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Published 21:21 IST, September 16th 2024

Haryana Election: हरियाणा चुनाव हुआ दिलचस्प...14 सीटों पर जाट बनाम जाट, तो 15 सीटों पर OBC Vs ओबीसी

इस बार हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही सियासी दलों ने सोशल इंजीनियरिंग का दांव खेला है। ऐसे में मुकाबला और भी ज्यादा दिलचस्प हो गया है।

Reported by: Ravindra Singh
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हरियाणा चुनाव हुआ दिलचस्प...14 सीटों पर जाट बनाम जाट, तो 15 सीटों पर OBC Vs ओबीसी | Image: PTI / ANI

Haryana Assembly Election 2024: हरियाणा में 5 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव होने हैं इसके बाद 8 अक्टूबर को वोटों की गिनती की जाएगी। अब इस विधानसभा चुनाव में एक ओर जहां भारतीय जनता पार्टी फिर से चुनाव जीतकर हरियाणा में बीजेपी की हैट्रिक लगाना चाहेगी तो वहीं कांग्रेस पिछले 10 सालों से सत्ता से दूर रहने के बाद सत्ता में वापसी के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी। इस चुनाव में जीत के लिए दोनों ही सियासी दलों ने साल 2007 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव की तर्ज पर यहां भी सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्म्यूला अपनाया है। हरियाणा में कुल 90 विधानसभा सीटें हैं जिसमें से 36 ऐसी सीटें हैं जहां पर बीजेपी और कांग्रेस ने एक ही जाति के उम्मीदवारों को टिकट दिया है।


इस बार हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही सियासी दलों ने सोशल इंजीनियरिंग का दांव खेला है। ऐसे में मुकाबला पहले की तुलना में और भी ज्यादा दिलचस्प हो गया है। कांग्रेस और बीजेपी ने सूबे की 14 विधानसभा सीटों पर जाट के खिलाफ जाट उम्मीदवार को मैदान में उतार है। वहीं 15 विधानसभा सीटों पर दोनों ही सियासी दलों ने ओबसी के खिलाफ ओबीसी उम्मीदवार उतारे हैं। इसके अलावा 4 सीटों पर दोनों ही राजनीतिक दलों ने पंजाबी उम्मीदवारों के सामने पंजाबी उम्मीदवार उतारे हैं। वहीं दो सीटों पर दोनों ने मुसलमान उम्मीदवारों को टिकट दिया है।


क्या है सियासी पार्टियों की सोशल इंजीनियरिंग?

डच उद्योगपति जे.सी. वैन मार्केन ने साल 1894 में एक निबंध में सोशल इंजीनियर्स शब्द का इस्तेमाल किया था। विचार यह था कि आधुनिक नियोक्ताओं को मानवीय चुनौतियों से निपटने में विशेषज्ञों की सहायता की आवश्यकता होती है, ठीक उसी तरह जैसे उन्हें गैर-मानवीय चुनौतियों (सामग्री, मशीन, प्रक्रिया) से निपटने के लिए तकनीकी विशेषज्ञता (पारंपरिक इंजीनियरों) की आवश्यकता होती है। इसका उदाहरण हम अपने आस-पास भी देखते हैं खासकर चुनावों के दौरान जब किसी राज्य में चुनाव होता है तो उस राज्य में सियासी पार्टियां चुनाव जीतने के लिए जातिगत वोटरों के मुताबिक उस इलाके में ऐसी जाति के उम्मीदवारों को टिकट देती हैं जिसमें उनका वोटबैंक अधिक हो। ऐसे कई बार स्थितियां ऐसी बनती है कि दूसरे जाति के वोटर भी उसी कैंडिडेट भले पसंद न करते हों लेकिन वो वोट उसे ही करेंगे क्योंकि वो उनकी फेवरिट पार्टी के टिकट पर खड़ा होता है। ऐसा उदाहरण हमने साल 2007 में उत्तर प्रदेश के चुनाव में देखा था। ठीक ऐसा ही हम इस बार हरियाणा चुनाव में टिकट बंटवारे पर देख रहे हैं।


UP में  2007 में क्या था BSP का सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्म्यूला?

जनसंख्या के हिसाब से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में हम सोशल इंजीनियरिंग का सबसे बड़ा उदाहरण हम देख चुके हैं। 2007 में यूपी विधानसभा का चुनाव काफी महत्वपूर्ण रहा क्योंकि इस चुनाव में 16 सालों के बाद सूबे में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी। इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी जिस पर दलितों की पार्टी का ठप्पा लगा है, वहां मायावती ने सतीश चंद्र मिश्रा को कमान दी तो सोशल इंजीनियरिंग का बड़ा असर दिखाई दिया। इस चुनाव में जब बसपा 206 सीटों के साथ सूबे में पूर्ण बहुमत की सरकार लेकर आई तो मायावती ने भी पार्टी को दलित पार्टी का ठप्पा हटाकर उसे मुख्यधारा में लाते हुए सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाया का टैग दिया। दलितों की पार्टी कही जाने वाली बसपा ने इस चुनाव में 139 सवर्ण उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। बसपा ने सबसे अधिक 86 टिकट ब्राह्मण, 36 राजपूत और 15 अन्य सवर्ण उम्मीदवारों को दिया। 114 पिछड़ों व अतिपिछड़ों को दिए जबकि 61 मुस्लिम और  वहीं दलितों की पार्टी कही जाने वाली बसपा ने 403 में से सिर्फ 89 दलितों को टिकट दिया था।


हरियाणा में क्या है जातिगत समीकरण?

हरियाणा में अगर हम जातिगत समीकरण की बात करें तो यहां पर किसी भी चुनाव को जीतने में सबसे ज्यादा वोटों का योगदान ओबीसी का रहता है। हरियाणा में ओबीसी समुदाय की जनसंख्या सबसे ज्यादा 33 फीसदी है उसके बाद नंबर आता है जाट बिरादरी का, सूबे में अगर हम जाट बिरादरी की जनसंख्या की बात करें तो यहां पर 25 फीसदी जाट बिरादरी के लोग रहते हैं। वहीं इसके बाद तीसरे नंबर पर हरियाणा की पॉपुलेशन में दलित आते हैं। दलितों की आबादी की बात करें तो यहां पर 21 फीसदी आबादी दलितों की है। यहां पर कांग्रेस ने इस चुनाव में जाट बिरादरी पर दांव खेलते हुए सबसे ज्यादा 28 उम्मीदवारों को टिकट दिया है तो वहीं बीजेपी ने 16 सीटों पर जाट उम्मीदवारों को टिकट दिया है। 

 

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Updated 21:21 IST, September 16th 2024

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