरिस पैरालिंपिक में एक और रजत पदक जीतने के बाद उन्हें अपने खेल की मानसिक मजबूती पर काम करने की जरूरत है। तीन साल पहले तोक्यो पैरालंपिक से लगातार पांचवीं प्रतियोगिता में उन्होंने दूसरा स्थान हासिल किया।

हरियाणा के 27 वर्षीय कथुनिया ने सोमवार को चक्का फेंक एफ-56 में 42.22 मीटर का सत्र का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया लेकिन स्वीकार किया कि वह मानसिक रूप से अपने सर्वश्रेष्ठ स्तर पर नहीं हैं।

कथुनिया ने ‘पीटीआई’ से बातचीत के दौरान कहा, ‘‘मेरे अंदर मानसिक मजबूती की कमी है। मुझे 2022 से पहले की तरह और अधिक मजबूती हासिल करनी होगी। सर्वाइकल की वजह से चोट लगने के बाद से यह (मानसिक मजबूती) कम हो गई है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘अगर आप मानसिक रूप से स्वस्थ हैं तो आप अपने प्रतिद्वंद्वी को आसानी से हरा सकते हैं। अगर आपकी मानसिकता मजबूत है तो आप जानते हैं कि यह कोई बड़ी बात नहीं है। आपको बस वहां जाना है और प्रदर्शन करना है। अगर कोई व्यक्ति मानसिक रूप से पूरी तरह केंद्रित है तो वह भविष्य में बहुत अच्छा कर सकता है।’’

कथुनिया एफ-56 में बैठकर प्रतिस्पर्धा करते हैं। इस वर्ग में वे खिलाड़ी प्रतिस्पर्धा करते हैं जिनके अंग कटे हैं और रीढ़ की हड्डी में चोट लगी है। पिछले साल की शुरुआत में उन्हें चिकनपॉक्स से जूझना पड़ा और बाद में उन्हें सर्वाइकल रेडिकुलोपैथी का पता चला। इन कमजोरियों के बावजूद उन्होंने पिछले साल हांगझोउ में एशियाई पैरा खेलों में रजत पदक हासिल किया।

दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से पढ़ने वाले कथुनिया ने कहा, ‘‘मैं अब भी युवा हूं। मैं आसानी से दो और पैरालंपिक खेल सकता हूं। मैं बेहतर प्रदर्शन करूंगा। मैं इस बार अपनी शैली बदलूंगा। अगले साल विश्व चैंपियनशिप है। मैं अगले साल अच्छा प्रदर्शन करूंगा।’’

उन्होंने 2023 और 2024 की विश्व चैंपियनशिप के साथ-साथ पिछले साल एशियाई पैरा खेलों में भी रजत पदक जीते थे।

कथुनिया नौ साल की उम्र में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम से पीड़ित हो गए थे जो एक दुर्लभ ऑटोइम्यून स्थिति है जो सुन्नता, झुनझुनाहट और मांसपेशियों की कमजोरी का कारण बनती है जो पक्षाघात में बदल सकती है। वह व्हीलचेयर पर थे जिसके बाद उनकी मां ने फिजियोथेरेपी सीखी जिससे कि उन्हें फिर से चलने के लिए मांसपेशियों की ताकत हासिल करने में मदद मिल सके।

पेरिस में उनका प्रयास तोक्यो में उनके 44.38 मीटर के प्रयास और उनके व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ 48 मीटर से कम था जो उन्होंने इंडियन ओपन में हासिल किया था।

अपनी तैयारियों पर कथुनिया ने कहा कि उन्हें पेरिस खेलों से पहले और अधिक प्रतियोगिताओं में भाग लेना चाहिए था।

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि मैंने गलती की। मुझे थोड़ी और प्रतियोगिताएं खेलनी चाहिए थीं। मुझे और अधिक स्पर्धाएं खेलनी चाहिए थीं। मैं तैयार नहीं था। मैं इस साल सिर्फ दो प्रतियोगिताओं में खेला। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था।’’

कथुनिया अब दो महीने का ब्रेक लेने जा रहे हैं और पहली बार अकेले स्विट्जरलैंड जाने की योजना बना रहे हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं दो महीने आराम करूंगा, मुख्य रूप से घर पर ही रहूंगा। मैं बहुत सारे वीडियो गेम खेलता हूं। उसके बाद, मैं फिर से शुरूआत करूंगा। मुझे लगता है कि मेरा दिमाग शांत होना चाहिए। और मुझे एक बार खेल से दूर जाना होगा। ताकि मैं मानसिक मजबूती पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकूं।’’

कथुनिया ने कहा, ‘‘मैं परसों स्विट्जरलैंड जा रहा हूं। मैं पहली बार अकेले जा रहा हूं। इसलिए मैं देखना चाहता हूं कि मैं इसे अकेले संभाल सकता हूं या नहीं।’’

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अपडेटेड 00:03 IST, September 5th 2024

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