Published 11:41 IST, November 7th 2024

Chhath Puja 2024 Kavach: आज तीसरे दिन जरूर करें इस कवच का पाठ, जीवन में आएगी खुशहाली

Chhath Puja 2024 Kavach Path: आज छठ पूजा का तीसरा दिन है। आज के दिन सूर्य कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए।

छठ पूजा 2024 | Image: Freepik
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Chhath Puja 2024 Kavach Path: छठ पूजा एक ऐसा पर्व है जिसमें डूबते हुए सूरज की पूजा की जाती है। आज छठ पूजा का तीसरा दिन है। इस दौरान सूर्य देवता को इस पूजा का पहला अर्घ्य अर्पित किया जाएगा। व्रती निर्जला उपवास करते हुए सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए संध्याकाल में उन्हें अर्घ्य अर्पित करेंगी।

ऐसे में छठ पूजा के तीसरे दिन व्रतियों को इस सूर्य कवच का पाठ जरूर करना चाहिए। इस पाठ से न सिर्फ सूर्य देव जल्दी प्रसन्न होंगे बल्कि व्रती और उनके परिवार पर सदैव सूर्य देव की कृपा बनी रहेगी। तो चलिए जानते हैं इस सूर्य कवच पाठ के बारे में।

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सूर्य कवच (Surya Kavach)

॥ श्री सूर्यध्यानम् ॥
रक्तांबुजासनमशेषगुणैकसिन्धुं
भानुं समस्तजगतामधिपं भजामि।
पद्मद्वयाभयवरान् दधतं कराब्जैः
माणिक्यमौलिमरुणाङ्गरुचिं त्रिनेत्रम्॥

श्री सूर्यप्रणामः
जपाकुसुमसङ्काशं काश्यपेयं महाद्युतिम्।
ध्वान्तारिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम्॥

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याज्ञवल्क्य उवाच
श्रुणुष्व मुनिशार्दूल सूर्यस्य कवचं शुभम्।
शरीरारोग्यदं दिव्यं सर्व सौभाग्यदायकम्॥

कवच मंत्र
दैदिप्यमानं मुकुटं स्फुरन्मकरकुण्डलम्।
ध्यात्वा सहस्रकिरणं स्तोत्रमेतदुदीरयेत्॥

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शिरो मे भास्करः पातु
ललाटे मे अमितद्दुतिः।
नेत्रे दिनमणिः पातु
श्रवणे वासरेश्वरः ॥३॥

घ्राणं धर्मधृणिः पातु
वदनं वेदवाहनः।
जिह्वां मे मानदः पातु
कंठं मे सुरवंदितः॥

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स्कंधौ प्रभाकरं पातु
वक्षः पातु जनप्रियः।
पातु पादौ द्वादशात्मा
सर्वागं सकलेश्वरः॥

सूर्य रक्षात्मकं स्तोत्रं
लिखित्वा भूर्जपत्रके
दधाति यः करे तस्य
वशगाः सर्वसिद्धयः॥

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सुस्नातो यो जपेत्सम्यक्
योऽधीते स्वस्थ मानसः।
स रोगमुक्तो दीर्घायुः
सुखं पुष्टिं च विंदति॥

इति श्री याज्ञवल्क्यमुनिविरचितं सूर्यकवचस्तोत्रं संपूर्णं

॥ सूर्य अष्टक स्तोत्रम् ॥

नमः सवित्रे जगदेकचक्षुषे
जगत्प्रसूतिस्थितिनाश हेतवे।
त्रयीमयाय त्रिगुणात्मधारिणे
विरञ्चि नारायण शंकरात्मने॥

यन्मडलं दीप्तिकरं विशालं
रत्नप्रभं तीव्रमनादिरुपम्।
दारिद्र्यदुःखक्षयकारणं च
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्॥

यन्मण्डलं देवगणैः सुपूजितं
विप्रैः स्तुत्यं भावमुक्तिकोविदम्।
तं देवदेवं प्रणमामि सूर्यं
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्॥

यन्मडलं ज्ञानघनं, त्वगम्यं,
त्रैलोक्यपूज्यं, त्रिगुणात्मरुपम्।
समस्ततेजोमयदिव्यरुपं
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्॥

यन्मडलं गूढमतिप्रबोधं
धर्मस्य वृद्धिं कुरुते जनानाम्।
यत्सर्वपापक्षयकारणं च
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्॥

यन्मडलं व्याधिविनाशदक्षं
यदृग्यजु: सामसु सम्प्रगीतम्।
प्रकाशितं येन च भुर्भुव: स्व:
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्॥

यन्मडलं वेदविदो वदन्ति
गायन्ति यच्चारणसिद्धसंघाः।
यद्योगितो योगजुषां च संघाः
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्॥

यन्मडलं सर्वजनेषु पूजितं
ज्योतिश्च कुर्यादिह मर्त्यलोके।
यत्कालकल्पक्षयकारणं च
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्॥

यन्मडलं विश्वसृजां प्रसिद्धमुत्पत्तिरक्षाप्रलयप्रगल्भम्
यस्मिन् जगत् संहरतेऽखिलं च
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्॥

यन्मडलं सर्वगतस्य विष्णोरात्मा
परं धाम विशुद्ध तत्त्वम्।
सूक्ष्मान्तरैर्योगपथानुगम्यं
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्॥

यन्मडलं वेदविदि वदन्ति
गायन्ति यच्चारणसिद्धसंघाः।
यन्मण्डलं वेदविदः स्मरन्ति
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्॥

यन्मडलं वेदविदोपगीतं
ययोगिनां योगपथानुगम्यम्।
तत्सर्ववेदं प्रणमामि सूर्य
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्॥

मण्डलात्मकमिदं पुण्यं
यः पठेत् सततं नरः।
सर्वपापविशुद्धात्मा
सूर्यलोके महीयते॥
॥ इति श्रीमदादित्यहृदये मण्डलात्मकं स्तोत्रं संपूर्णम् ॥

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11:41 IST, November 7th 2024