पब्लिश्ड 22:15 IST, July 6th 2024
आ गया भारत का ‘जोरावर’... महज 25 टन वजन और पहाड़ों पर आसानी से चढ़ाई; खूबियां सुन हिल जाएंगे दुश्मन
जोरावर टैंक को हल्का बनाने के साथ ही सुरक्षा का भी पूरा ख्याल रखा गया है। इसके कवच पर बड़े से बड़े हथियार का भी कोई असर नहीं होगा। आइए जानते हैं इसकी खासियत
- रक्षा
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Zorawar Tank: चीन के साथ सीमा विवाद के बीच भारतीय सेना के लिए शनिवार को अच्छी खबर आई है। भारत ने रिकॉर्ड समय में स्वदेशी टैंक 'जोरावर' को विकसित कर नया कीर्तिमान रच दिया है। लद्दाख जैसी जगहों पर चीन का मुंह बंद करने के लिए DRDO और लार्सेन एंड टुर्बो (L&T) ने लाइट वेट टैंक जोरावर (Zorawar) को विकसित किया है। इस स्वदेशी लाइट टैंक का परीक्षण भी शुरू हो गया है। भारतीय सेना को हाई एल्टीट्यूड इलाकों के लिए लंबे समय से हल्के टैंकों की जरूरत महसूस हो रही थी। भारत पहले ऐसे टैंक्स रूस से खरीदना चाहता था, लेकिन बाद में इसे अपने देश में ही बनाने का फैसला लिया गया।
जोरावर टैंक के 2027 तक भारतीय सेना में शामिल होने की उम्मीद जताई जा रही है। इस खास टैंक को लद्दाख की ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए तैयार किया गया है। देश का स्वदेशी लाइट टैंक चीन से लेकर पाकिस्तान तक कहर मचा देगा। इसका वजन महज 25 टन है, आमतौर पर टैंकों का वजह 60 टन के आसपास होता है। Arjun MK1 टैंक का वजन करीब 58.5 टन है। DRDO और L&T ने इसे मिलकर दो साल में तैयार किया है। यह पहली बार है जब इतने कम समय में किसी टैंक को डिजाइन कर परीक्षण के लिए उतारा गया है।
भारत ने तैनात किए थे T-72 टैंक
भारत को ऊंचे पहाड़ी इलाकों में सुरक्षा के लिए लाइट टैंक की जरूरत थी। 2020 में गलवान घाटी में भारत और चीनी सैनिकों के बीच हुई खूनी झड़प के बाद चीन ने अपने कब्जे वाले लद्दाख बॉर्डर पर ZTQ T-15 तैनात कर दिए थे। ZTQ T-15 चीन का लाइट वेट टैंक है। भारत के पास लाइट वेट टैंक ना होने की वजह से T-72 टैंक तैनात करना पड़ा था। T-72 टैंक को भारतीय सेना में 70 के दशक में शामिल किया गया था, जिसका वजन करीब 41 हजार किलोग्राम है। भारतीय सेना ने हवाई मार्ग से करीब 200 टैंकों को लद्दाख पहुंचाया था।
क्या है जोरावर की खासियत?
जोरावर टैंक को हल्का बनाने के साथ ही सुरक्षा का भी पूरा ख्याल रखा गया है। इसके कवच पर बड़े से बड़े हथियार का भी कोई असर नहीं होगा। 25 टन के इस टैंक को सिर्फ 3 लोग मिलकर चला सकते हैं। हल्का होने की वजह से इसे उठाकर कहीं भी पहुंचाया जा सकेगा। इस टैंक को लद्दाख में चीनी सीमा के पास तैनात किया जाएगा। इसे बनाने के लिए रूस और यूक्रेन युद्ध से भी सीख ली गई है। DRDO ने जोरावर टैंक में घूमने वाले हथियारों के लिए यूएसवी को इंटीग्रेट किया है। इस टैंक में फायर, ताकत, मोबिलिटी और सुरक्षा है। इसकी ताकत- 1000 हॉर्स पावर की है और स्पीड-70 किलोमीटर प्रतिघंटा। भारतीय सेना को पहले 59 जोरावर टैंक उपलब्ध कराए जाएंगे।
जोरावर नाम क्यों रखा?
इस स्वदेशी लाइट वेट टैंक का नाम जनरल जोरावर सिंह कहलूरिया के नाम पर रखा गया है। जोरावर सिंह कहलूरिया ने 1841 में चीन-सिख युद्ध के समय मिलिट्री एक्सपेडिशन किया था। हिमाचल प्रदेश में बिलासपुर के पास हरिपुर गांव में जोरावर सिंह का जन्म डोगरा राजपूत परिवार में हुआ था। जोरावर ने 1834 से 1839 तक 6 बार लद्दाख पर चढ़ाई की थी। उन्होंने लद्दाख से लेकर तिब्बत कर विजय पाई थी। उन्हीं के नाम पर इस टैंक का नाम जोरावर रखा गया है।
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अपडेटेड 22:15 IST, July 6th 2024