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Published 21:38 IST, March 28th 2024

सीजीआई को 600 वकीलों की चिट्ठी पर PM ने किया रिएक्ट, एक्स पर लिखा- धौंस जमाना कांग्रेस की संस्कृति

एक्स पर पीएम ने लिखा- कोई आश्चर्य नहीं कि 140 करोड़ भारतीय उन्हें अस्वीकार कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की फाइल फोटो | Image: X
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PM Responds On Letter To CJI:  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न्यायपालिका पर राजनीतिक दबाव के बारे में फिक्र करने वाले वकीलों के पत्र पर रिएक्ट किया है। सलाह भी दी।  दावा किया कि इस घटनाक्रम के पीछे कांग्रेस पार्टी के स्वार्थी इरादे हो सकते हैं। एक्स (पूर्व में ट्विटर) प्रधान मंत्री ने कहा कि दूसरों को डराना और धमकाना "पुरानी कांग्रेस संस्कृति" है।

पीएम की ये पोस्ट उन वकीलों को जवाब है जिन्होंने सीजीआई को खत लिख कहा- जुडिशयरी बचाएं। यानि ये उन 600 से अधिक वकीलों के खत पर प्रतिक्रिया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि एक "निहित स्वार्थ समूह" न्यायपालिका पर दबाव डालने और अदालतों को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है।

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पीएम ने लिखा क्या?

वकीलों की सीजेआई को लिखी चिट्ठी टैग कर पीएम मोदी ने कहा-  दूसरों पर धौंस जमाना कांग्रेस की पुरानी संस्कृति है... 5 दशक पहले ही उन्होंने "प्रतिबद्ध न्यायपालिका" का आह्वान किया था। वे बेशर्मी से अपने स्वार्थों के लिए दूसरों से प्रतिबद्धता चाहते हैं लेकिन राष्ट्र के प्रति किसी भी प्रतिबद्धता से बचते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि 140 करोड़ भारतीय उन्हें अस्वीकार कर रहे हैं।

'निहित स्वार्थ'का चिट्ठी में जिक्र

वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और बार काउंसिल के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा सहित 600 से अधिक वकीलों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखा है। आरोप लगाया कि एक "निहित स्वार्थ समूह" न्यायपालिका पर दबाव बनाने और अदालतों को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है। विशेषकर राजनेताओं से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों में। वकीलों ने 26 मार्च को अपने पत्र में कहा, "ये रणनीति हमारी अदालतों के लिए हानिकारक हैं और हमारे लोकतांत्रिक ताने-बाने को खतरे में डालती हैं।" उन्होंने कहा कि इस "कठिन समय" में सीजेआई चंद्रचूड़ का नेतृत्व महत्वपूर्ण है और शीर्ष अदालत को मजबूत खड़ा होना चाहिए, उन्होंने कहा कि यह सम्मानजनक चुप्पी बनाए रखने का समय नहीं है।

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वकीलों के एक वर्ग से सवाल

आधिकारिक सूत्रों द्वारा साझा किए गए पत्र में बिना नाम लिए वकीलों के एक वर्ग पर निशाना साधा गया और आरोप लगाया गया कि वे दिन में राजनेताओं का बचाव करते हैं और फिर रात में मीडिया के माध्यम से न्यायाधीशों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। पत्र में कहा गया है कि यह हित समूह कथित तौर पर बेहतर अतीत और अदालतों के सुनहरे दौर की झूठी कहानियां बनाता है और इसे वर्तमान में होने वाली घटनाओं से तुलना करता है। इसमें दावा किया गया कि उनकी टिप्पणियों का उद्देश्य अदालतों को प्रभावित करना और राजनीतिक लाभ के लिए उन्हें शर्मिंदा करना है।

हस्ताक्षर किसके?

"खतरे में न्यायपालिका-राजनीतिक और व्यावसायिक दबाव से न्यायपालिका की सुरक्षा" शीर्षक वाले पत्र में आदिश अग्रवाल, चेतन मित्तल, पिंकी आनंद, हितेश जैन, उज्ज्वला पवार, उदय होल्ला और स्वरूपमा चतुर्वेदी के  हस्ताक्षर हैं। हालाँकि पत्र के पीछे वकीलों ने किसी विशिष्ट मामले का उल्लेख नहीं किया है, यह घटनाक्रम उस समय में आया है जब अदालतें विपक्षी नेताओं से जुड़े भ्रष्टाचार के कई हाई-प्रोफाइल आपराधिक मामलों से निपट रही हैं।

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विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार पर राजनीतिक प्रतिशोध के कारण उनके नेताओं को निशाना बनाने का आरोप लगाया है। वहीं सत्तारूढ़ भाजपा ने इस आरोप का खंडन किया है।  “हम आपको उस तरीके पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त करते हुए लिख रहे हैं जिस तरह से एक निहित स्वार्थ समूह न्यायपालिका पर दबाव डालने, न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने और तुच्छ तर्क और पुराने राजनीतिक एजेंडे के आधार पर हमारी अदालतों को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है।

चिट्ठी में लिखा है-

एक वर्ग के प्रपंच का जिक्र करते हुए आगे लिखा है-  “उनकी हरकतें विश्वास और सद्भाव के माहौल को खराब कर रही हैं, जो न्यायपालिका की कार्यप्रणाली की विशेषता है। उनकी दबाव की रणनीति राजनीतिक मामलों में सबसे अधिक स्पष्ट होती है, विशेषकर उन मामलों में जिनमें भ्रष्टाचार के आरोपी राजनीतिक हस्तियां शामिल होती हैं। ये रणनीतियाँ हमारी अदालतों के लिए हानिकारक हैं और हमारे लोकतांत्रिक ताने-बाने को खतरे में डालती हैं...उनकी हरकतें विश्वास और सद्भाव के माहौल को खराब कर रही हैं, जो न्यायपालिका की कार्यप्रणाली की विशेषता है।

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माई वे या हाईवे...

वकीलों का कहना है- इस खास ग्रुप कई तरीकों से न्यायपालिका के कामकाज को प्रभावित करने की कोशिश करता है... इनमें न्यायपालिका के तथाकथित सुनहरे युग के बारे में गलत नैरेटिव पेश करने से लेकर अदालतों की मौजूदा कार्यवाहियों पर सवाल उठाना और कोर्ट में जनता के भरोसे को कम करना है... ये ग्रुप अपने राजनीतिक एजेंडे के आधार पर कोर्ट के फैसलों की तारीफ या आलोचना करता है... ग्रुप माई वे या हाईवे वाली थ्योरी में भरोसा करता है। साथ ही, बेंच फिक्सिंग की थ्योरी भी इन्हीं लोगों ने गढ़ी है।

पत्र में कहा गया है कि आलोचकों ने "बेंच फिक्सिंग" का एक पूरा सिद्धांत भी गढ़ा है जो न केवल अपमानजनक और अवमाननापूर्ण है बल्कि अदालतों के सम्मान और प्रतिष्ठा पर हमला है...वे हमारी अदालतों की तुलना उन देशों से करने के स्तर तक गिर गए हैं जहां कानून का कोई शासन नहीं है और हमारे न्यायिक संस्थानों पर अनुचित प्रथाओं का आरोप लगा रहे हैं। ये सिर्फ आलोचनाएं नहीं हैं...वे सीधे हमले हैं जिनका उद्देश्य हमारी न्यायपालिका में जनता के विश्वास को नुकसान पहुंचाना और हमारे कानूनों के निष्पक्ष कार्यान्वयन को खतरे में डालना है।''

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19:26 IST, March 28th 2024