Published 23:37 IST, November 15th 2024

सजा सुनाते समय आतंकवादियों के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के दुरुपयोग को ध्यान में रखना चाहिए: अदालत

HC ने यह टिप्पणी प्रतिबंधित इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत से जुड़े होने और उसे समर्थन देने के लिए दोषी ठहराई गई दो महिलाओं की सजा की अवधि कम करते हुए की।

Follow: Google News Icon
  • share
Court | Image: ANI
Advertisement

दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि ‘एन्क्रिप्टेड’ सोशल मीडिया मंच गोपनीयता और बोलने एवं अभिव्यक्ति की आजादी की अनुमति देते हैं, लेकिन अदालतों को सजा सुनाते समय आतंकवादियों और प्रतिबंधित संगठनों द्वारा इन मंचों के दुरुपयोग को भी ध्यान में रखना चाहिए।

उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी प्रतिबंधित इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (आईएसकेपी) से जुड़े होने और उसे समर्थन देने के लिए दोषी ठहराई गई दो महिलाओं की सजा की अवधि कम करते हुए की। दोषियों हिना बशीर बेग और सादिया अनवर शेख की जेल अवधि को क्रमशः आठ और सात साल से संशोधित करके छह साल कर दिया गया।

Advertisement

न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह और न्यायमूर्ति अमित शर्मा की खंडपीठ ने कहा, ‘‘मौजूदा मामले के विशिष्ट तथ्यों पर विचार करते हुए, इंटरनेट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से अपराध के प्रसार को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इस तथ्य को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि अपीलकर्ताओं (बेग और शेख) ने अपनी मूल पहचान छिपाने और ट्रेसिंग से बचने के लिए फर्जी पहचान का इस्तेमाल किया।’’

दोनों महिलाओं ने जेल की अवधि कम करने और दूसरे दोषी के साथ समानता की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। निचली अदालत ने मामले के अन्य दोषी को जेल में बिताई गई उसकी अवधि के बराबर सजा सुनाई थी और दोनों बहनों ने इसी अवधि के समान ही अपनी सजा भी कम करने का अनुरोध किया था।

Advertisement

हालांकि, उच्च न्यायालय ने कहा कि दोनों महिलाएं तीसरे व्यक्ति के साथ तथ्यों के अनुरूप पूर्ण समानता का दावा नहीं कर सकतीं, क्योंकि उन्हें सौंपी गई भूमिकाएं भी एक समान नहीं हैं।

अदालत ने कहा, ‘‘यद्यपि एन्क्रिप्टेड प्लेटफॉर्म गोपनीयता और भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अनुमति देते हैं और उसे प्रोत्साहित करते हैं, लेकिन (सजा सुनाते वक्त) आतंकवादियों और प्रतिबंधित संगठनों द्वारा इन मंचों के दुरुपयोग को भी ध्यान में रखना होगा।’’

Advertisement

इसने कहा, ‘‘अपीलकर्ता तकनीकी रूप से कुशल व्यक्ति हैं, जिन्होंने आतंकवाद को बढ़ावा देने और देश के खिलाफ़ आक्रामक गतिविधियों को भड़काने के लिए अपनी शैक्षणिक योग्यता का उपयोग किया है।’’

अदालत ने आगे कहा कि ऐसे मामलों को उन मामलों से अलग तरीके से निपटना होगा, जिनमें निर्दोष व्यक्ति शामिल हैं और निर्दोष व्यक्तियों को उनकी जानकारी के बिना अपराध में घसीटा जा सकता है। इसमें कहा गया है कि बिटकॉइन के माध्यम से धन जुटाने और हिंसा भड़काने के लिए पत्रिकाओं को प्रकाशित और प्रसारित करने के वास्ते पत्रकारिता संबंधी साख के इस्तेमाल जैसे कारकों को भी नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। पीठ ने आतंकवाद से संबंधित मामलों में कुछ अन्य देशों की सजा नीतियों का भी उल्लेख किया।

Advertisement

अदालत ने कहा, ‘‘आतंकवाद से संबंधित गतिविधियों के लिए सजा सुनाते समय, अदालतों को न केवल किए गए अपराध को ध्यान में रखना होगा, बल्कि इसके प्रभाव और भविष्य में इसी तरह के अपराध में लिप्त होने की व्यक्ति की प्रवृत्ति को भी ध्यान में रखना होगा।’’

उच्च न्यायालय ने कहा कि बेग 23 मार्च, 2020 से हिरासत में है और सजा की अवधि लगभग चार साल और नौ महीने है। इसने कहा कि शेख 29 जुलाई, 2020 से हिरासत में है और सजा की अवधि लगभग चार साल और चार महीने है।

अदालत ने कहा कि दोनों महिलाओं ने प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन के साथ अपनी सक्रिय भागीदारी दिखाई है और दोषी जहानजैब सामी की पत्नी होने के नाते बेग ने अपने पति को अपना लैपटॉप इस्तेमाल करने की अनुमति दी थी। अदालत ने कहा कि यहां तक ​​कि पति-पत्नी एक-दूसरे का फोन भी इस्तेमाल करते थे।

अदालत ने कहा, ‘‘तार्किक तौर पर उसे (बेग को) अज्ञानी नहीं कहा जा सकता। जहां तक ​​शेख का सवाल है, जब उसे गिरफ्तार किया गया था तब वह पत्रकारिता की छात्रा थी। एनआईए की दलीलों और अन्य समाचारों के अनुसार उस पर पहले जम्मू-कश्मीर विस्फोटों में शामिल होने का भी संदेह था, लेकिन तब उसकी उम्र को देखते हुए उसे चेतावनी देकर छोड़ दिया गया था।’’

अदालत ने कहा कि शेख उस समय 20 वर्ष की थी।

इसे भी पढ़ें: BREAKING: मऊ में दो पक्षों में हिंसक झड़प, पुलिस की गाड़ियों पर हमला

23:37 IST, November 15th 2024