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Published 22:40 IST, October 2nd 2024

Kalash Sthapna vidhi: कैसे करें कलश स्थापना, क्या है विधि और पूजा मंत्र? मुहूर्त के साथ जानें सबकुछ

Kalash Sthapna vidhi: अगर आप भी कलश स्थापना करने जा रहे हैं, तो सबसे पहले इसकी विधि जान लें नहीं तो मां दुर्गा की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है।

कलश स्थापना विधि और शुभ मुहूर्त | Image: Freepik
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Kaise kare Kalash Sthapna kya hai vidhi?: मां भगवती को समर्पित शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 3 अक्टूबर दिन गुरुवार से शुरू हो रही है। नौ दिनों तक चलने वाले इस पावन पर्व की शुरुआत पहले दिन घट यानी कलश स्थापना से होती है। घर हो या फिर पंडाल जहां भी मां दुर्गा की प्रतिमा को स्थापित किया जाता है वहां घटस्थापना भी जरूर होती है, क्योंकि इसके पूजा दुर्गा पूजा अधूरी है। अगर आप भी माता रानी का आह्वान कर रहे हैं, तो कलश स्थापना की विधि और मुहूर्त के बारे में जरूर जा लें, तभी आपके नौ दिनों की पूजा का पूरा फल मिलेगा। तो चलिए इसके बारे में जानते हैं।

शारदीय नवरात्रि का पहला दिन आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को होता है। इसी दिन कलश स्थापना के साथ माता रानी की प्रतिमा को पूरे नौ दिनों के लिए स्थापित किया जाता है और विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती है और नवमी तिथि पर कन्या पूजन के साथ दशमी में माता रानी की प्रतिमा का श्राद्धापूर्वक विसर्जन किया जाता है। शास्त्रों के मुताबिक यह पर्व कलश स्थापना के अधूरा होता है, वहीं अगर इसमें कोई गलती हो जाए तो पूरी पूजा का फल व्यर्थ चला जाता है। ऐसे में आइए जानते हैं कलश स्थापना की सही विधि और पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है?

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कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त क्या है?

3 अक्टूबर 2024 दिन गुरुवार से शुरू होने वाली नवरात्रि में कलश स्थापना के दो शुभ मुहूर्त बन रहे हैं। पहला ब्रह्म मुहूर्त सुबह 5 बजे से लेकर 7 बजे तक है। वहीं दूसरा अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 52 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 40 मिनट तक है। ऐसे में दोनों में से किसी भी मुहूर्त में आप कलश स्थापना कर सकते हैं।

नवरात्रि कलश स्थापना की विधि क्या है?

  • नवरात्रि के पहले सुबह-सुबह नहा-धोकर साफ सुथरें कपड़े पहने फिर, माता रानी के सामने जाकर व्रत और पूजा का संकल्प लें। फिर गणेश जी को प्रणाम कर पूजा स्थान पर ईशान कोण में एक चौकी रखें।
  • चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर धान, चावल या गेहूं रखें। फिर इस पर कलश स्थापित कर दें। इसके बाद घट की गर्दन पर रक्षासूत्र लपेट दें। फिर इस पर स्वास्तिक का निशान बनाएं और गंगाजल और पानी भर दें।
  • इसके बाद कलश में अक्षत, फूल, सुपारी, सिक्का, दूर्वा, हल्दी, चंदन, कुमकुम, गाय का घी, लौंग, इलायची, पान, कलावा, आम और नीम का पल्लव आदि डालकर कलश के मुख पर अक्षत से भरा हुआ ढक्कन रख दें।
  • फिर नारियल पर रक्षासूत्र यानी कलावा लपेट दें। अब इसे अक्षत भरे ढक्कन के ऊपर रख दें।
  • इसके बाद कलश के पास पवित्र मिट्टी फैलाकर उसमें जौ डाल दें। फिर उस पर पानी छिड़कें। ताकि जौ के उगने के लिए सही नमी हो जाए। यह जौ पूरी नवरात्रि तक रखते हैं।
  • कलश स्थापना के बाद गणेश जी और मां दुर्गा की विधिवत पूजा करें। फिर उनके प्रथम स्वरूप मां शैत्रपुत्री की पूजा करें।

कलश स्थापित करते समय बोले ये मंत्र

ओम आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्त्विन्दव:। पुनरूर्जा नि वर्तस्व सा नः सहस्रं धुक्ष्वोरुधारा पयस्वती पुनर्मा विशतादयिः।।

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Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्‍यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।

22:40 IST, October 2nd 2024