Published 06:59 IST, October 16th 2024
Sharad Purnima 2024: शरद पूर्णिमा पर जरूर पढ़ें लक्ष्मी कवच, जानें स्तोत्र भी
Sharad Purnima 2024: शरद पूर्णिमा के दिन जरूर करें लक्ष्मी कवच और लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ, जानें इस लेख के माध्यम से लिरिक्स
Sharad Purnima 2024: शरद पूर्णिमा इस साल यानी 2024 में 16 अक्टूबर दिन बुधवार को मनाई जा रही है हालांकि उदया तिथि के हिसाब से यह त्योहार 17 अक्टूबर को मनाना चाहिए। पर इसकी पूजा रात के वक्त होती है। ऐसे में 16 अक्टूबर की रात को चांद को देखकर आप इस त्योहार को मना सकते हैं। बता दें कि इस दिन घर में यदि लक्ष्मी जी की पूजा की जाए तो सुख और समृद्धि बनी रहती है। ऐसे में लक्ष्मी स्तोत्र और लक्ष्मी कवच का पाठ आप कर सकते हैं।
आज का हमारा लेख इसी विषय पर है। आज हम आपको अपने इस लेख के माध्यम से बताएंगे कि आप शरद पूर्णिमा पर लक्ष्मी जी के कौन-कौन से स्रोत और कवच का पाठ कर सकते हैं। पढ़ते हैं आगे...
लक्ष्मी कवच का पाठ
श्रीमधुसूदन उवाच
गृहाण कवचं शक्र सर्वदुःखविनाशनम्। परमैश्वर्यजनकं सर्वशत्रुविमर्दनम्॥
ब्रह्मणे च पुरा दत्तं संसारे च जलप्लुते। यद् धृत्वा जगतां श्रेष्ठः सर्वैश्वर्ययुतो विधिः॥
बभूवुर्मनवः सर्वे सर्वैश्वर्ययुतो यतः। सर्वैश्वर्यप्रदस्यास्य कवचस्य ऋषिर्विधि॥
पङ्क्तिश्छन्दश्च सा देवी स्वयं पद्मालया सुर। सिद्धैश्वर्यजपेष्वेव विनियोगः प्रकीर्तित॥
यद् धृत्वा कवचं लोकः सर्वत्र विजयी भवेत्॥
मूल कवच पाठ
मस्तकं पातु मे पद्मा कण्ठं पातु हरिप्रिया। नासिकां पातु मे लक्ष्मीः कमला पातु लोचनम्॥
केशान् केशवकान्ता च कपालं कमलालया। जगत्प्रसूर्गण्डयुग्मं स्कन्धं सम्पत्प्रदा सदा॥
ओम श्रीं कमलवासिन्यै स्वाहा पृष्ठं सदावतु। ओम श्रीं पद्मालयायै स्वाहा वक्षः सदावतु॥
पातु श्रीर्मम कंकालं बाहुयुग्मं च ते नमः॥
ओम ह्रीं श्रीं लक्ष्म्यै नमः पादौ पातु मे संततं चिरम्। ओम ह्रीं श्रीं नमः पद्मायै स्वाहा पातु नितम्बकम्॥
ओम श्रीं महालक्ष्म्यै स्वाहा सर्वांगं पातु मे सदा। ओम ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै स्वाहा मां पातु सर्वतः॥
फलश्रुति
इति ते कथितं वत्स सर्वसम्पत्करं परम्। सर्वैश्वर्यप्रदं नाम कवचं परमाद्भुतम्॥
गुरुमभ्यर्च्य विधिवत् कवचं शरयेत्तु यः। कण्ठे वा दक्षिणे बांहौ स सर्वविजयी भवेत्॥
महालक्ष्मीर्गृहं तस्य न जहाति कदाचन। तस्य छायेव सततं सा च जन्मनि जन्मनि॥
इदं कवचमज्ञात्वा भजेल्लक्ष्मीं सुमन्दधीः। शतलक्षप्रजप्तोऽपि न मन्त्रः सिद्धिदायकः॥
॥इति श्रीब्रह्मवैवर्ते इन्द्रं प्रति हरिणोपदिष्टं लक्ष्मीकवचं॥
लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते। शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते॥
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि। सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते॥
सर्वज्ञे सर्ववरदे देवी सर्वदुष्टभयंकरि। सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते॥
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि। मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते॥
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि। योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते॥
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे। महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते॥
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणी। परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते॥
श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते। जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते॥
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर:। सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा॥
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्। द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन्यधान्यसमन्वित:॥
त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्। महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा॥
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Updated 07:03 IST, October 16th 2024