Published 12:45 IST, July 19th 2024
कांवड़ रूट पर नेमप्लेट में इतना विवाद, पर 2 दशक पहले क्या था मुंबई का वो केस, जिसकी याद दिला रही BJP
Muzaffarnagar Nameplate Controversy: मुजफ्फरनगर पुलिस के आदेश को धार्मिक रंग देने की भरपूर कोशिश हो रही है। कई विपक्षी दलों ने इसे मुस्लिमों से जोड़ा है।
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Muzaffarnagar Police Order: उत्तर प्रदेश है, कांवड़ यात्रा निकलनी है और इससे हिंदुओं की भावना जुड़ी है। भला 'विशेष धर्म' की राजनीति करने वाले ये मौका कैसे गंवा सकते हैं? खासतौर पर उस दौर में जब हालिया लोकसभा चुनावों के बाद देश का राजनीतिक माहौल काफी बदला है। शायद यही वजह है कि जब हिंदुओं की भावनाओं से जुड़ा एक मुजफ्फरनगर पुलिस का आदेश आता है तो ये राजनीति की पराकाष्ठा है कि उसे धार्मिक रंग दे दिया गया।
खैर, कांवड़ यात्रा के रूट को लेकर स्थितियों को सतही तौर पर कितने बेहतर ढंग से पुलिस ने समझा है, ये आदेश बता देता है। हालांकि सियासत पर इससे फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि यहां बात राजनीतिक रोटियां सेकने और वोटबैंक को मजबूत करने की हो जाती है। इसका सटीक उदाहरण मुजफ्फरनगर पुलिस के आदेश पर उठता विवाद है, जो दर्शाता है कि वोटबैंक साधने के लिए सियासत को कोई भी मोड दिया जा सकता है। ऐसे में यहां आदेश, उस पर विवाद, राजनीतिक बयानबाजी और इसे समान पुराने आदेशों को भी समझने की कोशिश करते हैं।
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मुजफ्फरनगर पुलिस का आदेश क्या था?
फिलहाल अगर मुजफ्फरनगर पुलिस के आदेश की बात कर ली जाए तो ये आदेश 'स्वेच्छा' पर आधारित है। मतलब इससे जो समझ आया है, वो ये कि कोई जोर-जबरदस्ती नहीं है। पुलिस ने सभी भोजनालयों से अपने मालिकों और कर्मचारियों के नाम 'स्वेच्छा से प्रदर्शित' करने का आग्रह किया था, लेकिन राजनीति के लिए इस शब्द को छिपाया गया है। पुलिस ने यहां तक स्पष्ट किया है कि इस आदेश का उद्देश्य किसी भी तरह का 'धार्मिक भेदभाव' पैदा करना नहीं है, बल्कि सिर्फ भक्तों की सुविधा के लिए है। आदेश की एक और बात अहम ये है कि इसमें किसी धर्म या जाति के व्यक्ति को उसका पेशा बंद नहीं करने के लिए कहा गया है, बल्कि सिर्फ अपना सही नाम लिखने का आदेश है। आदेश में 'भ्रम की स्थिति' को दूर करने की बात है।
पूरे आदेश को एक बार समझ लेते हैं, जिसमें लिखा है- 'श्रावण कांवड़ यात्रा के दौरान पड़ोसी राज्यों से बड़ी संख्या में कांवड़िये पश्चिमी उत्तर प्रदेश होते हुए हरिद्वार से जल लेकर मुजफ्फरनगर जिले से गुजरते हैं। श्रावण के पवित्र महीने में कई लोग, खासकर कांवड़िये अपने खाने में कुछ चीजों से परहेज करते हैं। पहले भी ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां कांवड़ मार्ग पर सभी तरह के खाने बेचने वाले कुछ दुकानदारों ने अपनी दुकानों के नाम इस तरह रखे हैं, जिससे कांवड़ियों में भ्रम की स्थिति पैदा हुई और कानून-व्यवस्था की स्थिति पैदा हुई। ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने और श्रद्धालुओं की आस्था को देखते हुए कांवड़ मार्ग पर खाद्य पदार्थ बेचने वाले होटलों, ढाबों और दुकानदारों से अनुरोध किया गया है कि वे स्वेच्छा से अपने मालिकों और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करें। इस आदेश का उद्देश्य किसी भी प्रकार का धार्मिक भेदभाव पैदा करना नहीं है, बल्कि मुजफ्फरनगर जिले से गुजरने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा, आरोपों का जवाब देना और कानून-व्यवस्था की स्थिति को बचाना है। ये व्यवस्था पहले भी प्रचलित रही है।'
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अब आदेश पर राजनीति क्यों है?
आदेश पर राजनीति इस कदर है कि हिंदुओं की भावनाओं से ज्यादा इसे धार्मिक रंग देने की भरमार कोशिश हो रही है। इसमें गैर-एनडीए दलों की भूमिका ज्यादा है, जो आदेश में रखी गई बातों को गंभीरता से लेने की बजाय उस पर धार्मिक रंग की परत चढ़ा रहे हैं।
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AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी इसे संविधान के अनुच्छेद 17 का उल्लंघन बताते हैं। वो कहते हैं- 'उत्तर प्रदेश सरकार छुआछूत को बढ़ावा दे रही है। लोगों को अपना धर्म व्यक्त करने का इस तरह का आदेश अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) और अनुच्छेद 19 (आजीविका का अधिकार) का भी उल्लंघन है। दूसरी बात जब से उत्तर प्रदेश सरकार ने आदेश दिया है, मुजफ्फरनगर के सभी ढाबों से मुस्लिम कर्मचारियों को हटा दिया गया है। उस हाईवे पर कई बड़े और मशहूर रेस्टोरेंट हैं, आप उनके बारे में कुछ क्यों नहीं कह रहे हैं?'
कांग्रेस कहती है कि 'एक गरीब रेहड़ी वाले को आदेश है कि वो अपने नाम की तख्ती लगाकर ही सामान बेच सकता है। ऐसा इसलिए कांवड़ियां किसी मुस्लिम से फल खरीदकर ना खा ले या किसी मुस्लिम के होटल और ढाबे पर खाना ना खा ले।' सुप्रिया श्रीनेत कहती हैं कि आदेश को साजिश बता रही हैं और इसे मुसलमान के आर्थिक बहिष्कार से जोड़ रही हैं।
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अखिलेश यादव कहते हैं- 'मुजफ्फरनगर पुलिस ने जनता के भाईचारे और विपक्ष के दबाव में आकर आखिरकार होटल, फल, ठेलोंवालों को अपना नाम लिखकर प्रदर्शित करने के प्रशासनिक आदेश को स्वैच्छिक बनाकर जो अपनी पीठ थपथपायी है, उतने से ही अमन-औ-चैन पसंद करनेवाली जनता माननेवाली नहीं है। ऐसे आदेश पूरी तरह से खारिज होने चाहिए। माननीय न्यायालय सकारात्मक हस्तक्षेप करते हुए शासन के माध्यम से ये सुनिश्चित करवाए कि भविष्य में ऐसा कोई भी विभाजनकारी काम शासन-प्रशासन नहीं करेगा। ये प्रेम और सौहार्द से उपजी एकता की जीत है।'
मुंबई का वो केस,जिसकी याद दिला रही BJP
अब इसे भी समझना होगा कि मामला पहला नहीं है। मुजफ्फरनगर पुलिस ने खुद अपने आदेश में जिक्र किया कि ये व्यवस्था (नाम लिखने की) पहले भी प्रचलित रही है। उसके अलावा भी समान तौर पर मुंबई में बरसों पहले मामला था, जिसका दावा भारतीय जनता पार्टी करती है। बीजेपी आईटी विभाग के प्रमुख अमित मालवीय ने मुजफ्फरनगर जैसे मुंबई में बरसों पहले की समान व्यवस्था की याद दिलाते हैं। अमित मालवीय के मुताबिक, "लगभग 2 दशक पहले मुंबई के व्यापारिक जिले में सभी भोजनालयों में भोजनालय का नाम, मालिक, संपर्क नंबर, आखिरी बीएमसी सर्वे तारीख और स्वच्छता ग्रेड प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाता था।' वो कहते हैं कि अगर इस तरह की प्रथा भेदभावपूर्ण नहीं थी, तो मुजफ्फरनगर में ऑर्डर को अलग नजरिए से क्यों देखा जाना चाहिए? सिर्फ इसलिए कि ये उत्तर प्रदेश है?'
मुजफ्फरनगर पुलिस के आदेश का समर्थन करते हुए अमित मालवीय कहते हैं- 'यदि खाना एक विकल्प है, और मुस्लिम संवेदनाओं को ध्यान में रखते हुए कुछ एमएनसी, डिलीवरी ऐप समेत रेस्तरां हलाल सर्टिफिकेट प्रमुखता से दिखाते हैं, तो उपवास करने वाले हिंदुओं (इस मामले में कांवड़ यात्रियों) के लिए ये अलग क्यों होना चाहिए, जो शुद्ध शाकाहारी रेस्तरां में खाना चाहते हैं, जहां उन्हें सात्विक भोजन परोसे जाने की संभावना अधिक होती है? क्या हिंदुओं को समान विकल्प देने का अधिकार देना पाप है?'
मुजफ्फरनगर पुलिस का आदेश फिलहाल बरकरार
फिलहाल मुजफ्फरनगर पुलिस का आदेश बरकरार है और इसका असर भी शहर में देखा जाने लगा है। बहुत से लोगों ने अपने सही नाम दुकानों पर लगा लिए हैं। कुछ लोगों ने विरोध जरूर दिखाया है, लेकिन कुछ लोग उन घटनाओं का भी जिक्र करके आदेश को सही बता रहे हैं, जिसमें खाने पर थूकना और थूक से मसाज जैसे मामले उजागर हुए। बहरहाल, मामले में राजनीति का रंग और कितना चढ़ता है, वो देखना होगा।
10:52 IST, July 19th 2024