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Published 15:29 IST, December 4th 2024

सुश्री डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी की अंतिम यात्रा में उमड़ा ब्रजवासियों का प्रेम

जहाँ से भी जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की बड़ी सुपुत्री डॉ. विशाखा जी की यात्रा निकली, वहाँ राधे-राधे और हरि बोल की गूँज सुनाई पड़ी।

Reported by: Digital Desk
सुश्री डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी की अंतिम यात्रा | Image: सुश्री डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी की अंतिम यात्रा

जहाँ से भी जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की बड़ी सुपुत्री डॉ. विशाखा जी की यात्रा निकली, वहाँ राधे-राधे और हरि बोल की गूँज सुनाई पड़ी। 

जगद्गुरु कृपालु परिषत् की अध्यक्षा सुश्री डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी की अंतिम यात्रा में भक्ति, प्रेम और समर्पण का संगम दिखाई दिया। सूर्योदय से पूर्व प्रेम मंदिर से प्रारम्भ हुई उनकी अंतिम यात्रा रमणरेती स्थित श्यामा श्याम धाम आश्रम पहुँची। वहाँ से वैदिक अनुष्ठान पूर्ण होने के बाद यह यात्रा बाँके बिहारी मंदिर मार्ग और रंगनाथ मंदिर होते हुए केशी घाट पर पहुँची। इस यात्रा में पीले वस्त्र धारण किये हुए हज़ारों भक्त शामिल हुए। यही वजह रही कि केसरिया रंग का यह भक्तिपूर्ण जनसैलाब कई किलोमीटर तक फैला दिखाई पड़ा। 

प्रेम मंदिर में अंतिम दर्शन

 

ज्ञात हो कि ग्रेटर नोएडा में यमुना एक्सप्रेसवे पर हुई सड़क दुर्घटना में जगद्गुरु कृपालु परिषत् की तीनों अध्यक्षाएँ - सुश्री डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी, सुश्री डॉ. श्यामा त्रिपाठी जी और सुश्री डॉ. कृष्णा त्रिपाठी जी - गंभीर रूप से आहत हो गयी थीं, जिसके बाद डॉ. विशाखा जी गोलोक प्रस्थान कर गयीं। 

 

उनका पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए तीन दिन प्रेम मंदिर स्थित प्रेम भवन में रखा गया जिसके पश्चात केशी घाट पर उन्हें हज़ारों भक्तों के भावपूर्ण रुदन एवं करुण संकीर्तन के बीच मुखाग्नि दी गयी। 

 

ब्रजवासियों का डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी के प्रति प्रेम

 

अपने गोलोक गमन के कुछ ही घंटे पूर्व डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी की अध्यक्षता में जगद्गुरु कृपालु परिषत् द्वारा विशाल वितरण कार्यक्रम का आयोजन हुआ था। श्री वृन्दावन धाम स्थित प्रेम मंदिर और बरसाना स्थित कीर्ति मंदिर में 19 से 22 नवंबर तक चलने वाले इन वितरण कार्यक्रमों के अंतर्गत कुल 14,000 महात्माओं और निराश्रित विधवाओं को ठंड से बचने और दैनिक जीवन में उपयोगी सामग्री प्रदान की गई थी। 

 

इस प्रकार के आयोजन हर कुछ दिनों में डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी की अध्यक्षता में किये जाते थे जिस कारण ब्रजवासी उनसे बहुत प्रेम करते थे। इसके साथ-साथ जिस प्रकार दीदी जी ने अपने पिता और गुरु जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के भक्तियोग सिद्धांत को जन-जन तक पहुँचाया और श्री राधा-कृष्ण की महिमा का विश्व व्यापक प्रचार-प्रसार किया, ब्रज के भगवद् अनुरागी जनों का उनसे विशेष स्नेह था।

 

ब्रजवासियों का डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी के प्रति यह स्नेह उनकी अंतिम यात्रा में देखने को मिला। फूलों से सुसज्जित उनका रथ जिस गली से निकलता वहाँ लोग छतों से उन पर पुष्पों की वर्षा करते तो कोई रथ को रोककर उनकी आरती उतारता। जहाँ से भी उनकी यात्रा निकलती, वहाँ आँखें नम दिखाई देतीं एवं राधे-राधे और हरि बोल की गूँज सुनाई पड़ती। 

 

कीर्तन और भावुकता के बीच विदाई

 

कई किलोमीटर लम्बी इस यात्रा में भक्तगण कई प्रकार के कीर्तन करते हुए यात्रा में आगे बढ़े। कभी 'बरसाने वारी राधे' की धुन सुनाई दी तो कभी 'राधे गोविन्द' और 'जय-जय मम सद्गुरु सरकार' के कीर्तन से भक्त भावुक होते नज़र आये। 

 

जब यमुना के पावन तट स्थित केशी घाट पर दीदी जी को मुखाग्नि दी गयी तब तो भक्तों का आर्त क्रंदन पत्थर को भी पिघला सकता था। उनकी चीत्कार में अपनी बड़ी दीदी के लिए उनके प्रेम और सर्व-समर्पण की भावना झलक रही थी। सभी के मुख पर बस एक ही कामना थी कि इश्वर दीदी जी को गुरु चरणों की नित्य सेवा प्रदान करें। 

 

बड़ी दीदी की सेवाएं और योगदान

आपको बता दें कि जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने साल 2002 में जगद्गुरु कृपालु परिषत् की बागडोर अपनी तीनों सुपुत्रियों - डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी, डॉ. श्यामा त्रिपाठी जी और डॉ. कृष्णा त्रिपाठी जी के हाथों में सौंप दी थी। तब ही से डॉ. विशाखा त्रिपाठी ने जीवों के आध्यात्मिक एवं भौतिक उत्थान के अपने जगद्गुरु पिता के लक्ष्य को पूरा करने के प्रयास में अपना पूरा जीवन लगा दिया। 

 

जगद्गुरु कृपालु परिषत् की अध्यक्षा के रूप में सुश्री डॉ. विशखा त्रिपाठी जी ने प्रेम मंदिर-वृन्दावन, भक्ति मंदिर-श्री कृपालु धाम मनगढ़ और कीर्ति मंदिर-बरसाना के संचालन में प्रमुख भूमिका निभाई। इसके अतिरिक्त श्री वृन्दावन धाम, श्री कृपालु धाम मनगढ़ और श्री बरसाना धाम में तीन विश्व-स्तरीय निःशुल्क अस्पतालों और अनेक निःशुल्क शिक्षण संस्थानों का भी दीदी जी ने प्रबंधन किया।

Updated 15:29 IST, December 4th 2024

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